विमुद्रीकरण: समग्र विश्लेषण | 09 Nov 2020
प्रिलिम्स के लियेविमुद्रीकरण और इसका उद्देश्य मेन्स के लियेकाले धन और नकली नोटों को समाप्त करने तथा कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में विमुद्रीकरण की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
8 नवंबर, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित नोटबंदी या विमुद्रीकरण (Demonetisation) के चार वर्ष पूरे हो गए हैं। काले धन को समाप्त करने के उद्देश्य से उठाए गए इस कदम के कारण उस समय प्रचलित तकरीबन 86 प्रतिशत मुद्रा अमान्य हो गई थी यानी उसका कोई मूल्य नहीं रह गया था।
प्रमुख बिंदु
- चार वर्ष बाद भी सरकार के इस निर्णय को लेकर आम लोगों की राय काफी बँटी हुई है, कुछ लोगों का मानना है कि सरकार के इस कदम से काले धन को कम करने, कर अनुपालन बढ़ाने और अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता को बढ़ावा देने में काफी मदद की है।
- वहीं आलोचकों का मत है कि नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी गहरे तक प्रभावित किया है और इससे नकदी पर निर्भर रहने वाले अधिकांश छोटे व्यवसायों को कठिनाई का सामना करना पड़ा था।
- विमुद्रीकरण को लागू किये जाने के पीछे मुख्यतः तीन उद्देश्य थे-
- काले धन को समाप्त करना।
- नकली नोटों के प्रचलन को समाप्त करना।
- डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देकर कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाना।
क्या होता है विमुद्रीकरण?
- विमुद्रीकरण का अभिप्राय एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया से है, जिसमें देश की सरकार द्वारा देश की मुद्रा प्रणाली में हस्तक्षेप करते हुए किसी विशेष प्रकार की मुद्रा की कानूनी वैधता समाप्त कर दी जाती है।
- विमुद्रीकरण को प्रायः कर प्रशासन के एक उपाय के रूप में देखा जाता है, जहाँ काला धन छिपाने वाले लोगों को न चाहते हुए भी अपनी संपत्ति की घोषणा करनी पड़ती है और उस पर कर भी देता पड़ता है।
काला धन
- सरकार की मानें तो काले धन को समाप्त करना विमुद्रीकरण का प्राथमिक लक्ष्य था, हालाँकि कई लोगों ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आँकड़ों के आधार पर नोटबंदी के इस उद्देश्य पर प्रश्नचिह्न लगाया है।
- काला धन असल में वह आय है जिसे कर अधिकारियों से छुपाने का प्रयास किया जाता है यानी इस प्रकार की नकदी का देश की बैंकिंग प्रणाली में कोई हिसाब नहीं होता है और न ही इस पर किसी प्रकार का कर दिया जाता है।
- वर्ष 2018 में भारतीय रिज़र्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट में दर्शाया गया था कि विमुद्रीकरण के दौरान अवैद्य घोषित किये गए कुल नोटों का तकरीबन 99.3 प्रतिशत यानी लगभग पूरा हिस्सा बैंकों के पास वापस आ गया था।
- आँकड़ों के मुताबिक, अमान्य घोषित किये गए 15.41 लाख करोड़ रुपए में से 15.31 लाख करोड़ रुपए के नोट वापस आ गए थे।
- फरवरी 2019 में तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया था कि विमुद्रीकरण समेत सभी प्रकार के काले धन को समाप्त करने के लिये उठाए गए विभिन्न उपायों के कारण 1.3 लाख करोड़ रुपए का काला धन बरामद किया गया था, जबकि सरकार ने विमुद्रीकरण की घोषणा करते हुए इस संबंध में तकरीबन 3-4 लाख करोड़ रुपए बरामद करने की बात कही थी।
- अतः आँकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी भारतीय अर्थव्यवस्था से काले की समस्या को समाप्त करने में कुछ हद तक विफल रही है।
नकली नोटों के प्रचलन को समाप्त करना
- नकली नोट या नकली नोटों के प्रचलन को समाप्त करना सरकार द्वारा लागू किये गए विमुद्रीकरण का दूसरा सबसे बड़ा लक्ष्य था।
- आँकड़ों के अनुसार, जहाँ एक ओर वित्तीय वर्ष 2015-16 में 6.32 लाख नकली नोट ज़ब्त किये गए थे, वहीं दूसरी ओर वित्तीय वर्ष 2016-17 में 7.62 लाख नकली नोट ज़ब्त किये गए थे। नोटबंदी लागू होने के चार वर्ष बाद अब तक 18. 87 लाख नकली नोट ज़ब्त किये गए थे।
- रिज़र्व बैंक की वर्ष 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट की मानें तो विमुद्रीकरण के बाद के वर्ष में ज़ब्त किये गए अधिकांश नोटों में 100 रुपए मूल्यवर्ग की संख्या सबसे अधिक है।
