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जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन का ग्लेशियर पर प्रभाव

  • 03 May 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

‘द जर्नल अर्थ फ्यूचर’ (The Journal Earth's Future) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी लगातार जारी रही तो वर्ष 2100 तक विश्व के लगभग आधे प्राकृतिक ग्लेशियर पिघल जाएँगे।

हेरिटेज ग्लेशियर पर खतरा

  • ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर’ (IUCN) द्वारा हेरिटेज ग्लेशियर्स पर कराया गया यह दुनिया का पहला शोध माना जा रहा है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, स्विटज़रलैंड के प्रसिद्ध ग्रोसर एलेत्स ग्लेशियर (Grosser Aletsch Glacier) और ग्रीनलैंड के जकॉब्सवैन आइसबारे (Jakobshavn Isbrae) ग्लेशियरों को भी खतरे के दायरे में शामिल किया गया है।
  • वैज्ञानिकों ने वैश्विक स्तर पर जाँच के बाद ग्लेशियरों की वर्तमान स्थिति का आकलन किया। साथ ही वैश्विक तापमान में वृद्धि और कार्बन उत्सर्जन की दर के जारी रहने की स्थिति में हेरिटेज ग्लेशियर पर पड़ने वाले प्रभावों के संबंध में अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किये।

प्रमुख बिंदु

  • अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2100 तक 46 प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थलों में से 21 ग्लेशियर समाप्त हो जाएँगे, जिसमें हिमालय में स्थित खुम्ब ग्लेशियर (Khumbu Glacier) भी शामिल है।
  • अर्जेंटीना में स्थित लॉस ग्लेशियर्स नेशनल पार्क (Los Glaciares National Park) में पृथ्वी के कुछ बड़े ग्लेशियर पाए जाते हैं, वर्ष 2100 तक इन ग्लेशियरों में से लगभग 60% बर्फ के समाप्त होने की संभावना है।
  • उत्तरी अमेरिका में बहुत कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के बाद भी वाटरटन ग्लेशियर इंटरनेशनल पीस पार्क (Waterton Glacier International Peace Park), कनाडाई रॉकी माउंटेन पार्क (Canadian Rocky Mountain Parks) और ओलंपिक नेशनल पार्क (Olympic National Park) ग्लेशियर में लगभग 70% तक बर्फ में कमी की संभावना है।

प्रभाव

  • ग्लेशियरों के पिघलने की घटना विश्व धरोहर सूची में शामिल ग्लेशियरों के लिये खतरे का संकेत है। अतः जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये राज्यों को अपनी प्रतिबद्धताओं को न केवल मज़बूत करने की आवश्यकता है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये इन ग्लेशियरों को संरक्षित करने के प्रयासों को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

परिणाम

  • इस अध्ययन के अनुसार, ग्लेशियरों के पिघलने की ये घटनाएँ वैश्विक उत्सर्जन का परिणाम है। यदि उत्सर्जन में कमी होती है तो भी इन ग्लेशियरों में से केवल 8 को ही बचाया जा सकेगा।
  • पर्यावरण के साथ-साथ सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण ऐसे प्रसिद्ध ग्लेशियरों का समाप्त होना चिंताजनक है।
  • इसका प्रत्यक्ष प्रभाव पेयजल पर पड़ेगा।
  • न केवल इससे समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि होगी बल्कि मौसम का पैटर्न प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होगा।

निष्कर्ष

  • वैश्विक तापन के संदर्भ में यदि समुचित उपाय नही किये गए तो भविष्य में इसके विषम प्रभाव हो सकते हैं।
  • आने वाली पीढ़ियों के लिये पेयजल, कृषि आदि क्षेत्र में इन ग्लेशियरों का बहुत महत्त्व है, अतः इनको बचाना आज की पीढ़ी की एक बड़ी ज़िम्मेदारी है।

आई यू सी एन (International Union for Conservation of Nature- IUCN)

  • IUCN पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाला विश्व का सबसे पुराना और सबसे बड़ा संगठन है।
  • इसकी स्थापना 5 अक्तूबर, 1948 को फ्राँस में हुई।
  • इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के ग्लांड शहर में अवस्थित है।
  • इसकी पहली बैठक में दुनिया के 18 देशों के सरकारी प्रतिनिधियों, 7 अंतरराष्ट्रीय संगठनों और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाले 107 राष्ट्रीय संगठनों ने भाग लिया था।
  • इसका मूल लक्ष्य एक ऐसे विश्व का निर्माण करना है, जहाँ मूल्यों और प्रकृति का संरक्षण हो सके। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिये आईयूसीएन  प्रकृति की अखंडता और विविधता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिये वैश्विक समाज को प्रोत्साहित करता है।

स्रोत- द इकोनॉमिक टाइम्स

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