संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और सुरक्षा की आवश्यकता | 24 Sep 2020
प्रिलिम्स के लियेसंयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, G-4 समूह मेन्स के लियेसंयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का महत्त्व और इसमें सुधार की आवश्यकता, इस संबंध में भारत की दावेदारी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संपन्न एक बैठक के बाद जापान, जर्मनी, ब्राज़ील और भारत (G-4) ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) में सुधारों की अपनी मांग को दोहराते हुए एक समय सीमा के भीतर ठोस निर्णय लेने पर ज़ोर दिया।
प्रमुख बिंदु
- इस बैठक के दौरान चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने वर्ष 2005 के विश्व शिखर सम्मेलन में राष्ट्रों और शासनाध्यक्षों द्वारा परिकल्पित सुरक्षा परिषद के शीघ्र और व्यापक सुधार की दिशा में निर्णायक कदम उठाने के अपने संकल्प की पुष्टि की।
- सभी प्रतिभागियों ने स्पष्ट किया कि वर्तमान में विश्व उस समय से बिल्कुल अलग है जब 75 वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्र का गठन किया गया था। वर्तमान में परिस्थितियाँ बदल गई हैं, देशों की संख्या बढ़ गई है और चुनौतियाँ भी बढ़ गई हैं, ऐसे में इन नई चुनौतियों से निपटने के लिये नवीन समाधानों की आवश्यकता भी महसूस हो रही है।
- इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए जापान, जर्मनी, ब्राज़ील और भारत (G-4) के प्रतिभागियों ने समकालीन वास्तविकताओं को बेहतर ढंग से दर्शाने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आमूलचूल बदलाव लाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और उसकी भूमिका
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), संयुक्त राष्ट्र (UN) की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है, जिसका प्राथमिक कार्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति और सुरक्षा बनाए रखना है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने अपना पहला सत्र 17 जनवरी, 1946 को वेस्टमिंस्टर, लंदन में आयोजित किया था।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में कुल 15 सदस्य होते हैं, जिसमें से 5 स्थायी सदस्य और 10 अस्थायी सदस्य होते हैं। सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन शामिल हैं और स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है।
- पाँच स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को क्षेत्रीय आधार पर दो वर्ष के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में शामिल किया जाता है।
- यदि विश्व में कहीं भी सुरक्षा संकट उत्पन्न होता है तो उस मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के समक्ष लाया जाता है, जिसके पश्चात् यह परिषद मध्यस्थता और विशेष दूत की नियुक्ति जैसी विधियों के माध्यम से विभिन्न पक्षों के मध्य समझौता कराने का प्रयास करती है, इसके अलावा यह परिषद संयुक्त राष्ट्र महासचिव से भी उस विवाद को सुलझाने का अनुरोध कर सकती है।
- इन सब के बावजूद यदि किसी क्षेत्र में मामला बढ़ता है तो सुरक्षा परिषद वहाँ युद्धविराम के निर्देश जारी कर सकता है और शांति सेना तथा सैन्य पर्यवेक्षकों की नियुक्ति कर सकता है।
- यदि परिस्थितियाँ बहुत विकट होती हैं, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुरक्षात्मक प्रतिबंध और वित्तीय दंड भी अधिरोपित कर सकता है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) शांति व्यवस्था और संघर्ष प्रबंधन के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का एक प्रमुख अंग है और संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा लिये गए निर्णयों के विपरीत इस परिषद के निर्णय सदस्य देशों पर बाध्यकारी होते हैं।
- इसका अर्थ है कि इस परिषद में काफी व्यापक शक्तियाँ निहित हैं और यह परिषद आवश्यकता पड़ने पर ऐसे निर्णय भी ले सकती है, जो किसी एक देश की संप्रभुता पर अतिक्रमण कर सकते हैं, उदाहरण के लिये किसी देश पर प्रतिबंध अधिरोपित करने का निर्णय।
- यद्यपि यह महत्त्वपूर्ण और आवश्यक भी है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पास इस प्रकार की शक्तियाँ होनी चाहिये, किंतु यदि हम चाहते हैं कि विश्व के सभी देश परिषद द्वारा लिये गए निर्णय का सम्मान करें तो यह आवश्यक है कि परिषद को अधिक-से-अधिक प्रतिनिधि बनाया जाए यानी इसमें ज़्यादा-से-ज़्यादा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित किया जाए।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना भी वर्ष 1945-46 की भू-राजनितिक परिस्थितियों का प्रतिनिधित्त्व करती है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से कई देश इसमें शामिल हुए हैं, इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इन नए देशों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्त्व करने में असफल रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से वैश्विक भू-राजनीति और वैश्विक मुद्दों में परिवर्तन आया है, इसलिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने नए मुद्दे ज़्यादा प्रासंगिक हो गए हैं अतः संयुक्त राष्ट्र तथा इसकी सुरक्षा परिषद की संरचना और कार्यशैली में भी परिवर्तन होना अनिवार्य है।
- वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व दो गुटों विकासशील और विकसित में बंँटा हुआ है लेकिन UNSC में केवल चीन ही एक विकासशील देश है, इसके अतिरिक्त अफ्रीका जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र की यहाँ पर उपस्थिति ही नहीं है।
- पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के देश एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहे हैं, इसके साथ ही भारत जैसे देश की वैश्विक स्तर पर बढ़ती भूमिका इसकी संयुक्त राष्ट्र में अधिक महत्त्वपूर्ण भागीदारी का आह्वान करती है।
- सुरक्षा परिषद में आवश्यक सुधार की अनुपस्थिति में एक खतरा यह है कि वैश्विक स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया किसी अन्य मंच पर स्थानांतरित हो सकती है, और इस तरह की प्रतियोगिता किसी के भी दीर्घकालिक हित में नहीं होगी।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और G-4 की भूमिका
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग के लिये जापान, जर्मनी, भारत और ब्राज़ील ने G-4 के नाम से एक गुट बनाया है और स्थायी सदस्यता के मामले में एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।
- G-4 देश लगातार बहुपक्षवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करने के साथ ही UNSC की संरचना में सुधार की मांग कर रहे हैं।
- G-4 देश 21वीं शताब्दी की समकालीन ज़रूरतों के लिये संयुक्त राष्ट्र की स्वीकार्यता हेतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता पर ज़ोर दे रहे हैं।
भारत और सुरक्षा परिषद
- ध्यातव्य है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा शुरू की गईं सभी पहलों में सक्रिय रूप से भागीदार रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र के शुरुआती वर्षों में भारत को दो महाशक्तियों अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में शामिल होने की पेशकश की गई थी, हालाँकि, भारत ने उस समय शीत युद्ध की राजनीति के कारण इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
- वहीं भारत को अब तक कुल आठ बार दो-वर्षीय कार्यकाल के लिये गैर-स्थायी सदस्य के रूप में चुना जा चुका है।
- वर्तमान में भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र और दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है, यही कारण है कि कई विशेषज्ञ और यहाँ तक कि कई देश, भारत को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का हकदार मानते हैं।
- भारत वैश्विक स्तर पर तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और यह न केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व के विकास के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
- साथ ही भारत अपनी विदेश नीति के माध्यम से ऐतिहासिक रूप से विश्व शांति को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है। इस प्रकार यदि भारत को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल किया जाता है तो इससे न केवल विकासशील देशों का प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित हो सकेगा, बल्कि इससे सुरक्षा परिषद को और अधिक लोकतांत्रिक बनाने में मदद मिलेगी।
सुरक्षा परिषद में विस्तार की बाधाएँ
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और इसके विस्तार में सबसे बड़ी बाधा तो सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य ही हैं, वे स्वयं ही किसी अन्य देश को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल नहीं होने देना चाहते। वहीं अभी तक ऐसा कोई उदाहरण मौजूद नहीं है जहाँ किसी देश ने अकेले इस प्रकार का दर्जा प्राप्त किया हो।
- इसके अलावा कई देश एक दूसरे की दावेदारी को नकार रहे हैं, उदाहरण के लिये- पाकिस्तान नहीं चाहता कि भारत स्थायी सदस्य बने, वहीं चीन इसके लिये जापान का विरोध कर रहा है, इसके अलावा इटली, जर्मनी का विरोध कर रहा है और अर्जेंटीना इस सीट के लिये ब्राज़ील का विरोध कर रहा है।
- अफ्रीका में अभी तक इस बात पर कोई सहमति नहीं बन पाई है कि कौन सा देश स्थायी सदस्य के रूप में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेगा।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के निर्धारण के लिये अभी तक कोई भी मापदंड निर्धारित नहीं किया गया है।