मेघालय से हटा अफस्पा, अरुणाचल प्रदेश में भी घटा प्रभाव | 25 Apr 2018
चर्चा में क्यों
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा मेघालय से पूरी तरह से विवादास्पद अफस्पा (आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट) को हटा दिया गया है। वहीं इसे अरूणाचल प्रदेश के असम सीमा से लगे 8 थाना क्षेत्रों तथा म्यांमार सीमा से लगे 3 थाना क्षेत्रों तक सीमित कर दिया गया है। अफस्पा पुलिस स्टेशन रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में अरुणाचल प्रदेश में 16 अफस्पा पुलिस स्टेशन थे, जो अब घटकर सिर्फ 8 रहे गए हैं।
- एक अन्य निर्णय में गृह मंत्रालय ने पूर्वोत्तर में विद्रोहियों के लिये आत्मसमर्पण-सह-पुनर्वास नीति के तहत 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 4 लाख रुपए तक सहायता राशि कर दी है। सरकार की यह नई पॉलिसी 1 अप्रैल, 2018 से लागू होगी।
संरक्षित क्षेत्र
- इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा मणिपुर, मिज़ोरम और नागालैंड जाने वाले विदेशियों के लिये प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट और संरक्षित क्षेत्र परमिट में भी थोड़ी ढिलाई बरती गई है। हालाँकि, पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान जैसे देशों से आने वाले यात्रियों के लिये अभी इस क्षेत्र में प्रतिबंध जारी रहेगा।
- गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि 6 दशकों से लागू प्रतिबंध पर एक अप्रैल से पाँच वर्षों के लिये छूट देने का निर्णय लिया गया है।
- ज्ञात हो कि इससे पूर्व बिना विशेष परमिट के विदेशी यात्रियों को इस क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं थी।
- विदेशी नागरिक (संरक्षित क्षेत्र) आदेश, 1958 के तहत देश के कुछ राज्यों में इनर लाइन एवं अंतर्राष्ट्रीय सीमा के बीच के सभी क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था।
- इस प्रकार से संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम, सिक्किम के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड एवं जम्मू-कश्मीर के कुछ क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है।
विद्रोही घटनाओं में 63 फीसदी की आई कमी
- गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि पिछले 4 साल में देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में विद्रोहियों से संबंधित घटनाओं में 63 फीसदी तक कमी आई है।
- फोर्स पर हमले में 43 फीसदी की कमी आई है, जबकि 2017 में नागरिकों की मौत में 83 फीसदी और सिक्योरिटी फोर्स पर हमले में 43 फीसदी तक कमी आई हैं।
- हालाँकि, 2000 में 85 प्रतिशत तक उत्तर पूर्वी विद्रोही की घटनाओं में कमी आई थी और इससे पहले 1997 में 96 प्रतिशत तक कमी आई थी।
- गृह मंत्रालय ने मार्च 2018 में कहा कि असम, अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में 10 भारतीय रिज़र्व बटालियनों की तैनाती को मंज़ूरी दे दी है। पूर्वोत्तर में तैनात केंद्रीय बलों की जगह अब भारतीय रिज़र्व बटालियनें लेंगी।
क्या है अफस्पा?
- सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) 1958 में संसद द्वारा पारित किया गया था। आरंभ में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और त्रिपुरा में भी यह कानून लागू किया गया था।
- विदित हो कि मणिपुर सरकार ने केंद्र सरकार के विरोध के बावजूद 2004 में राज्य के कई हिस्सों से इस कानून को हटा दिया।
- बढ़ती उग्रवादी गतिविधियों के चलते जम्मू-कश्मीर में 1990 में यह कानून लागू किया गया था। तब से आज तक जम्मू-कश्मीर में यह कानून लागू है, लेकिन राज्य का लेह-लद्दाख क्षेत्र इस कानून के अंतर्गत नहीं आता।
- आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर्स एक्ट (अफस्पा) सेना को जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के विवादित इलाकों में सुरक्षाबलों को विशेष अधिकार देता है। इस एक्ट को लेकर काफी विवाद है और इसके दुरुपयोग का आरोप लगाकर लंबे समय से इसे हटाने की मांग की जाती रही है।
- अफस्पा का सेक्शन 4, सुरक्षाबलों को किसी भी परिसर की तलाशी लेने और बिना वॉरंट किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है। साथ ही खतरे का संदेह होने की स्थिति होने पर उस स्थान को नष्ट करने का आदेश भी दे सकता है।
- इसके तहत विवादित इलाकों में सुरक्षाबल किसी भी स्तर तक शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं। संदेह होने की स्थिति उन्हें किसी गाड़ी को रोकने, तलाशी लेने और उसे सीज करने का अधिकार होता है।
