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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हरित क्रांति से ‘पीली क्रांति’ की ओर बढ़ते कदम

  • 23 May 2017
  • 6 min read

संदर्भ
यद्यपि जीएम सरसों विवाद का विषय बना हुआ है, परन्तु फिर भी लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय किसानों को कुछ विशेष क्षेत्रों में ‘कैनोला गाँवों’ (canola villages) का विकास कर कैनोला तेल का उत्पादन करने के लिये कैनोला (canola) की कृषि करने हेतु प्रोत्साहित कर रहा है|

प्रमुख बिंदु

  • स्वास्थ्य के संबंध में बढ़ती जागरूकता के कारण देश में कैनोला तेल की मांग में वृद्धि हो रही है| वर्ष 2014-15 के दौरान लगभग 56,000 टन कैनोला तेल का आयात करके इसे भारतीय बाज़ारों में बेचा गया था|
  • कैनोला तेल की बढ़ती मांग के कारण पंजाब के किसानों को लाभ पहुँच सकता है क्योंकि पंजाब राज्य के विशेष क्षेत्रों में कैनोला (सरसों और रेपसीड) की कृषि की जाती है| 
  • देश में खाद्य तेल की वार्षिक मांग तकरीबन 22 मिलियन टन है और इसमें प्रतिवर्ष 3 से 4% की वृद्धि हो रही है | भारत को इसकी तेल मांग का केवल 40% ही प्राप्त होता है| मांग और आपूर्ति के बीच के इस अंतराल की भरपाई विदेशों से तेल का आयात करके की जाती है| 
  • वर्ष 2015 -16 के दौरान भारत ने लगभग 16 मिलियन खाद्य तेल का आयात किया था जिसका अनुमानित व्यय 75,000 करोड़ रुपये था| इसी परिप्रेक्ष्य में भारत के लिये अब खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता हासिल करना महत्त्वपूर्ण हो गया है, जिससे इसके वर्तमान घाटे में कमी लाई जा सकेगी और इसकी निरंतर बढ़ती जनसंख्या के लिये खाद्य तेल सुरक्षा को भी सुनिश्चित कराया जा सकेगा|
  • वैज्ञानिकों ने गोभी सरसों (रेपसीड) की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कैनोला किस्म जीएससी-6 (GSC-6) और जीएससी-7 (GSC-7) और सरसों आरएलसी-3 (RLC-3) का भी उत्पादन किया है| ध्यातव्य है कि ये किस्में पूरे देश की केनोला तेल की मांग को पूर्ण करने में समर्थ होंगी|
  • पंजाब में, रेपसीड सरसों को 31,000 हेक्टेयर में बोया गया था जिससे वर्ष 2014-15 के दौरान 38,000 टन से अधिक का उत्पादन हुआ था|
  • व्यापार के दृष्टिकोण से तोरिया (toria), गोभी सरसों( gobhi sarson) और तारामीरा (taramira) को रेपसीड की श्रेणी में रखा जाता है, जबकि राया (raya) और अफ्रीकन सरसों (African sarson) को सरसों की श्रेणी में रखा जाता है| 
  • उल्लेखनीय है कि जीएससी-7 में उत्तम उत्पादन क्षमता है| यदि इसे समय पर बोया जाता है तो इससे प्राप्त होने वाला आर्थिक लाभ गेंहूँ के समान ही हो सकता है| इसके अतिरिक्त, देश में पीले बीज वाले कैनोला सरसों की पहली भारतीय किस्म (आरएलसी -3) का भी उत्पादन किया गया है| पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में ये बीज पर्याप्त मात्र में उपलब्ध हैं और किसान इन्हें कम मूल्य पर ही प्राप्त कर सकते हैं|
  • रबी के मौसम में पंजाब के अधिकांश क्षेत्र में गेंहूँ की फसल उगाई जाती है और किसान बड़े पैमाने की कृषि तकनीकों के कारण किसी भी अन्य फसल को बोने की इच्छा व्यक्त नहीं करते हैं| दरअसल, सरसों की खेती में अत्यधिक श्रमिकों (मुख्यतः फसल की कटाई के दौरान) की आवश्यकता होती है|
  • कैनोला की कृषि से फसल विविधीकरण को गति मिलेगी जिसकी पंजाब को अतिशीघ्र आवश्यकता है|
  • कृषि विशेषज्ञ अब पंजाब में फसल विविधीकरण पर बल दे रहे हैं| वे सरकार से जल स्तर में हो रही कमी की जाँच करने तथा चावल की कृषि में कमी लाने का भी अनुरोध कर रहे हैं| 

क्या है कैनोला?

  • कैनोला सरसों के अंतर्राष्ट्रीय किस्म का नाम है जिसमें 2% से कम एरुसिक अम्ल (erucic acid) होता है| इससे निर्मित खाद्य तेल को स्वास्थ्य के लिये अच्छा माना जाता है| कृषि विशेषज्ञों का यह विश्वास है कि कैनोला पंजाब में ‘पीली क्रांति’ के लिये एक अच्छा विकल्प है तथा यह राज्य देश में ‘केनोला हब’ के रूप में उभर सकता है|
  • कैनोला गेंहूँ का अच्छा विकल्प हैं| यदि सरकार इसकी खरीद को सुनिश्चित करने के लिये एक प्रभावी व्यवस्था बना देती है तो पंजाब में कैनोला की कृषि को बल मिलेगा| 

निष्कर्ष
कैनोला के बीजो को मंडी में बेचा जा सकता है, जबकि इसके तेल से किसानों को आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है| स्थानीय स्तर पर कैनोला का व्यवसाय अच्छी प्रकार से किया जा सकता है, क्योंकि खाद्य तेल की आवश्यकता प्रत्येक घर को होती है| स्वास्थ्य जागरूकता के कारण अधिकांश लोग गुणवत्तापूर्ण उत्पादों को ही खरीदते हैं अतः ‘कैनोला गाँवों’ की अवधारणा को कई क्षेत्रों में सफलतापूर्वक विकसित किया जा सकता है|

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