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भारतीय अर्थव्यवस्था

खाद्य मुद्रास्फीति

  • 17 May 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मुद्रास्फीति, खाद्य मुद्रास्फीति, सीपीआई, आरबीआई।

मेन्स के लिये :

खाद्य मुद्रास्फीति और मुद्दे, वृद्धि और विकास।

चर्चा में क्यों? 

दुनिया भर में खाद्य कीमतें इस वर्ष उच्च स्तर पर पहुँच गई हैं क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से विश्व के देशों ने गेहूँ और उर्वरक के इन प्रमुख निर्यातक देशों से अपने आयात को कम कर दिया है, साथ ही सूखा, बाढ़ और जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़े हुए तापमान से भी विश्व स्तर पर गेहूँ के उत्पादन में कमी आई है, इस समस्या के समाधान के लिये  गेहूँ के अधिक उत्पादन की आवश्यकता है।

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खाद्य मुद्रास्फीति का कारण:

  • रूस-यूक्रेन संघर्ष:
    • रूस और यूक्रेन वैश्विक गेहूँ निर्यात के लगभग 30% की आपूर्ति करते हैं, लेकिन युद्ध के कारण उनकी अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है।
  • गेहूँ का उच्च भंडार:
    • जिन देशों में इसे उगाया जाता है, वहाँ गेहूँ की खपत अपेक्षाकृत अधिक रहती है।
    • लेकिन रूस और यूक्रेन से निर्यात में गिरावट ने वैश्विक बाज़ार में गेहूँ के लिये प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ा दिया है, जिससे इसके लागत बढ़ रही है जो विशेष रूप से गरीब, कर्ज में डूबे उन देशों के लिये प्रतिकूल परिस्थिति उत्पन्न करता है जो आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
    • अफ्रीका द्वारा किये जाने वाले गेहूँ आयात के लगभग 40% की आपूर्ति यूक्रेन और रूस द्वारा की जाती है, जबकि वैश्विक गेहूँ की बढ़ती कीमतों के कारण लेबनान में ब्रेड की कीमतों में 70% से अधिक की वृद्धि हुई है।
  • खाद्य भंडार और पण्य (Commodity ) बाज़ार:
    • 2007-2008 और 2011-2012 के पिछले खाद्य मूल्य संकट के बाद भी सरकारें अत्यधिक अटकलों पर अंकुश लगाने एवं खाद्य भंडार और पण्य बाज़ारों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने में विफल रही हैं।

मुद्रास्फीति की वर्तमान स्थिति:

  • खाद्य और कृषि संगठन के खाद्य मूल्य सूचकांक ने अप्रैल 2022 के लिये वर्ष-दर-वर्ष 29.8% की वृद्धि दर्शाई है। 
  • इसके अलावा सभी कमोडिटी समूह के मूल्य सूचकांकों में भारी उछाल आया है: अनाज (34.3%), वनस्पति तेल (46.5%), डेयरी (23.5%), चीनी (21.8%) और मांस (16.8%)।
  • सीधे शब्दों में कहें तो खाद्य मुद्रास्फीति पहले से ही विश्व स्तर पर बढ़ रही है, युद्ध के कारण  आपूर्ति में व्यवधान, दक्षिण अमेरिका में शुष्क मौसम, उच्च कच्चे तेल की कीमतें, साथ ही जैव-ईंधन हेतु मक्का, चीनी, ताड़ और सोयाबीन तेल की उच्च कीमतें आदि।

खाद्यान्न की वैश्विक कीमतें घरेलू कीमतों को कैसे प्रभावित करती हैं?

  • उपरोक्त वैश्विक मुद्रास्फीति का घरेलू खाद्य कीमतों में संचरण मूल रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि किसी देश की खपत/उत्पादन का कितना आयात/निर्यात किया जाता है।
  • ऐसा हस्तांतरण खाद्य तेलों और कपास में स्पष्ट है, जहांँ भारत की खपत का दो-तिहाई और इसके उत्पादन का पांँचवां हिस्से का क्रमशः आयात और निर्यात किया जाता है।  
  • गेहूँँ के मामले में मार्च के मध्य से गर्मी की लहर गंभीर रूप से पैदावार को प्रभावित कर रही है, सार्वजनिक स्टॉक और समग्र घरेलू उपलब्धता दोनों दबाव में हैं, यहांँ तक ​​कि खुले बाज़ार की कीमतें निर्यात समता मूल्य स्तर तक बढ़ गई हैं।
  • आश्चर्य की बात नहीं कि केंद्र ने अपनी प्रमुख मुफ्त अनाज योजना के तहत गेहूँँ आवंटन को कम करने और अधिक चावल की पेशकश करने का फैसला किया है। इसी तरह निर्यात मांग भी मक्के के व्यापार को उसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी ऊपर रखने में मदद कर रही है। लेकिन उच्च खाद्य तेल की कीमतों के साथ पशुओं के चारे की लागत भी बढ़ेगी जिससे दूध, अंडे और मांँस की कीमतें बढ़ जाएंगी।
  • हालांँकि अभी के लिये राहत की बात यह है कि दाल, चीनी, प्याज़, आलू और ज़्यादातर गर्मियों की सब्जियों में मुद्रास्फीति बहुत कम या न के बराबर है। 
  • उस सीमा तक भारत में खाद्य मुद्रास्फीति अभी "सामान्यीकृत" नहीं हुई है।  
    • चीनी एक ऐसी वस्तु है जिसमें मिलों द्वारा रिकॉर्ड निर्यात के बावजूद खुदरा कीमतें ज़्यादा नहीं बढ़ी हैं।
    • इसकी वजह उत्पादन का ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंँचना है।

