महासागरीय प्लास्टिक कचरे से निपटने हेतु नया कार्यान्वयन ढाँचा | 17 Jun 2019
चर्चा में क्यों?
28-29 जून को पश्चिमी जापान के ओशाका में आयोजित होने वाले जी 20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) से पहले टोक्यो के उत्तर-पश्चिम में स्थित करुइज़ावा (Karuizawa) शहर में पर्यावरण और ऊर्जा मंत्रियों की एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में वैश्विक स्तर पर समुद्री प्लास्टिक कचरे से निपटने हेतु एक नए कार्यान्वयन ढाँचे को अपनाने पर सहमति व्यक्त की गई।
महासागर प्लास्टिक कचरा: एक प्रमुख मुद्दा
- महासागर प्लास्टिक कचरा इस बैठक का प्रमुख मुद्दा था क्योंकि प्लास्टिक कचरे से सटे समुद्री तटों और मृत जानवरों के शरीर में पाई जाने वाली प्लास्टिक की तस्वीरें पूरी दुनिया में महासागरीय प्लास्टिक कचरे की वीभत्सता को प्रदर्शित करती है। यही कारण है कि कई देशों ने प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर प्रत्यक्ष रूप से प्रतिबंध लगा दिया है।
प्रमुख बिंदु
- यद्यपि वर्ष 2017 में जर्मनी के हैम्बर्ग में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन (G20 Hamburg Summit) में ‘समुद्री कूड़े पर G20 कार्य योजना’ (G20 action plan on marine litter) को अपनाया गया, इस नए कार्यान्वयन ढाँचे का उद्देश्य समुद्री कचरे से निपटने के लिये एक ठोस कार्रवाई को आगे बढ़ाना है।
- नए ढाँचे के अंतर्गत, G20 सदस्य विभिन्न उपायों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से महासागरों को प्लास्टिक कूड़े के निर्वहन को रोकने एवं कम करने के लिये एक व्यापक जीवन-चक्र दृष्टिकोण को बढ़ावा देंगे।
- ये देश महासागरीय कचरे से निपटने के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करेंगे, नवाचार को बढ़ावा देंगे और वैज्ञानिक निगरानी एवं विश्लेषणात्मक तरीकों को भी बढ़ावा देंगे।
- उल्लेखनीय है कि जापान G20 देशों के पर्यावरण मंत्रियों की G20 संसाधन दक्षता संवाद (G20 Resource Efficiency Dialogue) के दौरान नई रूपरेखा के तहत पहली बैठक की मेज़बानी कर सकता है।
महासागरीय कचरे पर जी 20 कार्रवाई योजना
(The G20 Action Plan on Marine Litter)
इस कार्रवाई योजना/एक्शन प्लान में सात उच्च स्तरीय नीतिगत सिद्धांत शामिल हैं:
1. समुद्री कचरे पर प्रतिबंध लगाने हेतु नीतियों की स्थापना के सामाजिक-आर्थिक लाभों को बढ़ावा देना।
2. अपशिष्ट रोकथाम और संसाधन दक्षता को बढ़ावा देना।
3. स्थायी कचरा प्रबंधन को बढ़ावा देना।
4. प्रभावी अपशिष्ट जल उपचार और तूफान जल प्रबंधन को बढ़ावा देना।
5. जागरूकता फैलाना, शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देना।
6. निवारण और सुधारात्मक गतिविधियों का समर्थन करना।
7. हितधारकों के साथ संबंधों को मज़बूती प्रदान करना।
प्लास्टिक प्रदूषण
- प्लास्टिक की उत्पत्ति सेलूलोज़ डेरिवेटिव में हुई थी। प्रथम सिंथेटिक प्लास्टिक को बेकेलाइट कहा गया और इसे जीवाश्म ईंधन से निकाला गया था।
- फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे-धीरे अपघटित होती है एवं इसके रसायन आसपास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे-छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है।
- यहाँ यह स्पष्ट करना बहुत आवश्यक है कि प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। ये बेहद खतरनाक तत्त्व होते हैं। इनका आकार 5 मिमी. से अधिक नहीं होता है।
- इनका इस्तेमाल सौंदर्य उत्पादों तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाता है। ये खतरनाक रसायनों को अवशोषित करते हैं। जब पक्षी एवं मछलियाँ इनका सेवन करती हैं तो यह उनके शरीर में चले जाते हैं।
- अधिकांशतः प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता है। यही कारण है कि वर्तमान में उत्पन्न किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हज़ारों साल तक पर्यावरण में मौजूद रहेगा। ऐसे में इसके उत्पादन और निस्तारण के विषय में गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श किये जाने की आवश्यकता है।
समुद्री जीवों पर संकट
- इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया के तकरीबन 90 फीसदी समुद्री जीव-जंतु एवं पक्षी किसी न किसी रूप में अपने शरीर में प्लास्टिक ले रहे हैं। प्लास्टिक की यह मात्रा न केवल पर्यावरण के लिये खतरनाक है बल्कि इन जीवों के लिये भी जानलेवा साबित हो रही है।
- आर्कटिक सागर के विषय में किये गए एक शोध के अनुसार, अगर यही स्थिति रहती है तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक कचरा नज़र आएगा।
- आर्कटिक सागर के जल में 100 से 1200 टन के बीच प्लास्टिक मौजूद होने की संभावना है जो विभिन्न प्रकार की धाराओं के ज़रिये समुद्र में एकत्रित होता जा रहा है।
- स्पष्ट रूप से यदि जल्द ही समुद्र में प्रवेश करने वाले इस कचरे पर रोक नहीं लगाई गई तो आगामी तीन दशकों में समुद्री जीव-जंतुओं के साथ-साथ पक्षियों की बहुत बड़ी तादाद खतरे में आ जाएगी।
- आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच अवस्थित तस्मानिया सागर का क्षेत्र प्लास्टिक प्रदूषण के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है।
- हाल ही में पी.एन.ए.एस. नामक एक जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, 1960 के दशक में पक्षियों के आहार में केवल पाँच फीसदी प्लास्टिक की मात्रा पाई गई थी, जबकि 2050 तक तकरीबन 99 फीसदी समुद्री पक्षियों के पेट में प्लास्टिक होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
G20 संसाधन दक्षता संवाद
(G20 Resource Efficiency Dialogue)
- G20 देशों ने वर्ष 2017 में आयोजित हैम्बर्ग शिखर सम्मेलन में G20 संसाधन दक्षता संवाद स्थापित करने का निर्णय लिया था।
- यह संवाद प्राकृतिक संसाधनों के कुशल और दीर्घकालिक उपयोग को G20 वार्ता का मुख्य घटक बनाता है।
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