निवास और अबाध संचरण का अधिकार | 31 Aug 2021
प्रिलिम्स के लिये‘भारत के किसी भी भाग में निवास करने’ और ‘भारतीय राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण’ का अधिकार मेन्स के लियेउपर्युक्त मौलिक अधिकारों का महत्त्व और इनके प्रयोग संबंधी प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक पत्रकार के खिलाफ ‘निर्वासन आदेश’ को रद्द करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि ‘भारत के किसी भी भाग में निवास करने’ और ‘भारतीय राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण’ के मौलिक अधिकार को किसी ‘सामान्य या सारहीन आधार’ पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
- ‘निर्वासन आदेश’ कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में किसी व्यक्ति की आवाजाही को प्रतिबंधित करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक, किसी इलाके में कानून और व्यवस्था बनाए रखने और/या सार्वजनिक शांति के उल्लंघन को रोकने के लिये असाधारण मामलों में ही इस प्रकार की कठोर कार्रवाई की जानी चाहिये।
प्रमुख बिंदु
- ‘भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण’ का आधिकार
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(d) प्रत्येक नागरिक को देश के संपूर्ण राज्यक्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार प्रदान करता है।
- यह अधिकार केवल राज्य की कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करता है, न कि निजी व्यक्तियों से।
- इसके अलावा यह अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिये उपलब्ध है, न कि विदेशी नागरिकों या कानूनी व्यक्तियों- जैसे कंपनियों या निगमों आदि के लिये।
- ‘अबाध संचरण’ की स्वतंत्रता के दो आयाम हैं, आंतरिक (देश के अंदर जाने का अधिकार) और बाहरी (देश से बाहर जाने का अधिकार तथा देश में वापस आने का अधिकार)।
- अनुच्छेद-19 केवल प्रथम आयाम की रक्षा करता है।
- दूसरा आयाम अनुच्छेद-21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत विनियमित किया जाता है।
- इस स्वतंत्रता पर प्रतिबंध केवल दो आधारों पर लगाया जा सकता है जिनका उल्लेख स्वयं संविधान के अनुच्छेद 19(5) में किया गया है, जिसमें आम जनता के हित और किसी अनुसूचित जनजाति के हितों की सुरक्षा करना शामिल है। उदाहरण के लिये:
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के आधार पर और सार्वजनिक नैतिकता के हित में वेश्यावृत्ति में संलग्न लोगों की आवाजाही की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
- अनुसूचित जनजातियों की विशिष्ट संस्कृति, भाषा, परंपराओं और शिष्टाचार की रक्षा करने तथा उनके पारंपरिक व्यवसाय एवं संपत्तियों को शोषण से बचाने के लिये आदिवासी क्षेत्रों में बाहरी लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है।
- भारत में किसी भी भाग में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता
- संविधान के अनुच्छेद 19(1)(e) के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक को ‘भारत में किसी भी भाग में निवास करने और बसने का अधिकार है।’
- इस प्रावधान का उद्देश्य देश भर के भीतर या किसी विशिष्ट हिस्से में आंतरिक बाधाओं को दूर करना है।
- यह अधिकार अनुच्छेद 19 के खंड (5) में उल्लिखित उचित प्रतिबंधों के अधीन भी है।
- ‘भारत में किसी भी भाग में निवास करने’ और ‘भारतीय राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण’ के मौलिक अधिकार प्रायः एक-दूसरे के पूरक हैं और इन्हें एक साथ देखा जाता है।
संविधान का अनुच्छेद 19
- अनुच्छेद 19 में वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रावधान है।
- इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक नागरिक को अपने विचारों, विश्वासों और उन्हें मौखिक, लेखन, मुद्रण, चित्र या किसी अन्य तरीके से स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को स्वतंत्रता के छह अधिकारों की गारंटी देता है, जो इस प्रकार हैं:
- वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।
- शांतिपूर्वक सम्मेलन में भाग लेने की स्वतंत्रता का अधिकार।
- संगम या संघ बनाने का अधिकार।
- अबाध संचरण की स्वतंत्रता का अधिकार।
- भारत के किसी भी क्षेत्र में निवास का अधिकार।
- व्यवसाय आदि की स्वतंत्रता का अधिकार।
- वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध (अनुच्छेद 19(2))
- इस तरह के प्रतिबंध देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता, विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता के साथ-साथ द्वेषपूर्ण भाषा, मानहानि, न्यायालय की अवमानना के संदर्भ में उपयोगी हो सकते हैं।
- अनुच्छेद 19 के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- असहमति का अधिकार: शाहीन बाग विरोध के मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की कि विरोध करने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है और यह स्थान एवं समय के संबंध में प्राधिकरण के आदेशों के अधीन हो सकता है।
- सत्य और अभद्र भाषण: मुक्त भाषण की सीमाओं और अभद्र भाषा के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि "ऐतिहासिक सत्य को किसी भी तरह से विभिन्न वर्गों या समुदायों के बीच घृणा या दुश्मनी को प्रकट या प्रोत्साहित किये बिना चित्रित किया जाना चाहिये।"
- सूचना प्रसार के माध्यम के रूप में इंटरनेट: जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बंद होने के मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इंटरनेट के उपयोग के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने के विचार से परहेज किया, लेकिन फिर भी इंटरनेट को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक अभिन्न अंग बना दिया।
- प्रेस की स्वतंत्रता: रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य का मामला 1950, SC द्वारा तय किये जाने वाले शुरुआती मामलों में से एक था, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक हिस्सा घोषित किया गया था।
- सूचना का अधिकार: भारत संघ बनाम वी. असन मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स केस 2002 के लिये यह माना गया कि 'वाक् एवं अभिव्यक्ति' की स्वतंत्रता में न केवल सूचना को व्यक्त करने, प्रकाशित करने और प्रचारित करने का अधिकार है बल्कि सूचना प्राप्त करने का अधिकार भी शामिल है।
- राष्ट्रीय सीमाओं से परे अभिव्यक्ति का अधिकार: मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामला 1978 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) भारतीय क्षेत्र तक ही सीमित था और यह भी माना गया कि वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं है।
- मौन रहने का अधिकार: बिजो इमैनुएल बनाम केरल राज्य 1986 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बोलने का अधिकार या मौन रहने का अधिकार भी वाक् एवं अभिव्यक्ति के अधिकार में शामिल है।