जैव विविधता और पर्यावरण
वन सर्वेक्षण
- 09 Mar 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा गठित एक समिति ने वन आच्छादित क्षेत्र का आकलन करने के लिये वन सर्वेक्षण के अंतर्गत वनों में और वन क्षेत्र से बाहर उगने वाले पेड़ों (निजी/सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण या ग्रीनलैंड) के अलग-अलग सर्वेक्षण की सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु
- भारत सरकार प्रत्येक दो वर्षों में वन सर्वेक्षण करवाती है जिसमें भारत के भौगोलिक क्षेत्र में वनों से आच्छादित हिस्से का आकलन किया जाता है।
- इसके अंतर्गत जंगल में और जंगलों से बाहर उगने वाले पेड़ों को शामिल किया जाता है।
- आलोचक काफी समय से इस बात की आलोचना करते रहे हैं कि दोनों क्षेत्रों के पेड़ों को एक ही श्रेणी में शामिल करना पारिस्थितिक रूप से बेहतर नहीं है, लेकिन सरकारी समिति द्वारा इस तरह की सिफारिश करने का यह पहला उदाहरण है।
- इंडिया स्टेट ऑफ़ फॉरेस्ट रिपोर्ट (SFR), 2017, जो फरवरी 2018 में जारी की गई, के अनुसार, भारत में 2015 और 2017 के बीच वन क्षेत्र में 0.94% की वृद्धि दर्ज़ की गई।
- दस्तावेज़ में कहा गया है कि भारत में लगभग 7,08,273 वर्ग किमी. वन आच्छादित क्षेत्र है जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.53% (32,87,569 वर्ग किमी.) है।
- 1988 से सरकार का दीर्घकालिक लक्ष्य भारत में वन आच्छादित क्षेत्र को देश के भौगोलिक क्षेत्र का 33% करना रहा है।
- SFR के विभिन्न संस्करणों में वन आच्छादित क्षेत्र का प्रतिशत 21 के आस-पास रहा है, अत: सरकार अपने मूल्यांकन में वनों के रूप में निर्दिष्ट क्षेत्रों, जैसे निजी/सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण या ग्रीनलैंड को भी शामिल करती है।