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कड़कनाथ मुर्गे को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग

  • 03 Apr 2018
  • 5 min read

चेन्नई स्थित GI पंजीकरण कार्यालय ने मध्य प्रदेश राज्य को मुर्गे की एक प्रजाति कड़कनाथ के लिये भौगोलिक संकेतक (GI) टैग दे दिया है। मध्य प्रदेश के ग्रामीण विकास ट्रस्ट, झाबुआ ने इसके लिये वर्ष 2012 में आवेदन किया था।

प्रमुख बिंदु 

  • कड़कनाथ मुर्गा मूलत: मध्य प्रदेश राज्य के झाबुआ, अलीराजपुर और धार ज़िले के कुछ भागों में पाया जाता है।
  • छत्तीसगढ़ द्वारा भी कड़कनाथ मुर्गे पर GI टैग की मांग की जा रही थी। लेकिन अंतत: मध्य प्रदेश के दावे को मान्यता दी गई। 
  • कड़कनाथ मुर्गा मेलानिन वर्णक के कारण काले रंग का होता है। इसलिये इसे कालीमासी भी कहा जाता है।
  • इसके पंख, माँस, हड्डियाँ और खून भी काले रंग के होते है। सामान्य मुर्गे का खून लाल रंग का होता है। 
  • यह औषधीय गुणों से युक्त होता है तथा यह मुर्गे की अन्य प्रजातियों से अधिक पौष्टिक और सेहत के लिये लाभकारी होता है।
  • जहाँ अन्य मुर्गो में 18-20% प्रोटीन पाया जाता है वहीं, कड़कनाथ मुर्गे में 25% प्रोटीन पाया जाता है। इसमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अपेक्षाकृत कम पाई जाती है और आयरन अधिक मात्रा में पाया जाता है। 
  • चिकन की अन्य किस्मों की तुलना में कड़कनाथ मुर्गे का उच्च-प्रोटीन युक्त माँस, चूजे और अंडे बहुत ज़्यादा कीमत पर बेचे जाते हैं।

भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication-GI)

  • एक भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। 
  • इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषताएँ एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है। इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है। 
  • उदाहरण के तौर पर- दार्जिलिंग की चाय, जयपुर की ब्लू पोटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू कुछ प्रसिद्ध GI टैग हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है।
  • वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्‍तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999 (Geographical Indications of goods ‘Registration and Protection’ act, 1999) के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ था।
  • वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है।
  • भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये मान्य होता है।

GI पंजीकरण के लाभ

  • यह भारत में भौगोलिक संकेतक के लिये कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
  • दूसरों के द्वारा किसी पंजीकृत भौगोलिक संकेतक के अनधिकृत प्रयोग को रोकता है।
  • यह भारतीय भौगोलिक संकेतक के लिये कानूनी संरक्षण प्रदान करता है जिसके फलस्वरूप निर्यात को बढ़ावा मिलता है।
  • यह संबंधित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।

हाल ही के GI टैग 

  • पश्चिम बंगाल को रसगुल्ला (Banglar Rasgolla) के लिये नवंबर 2017 में GI टैग दिया गया।
  • आंध्र प्रदेश को विशाखापत्तनम में वराह नदी के तट पर अवस्थित एटिकोप्पाका गाँव के लकड़ी के खिलौनों (Etikoppaka Bommalu) के लिये नवंबर 2017 में GI टैग दिया गया।
  • पश्चिम बंगाल को गोबिंदगढ़ चावल के लिये अगस्त 2017 में GI टैग दिया गया।
  • केरल का निलाम्बुर टीक, मामल्लपुरम (तमिलनाडु) का पत्थर स्थापत्य आदि हाल ही में दिये गए अन्य GI टैग है।
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