- इस कानून के तहत सेना के जवानों को कानून तोड़ने वाले व्यक्ति पर गोली चलाने का भी अधिकार है। यदि इस दौरान उस व्यक्ति की मौत भी हो जाती है तो उसकी जवाबदेही गोली चलाने या ऐसा आदेश देने वाले अधिकारी पर नहीं होगी।
- अफस्पा के तहत केंद्र सरकार राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर किसी राज्य या क्षेत्र को अशांत घोषित कर, वहाँ केंद्रीय सुरक्षाबलों को तैनात करती है।
अफस्पा का इतिहास
- सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) 1958 को एक अध्यादेश के माध्यम से लाया गया था तथा तीन माह के भीतर ही इसे कानूनी जामा पहना दिया गया था।
- 1958, पूर्वोत्तर भारत :
♦ भारत में संविधान लागू होने के बाद से ही पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ रहे अलगाववाद, हिंसा और विदेशी आक्रमणों से प्रतिरक्षा के लिये मणिपुर और असम में 1958 में अफस्पा लागू किया गया था।
♦ इसे 1972 में कुछ संशोधनों के बाद असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नागालैंड सहित समस्त पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था।
♦ त्रिपुरा में उग्रवादी हिंसा के चलते 16 फरवरी 1997 को अफस्पा लागू किया गया था, जिसे स्थिति सुधरने पर 18 साल बाद मई 2015 में हटा लिया गया था।
- 1983, पंजाब एवं चंडीगढ़ :
♦ पंजाब में बढ़ते अलगाववादी हिंसक आंदोलन से निपटने के लिये सेना की तैनाती का रास्ता साफ करते हुए 1983 में केंद्र सरकार द्वारा अफस्पा (पंजाब एंड चंडीगढ़) अध्यादेश लाया गया जो 6 अक्तूबर को कानून बन गया। यह कानून 15 अक्तूबर, 1983 को पूरे पंजाब और चंडीगढ़ में लागू कर दिया गया। लगभग 14 वर्षों तक लागू रहने के बाद 1997 में इसे वापस ले लिया गया।
- 1990, जम्मू-कश्मीर :
♦ जम्मू-कश्मीर में हिंसक अलगाववाद का सामना करने के लिये सेना को विशेष अधिकार देने की प्रक्रिया के चलते यह कानून लाया गया, जिसे 5 जुलाई, 1990 को पूरे राज्य में लागू कर दिया गया।
♦ इस कानून के पारित होने से पहले भी उसी वर्ष एक अध्यादेश जारी किया गया था। तब से आज तक जम्मू-कश्मीर में यह कानून लागू है, लेकिन राज्य का लेह-लद्दाख क्षेत्र इस कानून के अंतर्गत नहीं आता।
क्या स्थिति बन सकती है?
- मणिपुर से अफस्पा को हटा लेने के बाद अन्य राज्यों से भी इसे हटाने की मांग होने लगेगी। वास्तविकता यह है कि अफस्पा हटा लेने के बाद कोई भी सशस्त्र बल अपने कर्मियों के लिये उचित कानूनी संरक्षण के अभाव में विद्रोह प्रभावित क्षेत्रों में किसी भी अभियान के लिये ऊर्जावान महसूस नहीं करेगा, साथ ही इससे सुरक्षाबलों का मनोबल प्रभावित होगा।
- अफस्पा के बिना यदि सुरक्षाबल कहीं अभियान चलाते भी हैं तो ऐसी संभावना बन सकती है कि विद्रोही गुट स्थानीय लोगों पर दबाव बनाकर फर्ज़ी मामले दर्ज करा सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त यह भी संभावना बन सकती है कि अफस्पा के अभाव में राष्ट्रीय राजमार्गों एवं अन्य मार्गों पर विद्रोही गुटों द्वारा ज़बरन वसूली की घटनाएँ आम हो जाएँ।
- गौरतलब है कि ज़बरन वसूली विद्रोही गुटों के लिये धन जुटाने का प्रचलित माध्यम है।
- आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों और राजद्रोह के मामलों में सशस्त्र बल इस कानून द्वारा मिली शक्तियों के कारण प्रभावशाली तरीके से काम कर पाते हैं। इस प्रकार यह कानून देश की एकता और अखंडता की रक्षा में योगदान दे रहा है।
- अशांत क्षेत्रों में कानून व्यवस्था एवं शांति बनाए रखने में इस कानून के प्रावधानों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस कानून के माध्यम से मिले अतिरिक्त अधिकारों के कारण सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ा है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुई आलोचना
- अफस्पा के लागू होने के बाद से इसकी बहुत सी आलोचनाएँ हुई हैं। मानवाधिकार संगठन द्वारा इस कानून को 'बेरहम' कहकर संबोधित किया गया है।
- 31 मार्च, 2012 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी कहा गया था कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अफस्पा का कोई स्थान नहीं है, इसलिये इसको रद्द कर देना अधिक बेहतर है। यह रिपोर्ट 2013 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश की गई थी।
- ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा भी यह कहते हुए इस कानून की आलोचना की गई थी कि इसमें दुरुपयोग, भेदभाव और दमन की बहुत अधिक संभावनाएँ शामिल हैं।