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भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्लोबल इकोनॉमिक प्राॅसपेक्ट्स

  • 03 Jun 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

ग्लोबल इकोनॉमिक प्राॅसपेक्ट्स

मेन्स के लिये:

COVID-19 और ग्लोबल इकोनॉमिक प्राॅसपेक्ट्स- जून 2020 से संबंधित मुद्दे  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक (World Bank) ने ‘ग्लोबल इकोनॉमिक प्राॅसपेक्ट्स’ (Global Economic Prospects-GEP) रिपोर्ट जारी की है। 

प्रमुख बिंदु:

  • ‘ग्लोबल इकोनॉमिक प्राॅसपेक्ट्स’ के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण आर्थिक विकास पर अल्पवधि और दीर्घकालिक दृष्टि से गंभीर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
  • वर्तमान मंदी की गंभीरता का इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पिछले आठ दशकों में इतनी भयावह स्थिति कभी नहीं देखी गई। 
  • COVID-19 के बढ़ते प्रसार और तबाह होती अर्थव्यवस्था के कारण प्रभावित हो रहे लोगों की स्थिति का आकलन करने पर पता चलता है कि वर्ष 2020 में लगभग 60 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आ सकते हैं। 
  • ध्यातव्य है कि G-20 देशों और वाणिज्यिक ऋणदाताओं ने इस वर्ष के अंत तक कम आय वाले देशों को ऋण भुगतान न करने संबंधी मुद्दों पर सहमति व्यक्त की थी। हालाँकि इन वाणिज्यिक ऋणदाताओं ने इसे अभी तक लागू नहीं किया है। 
  • वाणिज्यिक ऋणदाताओं द्वारा की जा रही देरी से कम आय वाले देश गरीबी की दलदल में फसतें जा रहे हैं। अधिकांश वाणिज्यिक ऋणदाता अमेरिका, यूरोप, जापान, चीन और खाड़ी के देशों जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से संबंधित हैं।

विकासशील देशों की स्थिति:

  • रिपोर्ट के अनुसार, उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्था (Emerging Market and Developing Economies- EMDEs) वाले देश स्वास्थ्य संकट, प्रतिबंध, व्यापार, निर्यात और पर्यटन में गिरावट इत्यादि जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
  • पूर्व में आई महामारियों के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इन देशों में अल्पावधि के दौरान उत्पादन में 3-8% की कमी आने की संभावना है।
  • वर्ष 2021 के अंत तक अमेरिका और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं में महामारी से पूर्व की स्थिति में लौटने की संभावना नहीं है। इन देशों की खराब अर्थव्यवस्था का प्रभाव EMDEs वाले देशों पर भी पड़ेगा। 
  • आयात करने वाले देशों की तुलना में निर्यात करने वाले देशों की संवृद्धि दर धीमी होने की संभावना है।
  • आगामी पाँच वर्षों के दौरान औसत EMDEs वाले देश वित्तीय संकट के साथ ही उत्पादन में लगभग 8% तक की गिरावट दर्ज कर सकते हैं, जबकि औसत EMDEs ऊर्जा निर्यातक देशों में तेल की कीमत में गिरावट के कारण उत्पादन में 11% की कमी आने की संभावना है।

नीतिगत बदलाव:

  • वर्तमान में किये गए नीतिगत बदलाव COVID-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई करने के साथ ही बुनियादी ढाँचे को मज़बूत बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं। इन नीतिगत बदलावों में नए निवेश को आमंत्रित करने के लिये अधिक से अधिक ऋण पारदर्शिता, डिजिटल कनेक्टिविटी की सहायता से तेज़ प्रगति, गरीबों के लिये नकदी का प्रावधान, इत्यादि शामिल हैं।
  • COVID-19 महामारी के बाद आधारिक संरचना का निर्माण और इनका वित्तपोषण जैसी समस्याओं का समाधान सबसे कठिन चुनौतियों में से एक है। सब्सिडी, एकाधिकार, सार्वजनिक उपक्रम (जिन्होंने विकास की गति धीमी की है), इत्यादि क्षेत्रों में सरकारों द्वारा वैधानिक तरीके से नीतिगत बदलाव और सुधार करने की आवश्यकता है। 
  • देशों को उन नीतियों को भी लागू करना होगा जो COVID-19 महामारी के बाद दुनिया में नए प्रकार के व्यवसायों और नौकरियों को प्रोत्साहित करते हैं।

ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स

(Global Economic Prospects-GEP):

  • ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स रिपोर्ट, विश्व बैंक समूह की एक रिपोर्ट है जिसमें वैश्विक आर्थिक विकास एवं संभावनाओं की जाँच की जाती है, इसमें उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  • यह वर्ष में दो बार जनवरी और जून में जारी की जाती है।

स्रोत: द हिंदू

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