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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जीडीपी दर में पाँच वर्षों के लिये 6 % की वृद्धि होने की सम्भावना

  • 16 Jan 2017
  • 5 min read

पृष्ठभूमि

सीमआईई (Centre for Monitoring Indian Economy - CMIE) द्वारा व्यक्त अनुमान के मुताबिक, विमुद्रीकरण के पश्चात् न केवल चालू वित्तीय वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर के 6 प्रतिशत पर रहने की सम्भावना है, बल्कि अगले पाँच सालों तक इसी विकास दर के बरकरार रहने की उम्मीद की जा रही है| 

प्रमुख बिंदु

  • विमुद्रीकरण से पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था, वार्षिक जीडीपी वृद्धि दर को 7.5% से 8% तक बढ़ाने का प्रयास कर रही थी|  
  • ध्यातव्य है कि तक़रीबन 86% मुद्रा को चलन से बाहर करने का सर्वाधिक प्रभाव निजी उपभोग व्यय में गिरावट के रूप में परिलक्षित हुआ है|
  • नवंबर 2016 में, न केवल खुदरा मुद्रास्फीति (Retail Inflation) में 3.6% की गिरावट दर्ज़ की गई बल्कि तेज़ी से बढ़ती उपभोक्ता वस्तुओं वाली कंपनियों (Consumer Goods Companies) द्वारा उपभोग व्यय में भी गिरावट आने के संकेत मिले हैं|
  • वस्तुतः विमुद्रीकरण का तात्कालिक प्रभाव यह हुआ कि इससे निजी उपभोग व्यय में तो तेज़ी से कमी आई ही, साथ ही जल्द खराब होने वाली वस्तुओं (Perishable Commodities) की खुदरा कीमतों में भी गिरावट देखने को मिली है, साथ ही विमुद्रीकरण के कारण मज़दूरी एवं श्रम के क्षेत्र में ठोस अव्यवस्था के साथ-साथ आपूर्ति-श्रंखला भी कई खंडों में विभाजित हो गई है|
  • श्रम की अव्यवस्था (ऐसा इसलिये क्योंकि अधिकतर उत्पादक समय में श्रमिक, बैंकों की लाइनों में ही खड़ा रहा, जिससे उसकी मज़दूरी का ह्रास हुआ, इसके अतिरिक्त नकदी की कमी होने के कारण नियोक्ता श्रमिकों को नकद भुगतान नहीं कर सके, जिसके चलते श्रम की मांग में भी कमी आई) का प्रत्यक्ष प्रभाव निम्न उपभोक्ता व्यय के रूप में सामने आया|
  • वस्तुतः इस समस्या का समाधान केवल तीन परिस्थितियों में किया जा सकता है- सर्वप्रथम, अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को तेज़ किया जाए; दूसरा, नई मुद्रा में आम जनता तथा बाज़ार के विश्वास को पूरी तरह से बहाल किया जाए तथा तीसरा, उपभोक्ताओं द्वारा गैर-आवश्यक वस्तुओं के उपभोग में की गई कमी को मुद्रा के प्रवाह के माध्यम से बढ़ावा प्रदान किया जाए|
  • हालाँकि, इन तीनों में से किसी भी शर्त के जल्द पूरे होने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि बाज़ार में मुद्रा के प्रवाह को पूर्ण रूप से बहाल करने में अभी सितंबर माह तक का समय लगने की संभावना है| साथ ही, सरकार के इस फैसले तथा रिज़र्व बैंक पर देश की जनता को पुन: विश्वास करने में भी अभी बहुत समय लगेगा| 

उपभोक्ता व्यय में कमी 

  • गौरतलब है कि वर्ष 2015-16 में निजी अंतिम उपभोग व्यय (Private final consumption expenditure - PFCE) में तकरीबन 7.5% की वृद्धि दर्ज की गई थी| अतः इस वर्ष (2016-17) भी पीएफसीई में तकरीबन 7.8% से 8% तक की वृद्धि होने की संभावना व्यक्त की गई थी|
  • परन्तु चालू वित्तीय वर्ष में पीएफसीई के तहत मात्र 5.5% तक की वृद्धि होने का अनुमान लगाया जा रहा है, जिसके प्रतिवर्ष 6.8% रहने की संभावना है|
  • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2016-17 में पूंजी निर्माण दर (Capital Formation Rate) में तकरीबन 2% की कमी आने की भी संभावना है, हालाँकि विमुद्रीकरण से इसमें 2.5% की वृद्धि होने का अनुमान व्यक्त किया गया था|
  • हालाँकि, निवेश दर में प्रति वर्ष वृद्धि होने का अनुमान व्यक्त करते हुए, वर्ष 2020-21 तक देश में निवेश की दर 10% रहने की सम्भावना व्यक्त की गई थी|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2020-21 तक सकल स्थाई पूँजी निर्माण की दर (Gross fixed capital formation Rate) तकरीबन 29% (देश की समस्त जीडीपी का 30%) रहने की उम्मीद व्यक्त की गई थी, परन्तु वर्तमान में सकल स्थाई पूंजी निर्माण की दर एवं जीडीपी के मध्य 27-28% का अनुपात बने रहने की सम्भावना जताई गई है|
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