लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

जैव विविधता और पर्यावरण

जर्मनी का जलवायु संरक्षण अधिनियम

  • 19 Nov 2019
  • 3 min read

प्रीलिम्स के लिये:

जर्मनी का जलवायु संरक्षण अधिनियम

चर्चा में क्यों?

15 नवंबर 2019 को जर्मनी की संसद ने जलवायु संरक्षण अधिनियम (Climate Protection Act) पारित किया।

प्रमुख बिंदु

  • जर्मनी द्वारा यह अधिनियम वर्ष 2030 तक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयास के रूप में पारित किया गया है।
  • यह जर्मनी का पहला जलवायु कार्रवाई कानून होगा।
  • इस विधेयक के तहत, जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विभिन्न उपायों के साथ-साथ परिवहन क्षेत्रकों तथा ऊष्मन को बढ़ावा देने वाले अन्य क्षेत्रकों (Heating Sectors) द्वारा होने वाले कार्बन उत्सर्जन शुल्क अध्यारोपित किया जाएगा।
  • इस अधिनियम के तहत उड़ान टिकटों की कीमतों में वृद्धि का भी प्रावधान किया गया है।

अधिनियम की विशेषताएँ

  • विधेयक में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों जैसे- परिवहन, ऊर्जा और आवास के लिये उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं।
  • इसके अतिरिक्त, उड़ान यात्राओं को भी पहले की तुलना में अधिक महंगा बना दिया जाएगा।
  • इसके विपरीत, लंबी दूरी की ट्रेन यात्रा पर मूल्य वर्द्धि कर (Value Added Tax-VAT) की वर्तमान दर 19 प्रतिशत से घटकर 7 प्रतिशत हो जाएगी।
  • जर्मनी की संसद जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विभिन्न उपायों के साथ-साथ एक विधायी पैकेज भी अपनाना चाहती है जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन पर शुल्क आरोपित करना।
  • जर्मनी द्वारा इस प्रकार का कदम उठाने का कारण यह है कि यह वर्ष 2030 तक अपने जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ ही वर्ष 1990 के मुकाबले अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 55 प्रतिशत से अधिक की कमी करना चाहता है।

न्यूजीलैंड भी उठा चुका है ऐसा कदम

  • इससे पहले, न्यूजीलैंड भी पेरिस जलवायु समझौते के अनुपालन और वर्ष 2050 तक कार्बन-उदासीन राष्ट्र (Carbon-Neutral Nation) बनने के लिये शून्य-कार्बन कानून (Zero-Carbon Law) पारित कर चुका है।
  • लेकिन जहाँ न्यूजीलैंड में कानून को पूर्ण समर्थन के साथ पारित किया गया था, वहीं जर्मनी में कुछ लोगों ने इसके खिलाफ मतदान किया था।

आलोचना

  • जर्मनी की संसद में विपक्ष द्वारा इस अधिनियम का विरोध किया गया क्योंकि उनका मानना था कि जलवायु पैकेज इतने पर्याप्त नहीं थे जिनसे लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकें।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2