खाद्य मुद्रास्फीति से निपटने के उपाय: 

  • मांस और डेयरी उत्पादों का कम उपभोग:
    • चूँकि दुनिया के अनाज का एक बड़े हिस्से का प्रयोग पशुओं को खिलाने में होता है, लोगों को कम मांस और डेयरी उत्पादों के उपभोग के लिये तैयार करने से अनाज की आपूर्ति में नाटकीय रूप से वृद्धि हो सकती है।
      • इस साल निर्यात बाज़ारों में अनाज की वैश्विक कमी 20-25 मिलियन टन रहने का अनुमान है,लेकिन यदि अकेले यूरोपीय देश ही पशु उत्पादों की खपत में 10% की कटौती करते हैं, तो वे मांग को 18-19 मिलियन टन तक कम कर सकते हैं।
  • अनाज भंडारण में सुधार:  
    • विशेष रूप से उन देशों द्वारा अनाज के भंडारण में सुधार करना जो किआयात पर अत्यधिक निर्भर हैं (उन देशों को नहीं जो अक्सर अनाज़ की जगह निर्यात के लिये नकदी फसलें उगाते हैं) इससे उन्हें अपने यहाँअधिकअनाज़ उगाने में मदद मिल सकती है। 
  • व्यापक किस्म की फसलें उगाना: 
    • विश्व स्तर पर, केवल कुछ अनाजों पर निर्भरता कम करने के लिये विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने से खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है।
  • नीति परिवर्तन:
    • अफ्रीका के नए महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र जैसे देशों में नीतिगत बदलाव के माध्यम से अंततः कुछ गरीब देश दूरस्थ उत्पादकों और संवेदनशील आपूर्ति शृंखलाओं पर अपनी निर्भरता को कम कर सकते हैं।
  • जलवायु-स्मार्ट खेती में निवेश: 
    • इसके अलावा ग्रह के गर्म होने पर फसल की रक्षा के लिये जलवायु-स्मार्ट खेती में निवेश,  वैश्विक खाद्य आपूर्ति को बढ़ाने में मदद करेगा, जबकि ऋण राहत प्रदान करने से सबसे गरीब देशों को खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव का प्रबंधन करने के लिये अधिक वित्तीय मदद मिल सकती है।
  • घरेलू उत्पादन में वृद्धि: 
    • संक्षेप में जबकि वैश्विक खाद्य मुद्रास्फीति एक वास्तविकता है, इसके "आयातित" होने के प्रभावों को नियंत्रित करने का एकमात्र तरीका घरेलू उत्पादन को बढ़ाना है।

आगे की राह

  • आयात नीति में एकरूपता होनी चाहिये क्योंकि यह अग्रिम रूप से उचित बाज़ार संकेतकों से अवगत कराती है। आयात शुल्क के माध्यम से हस्तक्षेप करना कोटा से बेहतर है। यह उपग्रह रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीकों का उपयोग करके अधिक सटीक फसल पूर्वानुमानों की भी मांग करती है ताकि फसल वर्ष में बहुत पहले से कमी/अधिशेष का संकेत दिया जा सके।
  • इसके अलावा वर्ष 2011-12 का एक दशक पुराना सीपीआई आधार वर्ष को संशोधित और अद्यतन करने की आवश्यकता है ताकि भोजन की आदतों तथा आबादी की जीवनशैली में बदलाव को प्रतिबिंबित किया जा सके। बढ़ते मध्यम वर्ग के साथ गैर-खाद्य वस्तुओं पर खर्च बढ़ गया है और इसे सीपीआई में बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है, जिससे आरबीआई गैर-परिवर्तनशील खंड (मुख्य मुद्रास्फीति) को बेहतर ढंग से लक्षित कर सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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