मौलिक कर्तव्य | 16 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:मौलिक कर्तव्य, स्वर्ण सिंह समिति मेन्स के लिये:मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व, स्वर्ण सिंह समिति, मौलिक कर्तव्यों को लागू करना। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि संविधान में मौलिक कर्तव्य केवल "पांडित्य या तकनीकी" उद्देश्य की पूर्ति के लिये नहीं हैं, बल्कि उन्हें सामाजिक परिवर्तन की कुंजी के रूप में शामिल किया गया है।
मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान:
- मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान (तत्कालीन सोवियत संघ) से प्रेरित है।
- इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था।
- मूल रूप से मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या 10 थी, बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और कर्तव्य जोड़ा गया था।
- सभी ग्यारह कर्तव्य संविधान के अनुच्छेद 51-ए (भाग- IV-ए) में सूचीबद्ध हैं।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की तरह, मौलिक कर्तव्य भी प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं।
मौलिक कर्त्तव्यों की सूची:
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
- स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा व प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव आते हैं, की रक्षा और संवर्द्धन करें तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को प्राप्त किया जा सके।
- छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना (इसे 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया)।
मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व:
- लोकतांत्रिक आचरण का निरंतर अनुस्मारक:
- मौलिक कर्तव्यों का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को एक निरंतर अनुस्मारक के रूप में यह बताना है , कि संविधान ने विशेष रूप से उन्हें कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं, लेकिन नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण और लोकतांत्रिक व्यवहार के बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है।
- असामाजिक गतिविधियों के विरुद्ध चेतावनी:
- मौलिक कर्तव्य ऐसे लोगों के लिये असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं जो राष्ट्र का अपमान करते हैं; जैसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना या सार्वजनिक शांति भंग करना आदि।
- अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना:
- ये राष्ट्र के प्रति अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
- ये केवल दर्शकों के बजाय नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से राष्ट्रीय लक्ष्यों को साकार करने में मदद करते हैं।
- कानून की संवैधानिकता निर्धारित करने में सहायता करना:
- यह कानून की संवैधानिकता का निर्धारण करने में न्यायालय की मदद करता है।
- उदाहरण के लिये, विधायिका द्वारा पारित कोई भी कानून, जब संवैधानिकता जाँच के लिये न्यायालय में जाता है और उसमें मौलिक कर्तव्य के घटक निहित हैं, तो ऐसे कानून को उचित माना जाएगा।
मौलिक कर्तव्यों के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:
- सर्वोच्च न्यायालय के रंगनाथ मिश्रा वाद 2003 में कहा गया कि मौलिक कर्तव्यों को न केवल कानूनी प्रतिबंधों से बल्कि सामाजिक प्रतिबंधों द्वारा भी लागू किया जाना चाहिये।
- एम्स छात्र संघ बनाम एम्स 2001 में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि मौलिक कर्तव्य मौलिक अधिकारों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं।
- हालाँकि मौलिक कर्तव्यों को मौलिक अधिकारों की तरह लागू नहीं किया जा सकता है, लेकिन उन्हें भाग IV ए में कर्तव्यों के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
- मूल कर्तव्यों की उपस्थिति अप्रत्यक्ष रूप से पहले से ही संविधान के भाग III में कुछ निर्बंधनों के रूप थी।
आगे की राह:
- मौलिक कर्तव्य केवल पांडित्य या तकनीकी उद्देश्य नहीं हैं। बल्कि इन्हें सामाजिक परिवर्तन की कुंजी के रूप में शामिल किया गया था।
- समाज में सार्थक योगदान देने के लिये नागरिकों को पहले संविधान और उसके अंगों को समझना होगा जिसके लिये "जन-व्यवस्था और उसकी बारीकियों, शक्तियों और सीमाओं को समझना अनिवार्य है”।
- इसलिये भारत में संवैधानिक संस्कृति का प्रसार बहुत ज़रूरी है।
- प्रत्येक नागरिक को भारतीय लोकतंत्र में सार्थक हितधारक होने और संवैधानिक दर्शन को उसकी वास्तविक भावना में आत्मसात करने का प्रयास करने की आवश्यकता है।
- मौलिक कर्तव्यों के "उचित संवेदीकरण, पूर्ण संचालन और प्रवर्तनीयता" के लिये एक समान नीति की आवश्यकता है जो "नागरिकों को ज़िम्मेदार होने में काफी मदद करेगी"।
प्रश्न. "भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडत की रक्षा और उसे अक्षुण रखना किसके तहत उल्लिखित प्रावधान है: (2015) (a) संविधान की प्रस्तावना उत्तर: (d) व्याख्या
अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन भारतीय नागरिक के मौलिक कर्तव्यों के बारे में सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए: (a) केवल 1 उत्तर: (d) |