वन अधिनियम, 1927 | 19 Nov 2019
प्रीलिम्स के लिये:
वन अधिनियम, 1927
मेन्स के लिये:
वन अधिनियम 1927 में संशोधन का मसौदा तथा वन निवासियों पर इसका प्रभाव।
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय वन अधिनियम 1927 (Forest Act of 1927) में संशोधन के लिये लाए गये एक मसौदे में कुछ खामियाँ होने के कारण उसे वापस लेने का निर्णय लिया है।
प्रमुख बिंदु
- मार्च 2019 में इस मसौदे के प्रस्तावित किये जाने के बाद से ही कुछ पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं और राज्य सरकारों द्वारा इस प्रस्तावित कानून का विरोध किया जा रहा था।
- केंद्र सरकार ने मसौदा वापस लेने का फैसला किया है ताकि जनजातीय लोगों और वनवासियों के अधिकार छीने जाने के बारे में किसी भी तरह की आशंका को दूर किया जा सके।
वन अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन
- भारतीय वन अधिनियम (Indian Forest Act) 2019 की परिकल्पना भारतीय वन अधिनियम, 1927 में संशोधन के रूप में की गई है।
- यह भारत के वनों की समकालीन चुनौतियों का समाधान करने का एक प्रयास है।
- इसमें वन अपराध को रोकने के लिये हथियारों आदि का उपयोग करते हुए वन-अधिकारी को क्षतिपूर्ति प्रदान करने का प्रस्ताव दिया गया है।
- संशोधन मसौदा के अनुसार, वन अधिकारी (जिसका पद रेंजर के पद से नीचे न हो) के पास वन अपराधों की जाँच करने और दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure-CrPC), 1973 के तहत तलाशी करने करने या तलाशी संबंधी वारंट जारी करने की शक्ति होंगी।
- कोई भी वन-अधिकारी, वनपाल या उससे बड़े पद पर पदस्थ अधिकारी, किसी भी समय अपने क्षेत्राधिकार के अंदर किसी भी भूमि में प्रवेश कर सकता है और निरीक्षण कर सकता है।
- इस अधिनियम में वनों से प्राप्त खनन उत्पादों और सिंचाई या उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले पानी के आकलित मूल्य का 10% तक वन विकास उपकर के रूप में प्रस्तावित किया गया था। यह राशि एक विशेष कोष में जमा की जाती और इसका उपयोग विशेष रूप से वनीकरण; वन संरक्षण और वृक्षारोपण, वन विकास और संरक्षण से जुड़े अन्य सहायक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किया जाना था।
क्यों विवादास्पद था यह अधिनियम?
- नए मसौदे के अनुसार, वन अधिकारियों को "कानूनों के उल्लंघन" करने वाले आदिवासियों को गोली मारने का पूर्ण अधिकार दिया गया था।
- किसी फॉरेस्ट गार्ड द्वारा "अपराधी" को मारे जाने की स्थिति में राज्य सरकार तब तक उस मामले पर अभियोजन शुरू नहीं कर सकती थी जब तक कि किसी कार्यकारी मजिस्ट्रेट के अधीन इस मामले की जाँच शुरू न हो।
- नए संशोधन के तहत, वन विभाग किसी भी जंगल को आरक्षित घोषित करने और वनों में निवास करने वाले समुदायों को उनकी पैतृक भूमि से अलग करने का अधिकार दिया गया था।
- इससे अपने जीवन-यापन के लिये वनों पर निर्भर जनजातीय आबादी बहुत अधिक प्रभावित होती।