चौथी राष्ट्रीय परामर्शी बैठक और उपभोक्ता की सुरक्षा : परिणाम और कार्य-नीति | 30 Jun 2018
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के मंत्रियों की चौथी राष्ट्रीय परामर्शी बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में उपभोक्ता सशक्तीकरण, संरक्षण और कल्याण के साथ-साथ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत खाद्य की अधिक प्रभावी, कुशल एवं लक्षित आपूर्ति से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई।
- इस अवसर पर उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान द्वारा राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से केंद्र के साथ मिलकर काम करने हेतु आग्रह किया गया ताकि आवश्यक वस्तुओं की कीमत को स्थिर रखते हुए मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखा जा सके।
राष्ट्रीय परामर्शी बैठक में शामिल प्रमुख बिंदु
- प्राय: आवश्यक वस्तुओं की कीमतें (कुछेक में मौसमी/अल्पकालिक वृद्धि को छोड़कर) सापेक्ष रूप से स्थिर रहती हैं। इनकी नियमित रूप से निगरानी किये जाने की आवश्यकता है, इसका एक कारण यह है कि जुलाई से नवंबर के बीच शीघ्र नष्ट होने वाली खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने की प्रवृत्ति देखने को मिलती है।
- राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों की सरकारें अपनी आवश्यकतानुसार राज्य स्तरीय मूल्य स्थिरीकरण कोष स्कीम को शुरू कर सकती हैं।
- 01 जनवरी, 2018 से विधिक माप विज्ञान (पैकबंद वस्तुएँ) (संशोधन) नियमावली, 2017 को कार्यान्वित किया जा रहा है, ताकि मात्रात्मक आश्वासन में सुधार करते हुए उपभोक्ताओं का सशक्तीकरण किया जा सके।
- इस नियमावली के अंतर्गत ई-कॉमर्स मंच पर विधिक माप विज्ञान नियमों के तहत घोषणाएँ करने, घोषणाओं में दिये गए शब्दों एवं अंकों के आकार को बड़ा करने, कोई भी व्यक्ति द्वारा समरूप पूर्व पैकबंद वस्तु पर अलग-अलग अधिकतम खुदरा मूल्य (दोहरा एम.आर.पी.) घोषित करने आदि का प्रावधान किया गया है।
- इसी प्रकार 12 अक्तूबर, 2017 को लागू नए भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम के माध्यम से उत्पाद के गुणवत्ता आश्वासन में काफी सुधार दर्ज किया गया है। इस नए अधिनियम के अंतर्गत बाज़ार सर्वेक्षण, जागरूकता का सृजन, सुरक्षा तथा वस्तुओं की गुणवत्ता में वृद्धि, निगरानी एवं प्रबंधन की सुविधा जैसे उपाय किये गए हैं।
- नए अधिनियम में मूल्यवान धातु की वस्तुओं की हॉलमार्किंग को अनिवार्य बनाने संबंधी अनुमोदित प्रावधान को भी शामिल किया गया है।
- इसके अतिरिक्त उपभोक्ताओं के कल्याण और संरक्षण पर केंद्रित विभिन्न अधिनियमों, कार्यक्रमों और स्कीमों का कार्यान्वयन भी किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण हेतु एक समन्वित और समेकित प्रशासनिक विभाग की स्थापना की जानी चाहिये। इस आवश्यकता को मद्देनज़र रखते हुए तीसरी राष्ट्रीय परामर्शी बैठक में देश के प्रत्येक राज्य में एक अलग उपभोक्ता मामलों संबंधी विभाग के सृजन का निर्णय लिया गया था।
- इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग (Consumer Disputes Redressal Commission), राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग तथा ज़िला मंचों के साथ एक त्रि-स्तरीय अर्द्ध-न्यायिक तंत्र की भी स्थापना की गई है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधारों के ज़रिये वितरण को और अधिक पारदर्शी एवं लक्षित बनाया गया है। साथ ही सभी राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में राशन कार्डों के डिजिटलीकरण का कार्य पूरा हो चुका है।
