सामाजिक न्याय
डॉक्टरों के लिये अनिवार्य ग्रामीण सेवा
- 21 Aug 2019
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चर्चा में क्यों?
उच्चतम न्यायालय (SC) ने केंद्र सरकार और भारतीय चिकित्सा परिषद को सुझाव दिया है कि सरकारी संस्थानों में प्रशिक्षित डॉक्टरों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा (कुछ समय तक) को अनिवार्य किया जाए।
पृष्ठभूमि
- उल्लेखनीय है कि कई राज्यों ने सरकारी संस्थानों में प्रशिक्षण के पश्चात् ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने की अनिवार्य शर्त (बांड के रूप में) लागू की थी। राज्य सरकारों के इन नियमों को एसोसिएशन ऑफ मेडिकल सुपर स्पेशियलिटी एस्पिरेंट्स एंड रेजिडेंट्स (Association of Medical Super Speciality Aspirants and Residents) और अन्य ने चुनौती दी थी।
- डॉक्टरों ने यह शिकायत की थी कि ऐसी शर्तें उनके मानवाधिकारों का हनन करती हैं और साथ ही यह बंधुआ मज़दूरी (Forced Labour) जैसा प्रतीत होता है जो कि संवैधानिक अधिकारों (Constitutional Rights) का भी उल्लंघन है।
- डॉक्टरों का यह भी तर्क था कि ये शर्तें उनके करियर में बाधा भी उत्पन्न करती हैं।
उच्चतम न्यायालय का रुख
- उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि देशभर के डॉक्टर जो परा-स्नातक और सुपर स्पेशियलिटी (Super-speciality) मेडिकल कोर्स में दाखिला लेंगे वह उनके द्वारा निष्पादित अनिवार्य बॉण्ड (प्रवेश के समय स्वीकृत) से बंधे होंगे।
- उच्चतम न्यायालय ने उल्लेख किया कि परा-स्नातक और सुपर- स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों के साथ मेडिकल कॉलेजों को चलाने के लिये विशाल बुनियादी ढाँचे के विकास तथा रखरखाव हेतु वित्त की आवश्यकता पड़ती है, जबकि छात्रों से ली जाने वाली फीस निजी मेडिकल कॉलेजों की तुलना में बहुत कम है। इसके अलावा इन डॉक्टरों को उचित वेतन भी दिया जाता है।
- अनिवार्य सेवा सार्वजनिक हित में है और समाज के वंचित वर्गों के लिये लाभकारी है, शीर्ष अदालत ने विभिन्न राज्य सरकारों की नीति के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें परा-स्नातक और सुपर स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों में प्रवेश से पहले डॉक्टरों द्वारा अनिवार्य बॉण्ड निष्पादित किया जाना है।
- अपीलकर्त्ताओं ने दावा किया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी-कृत उनके अधिकारों का हनन है।
- उच्चतम न्यायालय ने इस तर्क को इस आधार पर खारिज कर दिया कि कुछ लोगों की गरिमा को सामुदायिक गरिमा से संतुलित करते हुए, तराजू को सामुदायिक गरिमा के पक्ष में झुकना चाहिये।
- शहरी क्षेत्रों में प्रति 100,000 लोगों के लिये 176 डॉक्टर हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 100,000 लोगों के लिये आठ से भी कम डॉक्टर उपलब्ध हैं और हर साल भारत में 269 निजी और सरकारी मेडिकल कॉलेजों से लगभग 31,000 डॉक्टर स्नातक करते हैं।
- आंध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने इन प्रावधानों को लागू किया है।
अनिवार्य बॉण्ड (Compulsory Bonds):
- यह डॉक्टरों को निर्धारित शर्तों के साथ अपने राज्यों में एक निश्चित अवधि के लिये, ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करने के लिये बाध्य करता है।
- डॉक्टरों की अंक सूची, प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेज़ भी आमतौर पर राज्य के अधिकारियों द्वारा विशेष पाठ्यक्रम के पूरा होने के बाद रख लिये जाते हैं।
अनिवार्य बॉण्ड की आवश्यकता
- लोगों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की आवश्यकता है किंतु राज्यों में विशेषज्ञों की कमी के चलते सरकारी सहायता के लाभार्थी उन डॉक्टरों की सेवाओं का उपयोग नहीं कर पाते जिनके प्रशिक्षण में सरकार ने अपना योगदान दिया है।
- राज्य सरकारों ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत समाज के वंचित वर्गों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिये अनिवार्य सेवा बॉण्ड पेश किया है।