विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मणिपुर के काले चावल तथा गोरखपुर टेराकोटा को जीआई टैग
- 01 May 2020
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प्रीलिम्स के लिये:चाक-हाओ , गोरखपुर टेराकोटा, मणिपुर के GI टैग मेन्स के लिये:भौगोलिक संकेतक |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मणिपुर के चाक-हाओ (Chak-Hao) अर्थात काले चावल तथा गोरखपुर टेराकोटा को 'भौगोलिक संकेतक' (Geogrphical Indication- GI) का टैग दिया गया।
मुख्य बिंदु:
- चाक-हाओ को GI टैग प्रदान करने के लिये 'चाक-हाओ उत्पादक संघ' (Consortium of Producers of Chak-Hao) द्वारा आवेदन दायर किया गया था। जबकि गोरखपुर टेराकोटा के लिये आवेदन उत्तर प्रदेश के 'लक्ष्मी टेराकोटा मुर्तिकला केंद्र', द्वारा दायर किया गया था।
- GI रजिस्ट्री के डिप्टी रजिस्ट्रार ने इन दोनों उत्पादों GI टैग देने की पुष्टि की है।
चाक-हाओ (Chak-Hao):
- चाक-हाओ एक सुगंधित चिपचिपा चावल है जिसकी मणिपुर में सदियों से खेती की जा रही है। चावल की इस किस्म में विशेष प्रकार की सुगंध होती है।
- इसका उपयोग सामान्यत: सामुदायिक दावतों में किया जाता है तथा इन दावतों में चाक-हाओ की खीर बनाई जाती है।
- चाक-हाओ का पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में भी उपयोग किया जाता है।
- चावल की इस किस्म में रेशेदार फाइबर की अधिकता होने के कारण इसे पकाने में चावल की सभी किस्मों से अधिक, लगभग 40-45 मिनट का समय लगता है।
- वर्तमान में मणिपुर के कुछ हिस्सों में चाक-हाओ की पारंपरिक तरीके से खेती की जाती है। परंपरागत रूप से या तो बीजों को भिगोकर सीधे खेतों में बुवाई की जाती है या चावल की सामान्य कृषि के समान धान के खेतों में नर्सरी में उगाए गए चावल के पौधों की रोपाई की जाती है।
मणिपुर के अन्य GI टैग
भौगोलिक संकेत |
प्रकार |
शफी लांफी (Shaphee Lanphee) |
टेक्सटाइल |
वांग्खी फेई (Wangkhei Phee) |
टेक्सटाइल |
मोइरांग फेई (Moirang Phee) |
टेक्सटाइल |
कछई नींबू (Kachai Lemon) |
कृषि |
गोरखपुर टेराकोटा (Gorakhpur Terracotta):
- गोरखपुर का टेराकोटा कार्य सदियों पुरानी कला है जिसमें जहाँ स्थानीय कारीगरों द्वारा विभिन्न जानवरों जैसे कि घोड़े, हाथी, ऊँट, बकरी, बैल आदि की मिट्टी की आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
- पूरा काम नग्न हाथों से किया जाता है तथा रंगने के लिये प्राकृतिक रंग का उपयोग करते हैं, जिसकी चमक लंबे समय तक रहती है। 1,000 से अधिक प्रकार के टेराकोटा के प्रकार यहाँ बनाए जाते हैं।