- जहाँ तक बात है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की तो यहाँ यह स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है कि इस अधिनियम के अंतर्गत तीन वर्ष बाद निर्गम मूल्यों में संशोधन करने का प्रावधान है, तथापि सरकार ने जून 2019 तक इन मूल्यों को अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है। अर्थात् मोटे अनाज/गेहूं/चावल के लिये मूल्य क्रमशः 1/2/3 रुपए प्रति किलोग्राम बना रहेगा, इसमें अभी कोई परिवर्तन नहीं होगा।
- साथ ही लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रचालनों का पूर्ण रूप से कम्प्यूटरीकरण करने की दिशा में निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। लाभार्थियों के प्रमाणन और लेन-देन की इलेक्ट्रॉनिक कैप्चरिंग के लिये करीब 60% उचित दर की दुकानों में ई-पॉइंट ऑफ सेल उपकरणों की स्थापना भी की गई है।
- इसके अतिरिक्त जिन-जिन क्षेत्रों में यह कार्य धीमी गति से चल रहा है, वहाँ तय समय में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का आग्रह किया गया है।
- राज्यों/संघ शासित प्रदेशों से भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से खादयान्नों का समय से उठान सुनिश्चित करने का भी अनुरोध किया गया, ताकि खादयान्नों के मासिक वितरण में कोई विलम्ब न हो।
उपभोक्ता सशक्तीकरण: केंद्र एवं राज्य सरकार की संयुक्त ज़िम्मेदारी है।
- सम्मेलन के अंतर्गत इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि उपभोक्ताओं को सशक्त बनाना तथा उनके कल्याण को सुनिश्चित करना भारत सरकार एवं राज्य सरकारों की संयुक्त ज़िम्मेदारी है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि सभी के द्वारा समन्वित रूप से कार्रवाई की जाए।
अगले वर्ष की कार्य-योजना
इसके अलावा राष्ट्रीय परामर्शी बैठक में अगले वर्ष के लिये निम्नलिखित कार्य-योजना को अपनाने पर भी सहमति व्यक्त की गई-
- राज्य के सभी मूल्य रिपोर्टिंग केंद्रों द्वारा सप्ताह के सातों दिन और आँकड़ों के संग्रहण के लिये निर्धारित किये गए तरीके के अनुसार ये मूल्य आँकड़े उपलब्ध कराए जाने चाहिये। जिन राज्यों में केन्द्रों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, वहाँ अतिरिक्त केन्द्रों की स्थापना की जा सकती है।
- भारत सरकार द्वारा प्रभावी बाज़ार उपायों को ध्यान में रखते हुए 20 लाख मीट्रिक टन तक दालों के बफर स्टॉक का सृजन किया गया है। राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों द्वारा मिड-डे-मील, आंगनबाड़ी स्कीम, अस्पतालों, छात्रावासों जैसी स्कीमों सहित विभिन्न कल्याणकारी स्कीमों के लिये आवश्यकतानुसार इस स्टॉक का उपयोग किया जा सकता है।
- समरूप वस्तुओं में प्रभावी बाज़ार उपायों के लिये राज्यों द्वारा राज्स्तरीय मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना की जा सकती है। राज्य मूल्य स्थिरीकरण कोष में भारत सरकार का अंशदान, मूल्य स्थिरीकरण कोष के संबंध में बनाए गए दिशा-निर्देशों के प्रावधानों के अनुरूप ही होगा।
- राज्य सरकारों द्वारा समरूप पूर्व-पैकबंद वस्तुओं पर दोहरी एम.आर.पी. की घोषणा पर उपयुक्त कार्रवाई की जानी चाहिये।
- राज्य सरकारों द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि ई-कॉमर्स की सभी संस्थाएँ विधिक माप विज्ञान (पैकबंद वस्तुएँ) नियमावली के अनुसार ही अनिवार्य घोषणाएँ करें।
- राज्य सरकारें, राज्य और ज़िला उपभोक्ता मंचों के लिये नियुक्ति, सेवाकाल आदि के संबंध में मॉडल नियम का कार्यान्वयन कर सकती है जिसका अनुमोदन माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया गया है।
- राज्य सरकारों को उपभोक्ता मंचों के अध्यक्ष और सदस्यों के पदों की रिक्तियों को भरने, राज्य उपभोक्ता हेल्पलाइनों के प्रभावी कार्यकरण को सुनिश्चित करने, राज्य उपभोक्ता कल्याण कोष की स्थापना करने की दिशा में प्रभावी कार्य करना चाहिये।
- राज्य सरकारें, नोडल अधिकारी नियुक्त कर सकती हैं और प्रत्यक्ष बिक्री दिशा-निर्देश, 2016 के तहत तंत्र की मॉनिटरिंग के कार्यान्वयन को सुनिश्चित कर सकती हैं।