- वर्ष 2019-20 में 1.7 लाख नकली नोट, वर्ष 2018-19 में 2.2 लाख नकली नोट और वर्ष 2017-18 में 2.4 लाख नकली नोट ज़ब्त किये गए थे।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2018-19 की तुलना में वर्ष 2019-20 में 10, 50, 200 और 500 रुपए मूल्यवर्ग में ज़ब्त किये गए नकली नोटों की संख्या में क्रमशः 144.6 प्रतिशत, 28.7 प्रतिशत, 151.2 प्रतिशत और 37.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
- इस प्रकार निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण जैसे कठोर कदम के बावजूद अभी भी अर्थव्यवस्था में नकली नोटों का प्रसार हो रहा है।
कैशलेस अर्थव्यवस्था का निर्माण करना
- सरकार द्वारा नोटबंदी को दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने के एक उपाय के रूप में प्रस्तुत किया गया था। हालाँकि रिज़र्व बैंक के आँकड़ों की मानें तो नोटबंदी लागू होने से अब तक अर्थव्यवस्था में प्रचलित नोटों के कुल मूल्य और मात्रा में वृद्धि दर्ज की गई है।
- आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 में अर्थव्यवस्था में प्रचलित कुल नोटों की संख्या तकरीबन 16.4 लाख करोड़ रुपए थी, जो कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में बढ़कर 24.2 लाख करोड़ रुपए हो गई है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में प्रचलित नोटों के मूल्य में तुलनात्मक रूप से वृद्धि देखने को मिली है।
- इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी लागू किये जाने के बाद भी अर्थव्यवस्था में प्रचलित नोटों की संख्या और मात्रा में वृद्धि हुई है, हालाँकि नोटों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ डिजिटल लेन-देन में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- कोरोना वायरस महामारी ने भी लोगों के बीच नकदी के प्रचलन को और बढ़ावा दिया है। जब मार्च माह में सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी तो आम लोगों ने किसी भी आपातकालीन परिस्थिति से निपटने के लिये नकदी को एकत्र करना शुरू कर दिया, जिसके कारण हाल के कुछ दिनों में अर्थव्यवस्था में नकदी के प्रचलन में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है।
डिजिटल लेनदेन में बढ़ोतरी
- इसी वर्ष अक्तूबर माह में प्रकाशित रिज़र्व बैंक के आँकड़ों से पता चलता है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत में डिजिटल भुगतान की मात्रा में 3,434.56 करोड़ की भारी वृद्धि हुई है।
- आँकड़ों के अनुसार, बीते पाँच वर्षों में डिजिटल भुगतान की मात्रा में 55.1 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई है, वहीं डिजिटल भुगतान के मूल्य के मामले में 15.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है।
- अक्टूबर 2020 में एकीकृत भुगतान प्रणाली (UPI) आधारित भुगतान ने 207 करोड़ लेन-देन के साथ एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
विमुद्रीकरण: दीर्घकाल के लिये लाभदायक
- कई जानकार मानते हैं कि विमुद्रीकरण का अल्प काल में अर्थव्यवस्था पर काफी गहरा प्रभाव हो सकता है, किंतु दीर्घकाल में यह भारत और संपूर्ण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
- चूँकि विमुद्रीकरण के निर्णय ने कुछ हद तक भारत में डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इसलिये भारत डिजिटल आधार पर होने वाली चौथी औद्योगिक क्रांति में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित कर सकता है।
- इसके अलावा विमुद्रीकरण के कारण प्रत्यक्ष कर में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है, जो कि अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा संकेतक है।
निष्कर्ष
समग्र विश्लेषण से ज्ञात होता है कि नोटबंदी के निर्णय ने देश में डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने और वित्तीय प्रणाली के औपचारिकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि विमुद्रीकरण अपने सभी उद्देश्यों को पूरा करने में पूर्णतः विफल रहा है और काले धन को समाप्त करने का इसका प्राथमिक लक्ष्य अब तक प्राप्त नहीं किया जा सका है।