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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

खाद्य-पशु खेती और रोगाणुरोधी प्रतिरोध

  • 18 Nov 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध, महामारी, जलवायु परिवर्तन, WHO, ICMR, जूनोटिक रोग।

मेन्स के लिये:

खाद्य-पशु खेती और रोगाणुरोधी प्रतिरोध।

चर्चा में क्यों?

फैक्टरी फार्मिंग में पशुओं का खराब स्वास्थ्य हमारी खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण और जलवायु को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है, जिससे रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) हो सकता है।

  • फैक्टरी फार्मिंग या गहन खाद्य-पशु फार्मिंग सूअर, गाय जैसे जानवरों और पक्षियों की तीव्र और सीमित खेती है। ये वे औद्योगिक सुविधाएँ हैं जिनके तहत घर के अंदर न्यूनतम लागत पर जानवरों के उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की जाती है

मुद्दे:

  • दुनिया भर में जानवरों की पीड़ा को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है या महामारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट, जलवायु परिवर्तन एवं जैवविविधता के नुकसान, खाद्य असुरक्षा तथा कुपोषण जैसे बड़े मुद्दों से अलग देखा जाता है।
    • वास्तव में यह वैश्विक समस्याओं को बढ़ा सकता है और साथ ही अरबों जानवरों के लिये अत्यधिक क्रूरता पैदा कर सकता है।
  • सस्ते मांस की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये हर साल 50 बिलियन से अधिक फैक्टरी फार्म स्थापित किये जा रहे हैं जिनमें जानवरों का उत्पादन करने के लिये आनुवंशिक रूप से समान जानवरों की नस्लों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है, जिससे बीमारी के लिये एक आदर्श प्रजनन पृष्ठभूमि तैयार होती है और यह मनुष्यों में भी फैल सकती है।
    • जब बीमारियाँ एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में फैलती हैं, तो वे अक्सर अधिक संक्रामक हो जाती हैं और अधिक गंभीर बीमारी एवं मृत्यु का कारण बनती हैं, जिससे वैश्विक महामारी की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू दो प्रमुख उदाहरण हैं जहाँ गहन खेती वाले जानवरों से लगातार नए उपभेद निकलते हैं।
    • हालाँकि इसके अतिरिक्त- रोगाणुरोधी प्रतिरोध को अनदेखा किया जाता है।
  • फैक्टरी फार्मिंग में  एंटीबायोटिक दवाओं के अति प्रयोग से सुपरबग उत्पन्न  होते हैं जो श्रमिकों, पर्यावरण और खाद्य शृंखला में फैल जाते हैं।
  • घटिया पशुपालन प्रथाओं और खराब पशु कल्याण की विशेषता वाली फैक्टरी फार्मिंग में रोगाणुरोधी के बढ़ते उपयोग के कारण जूनोटिक रोगजनकों की एक शृंखला AMR के उद्भव से जुड़ी होेती है।

AMR और भारत में इसका प्रचलन:

  • AMR रोगाणुरोधी दवाओं के खिलाफ किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी आदि) द्वारा प्राप्त प्रतिरोध है जिसे संक्रमण के इलाज के लिये उपयोग किया जाता है।
  • यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब एक सूक्ष्मजीव समय के साथ बदलता है और दवा कोई प्रतिक्रिया नहींं करती जिससे संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है और बीमारी फैलने, गंभीर बीमारी, मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
  • भारत में पहली पंक्ति के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी जीवों की वजह से सेप्सिस के कारण हर साल 56,000 से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है।
    • ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) द्वारा 10 अस्पतालों से रिपोर्ट किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि जब कोविड रोगियों को अस्पतालों में दवा प्रतिरोधी संक्रमण होता है, तो मृत्यु दर लगभग 50-60% होती है।
  • बहु-दवा (multi-drug) प्रतिरोध निर्धारक, नई दिल्ली मेटालो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (NDM -1) की उत्पत्ति इस क्षेत्र में हुई।
    • दक्षिण एशिया से बहु-दवा (multi-drug) प्रतिरोधी टाइफाइड एशिया, अफ्रीका और यूरोप के अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया।

AMR पर रोक के लिये सरकार द्वारा की गई पहल:

  • देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के सबूत पाने और प्रवृत्तियों एवं पैटर्न को रिकॉर्ड करने हेतु वर्ष 2013 में ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क’ (AMRSN) शुरू किया गया।
  • AMR पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on AMR) ‘वन हेल्थ’ के दृष्टिकोण पर केंद्रित है जो अप्रैल 2017 में विभिन्न हितधारक मंत्रालयों/विभागों को संलग्न करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
  • ICMR ने रिसर्च काउंसिल ऑफ नॉर्वे (RCN) के साथ वर्ष 2017 में रोगाणुरोधी प्रतिरोध में अनुसंधान के लिये एक संयुक्त आह्वान की पहल की थी।
  • ICMR ने फेडरल मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन एंड रिसर्च (BMBF), जर्मनी के साथ AMR पर शोध के लिये एक संयुक्त भारत-जर्मन सहयोग का निर्माण किया है।
  • ICMR ने अस्पताल वार्डों एवं आईसीयू में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग एवं अति-प्रयोग को नियंत्रित करने के लिये पूरे भारत में एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम (AMSP) को एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह शुरू किया है।

आगे की राह

  • पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों की मांग में वृद्धि करके स्थायी खाद्य प्रणालियों को विकसित करने की आवश्यकता है जिससे पालतू पशुओं पर निर्भरता कम होगी और अधिक स्थान, एंटीबायोटिक्स का कम प्रयोग, स्वस्थ विकास एवं अधिक प्राकृतिक वातावरण के साथ उच्च कल्याणकारी उत्पादन प्रणालियों को अधिक व्यवहार्य बनाने में मदद मिलेगी।
  • खाद्य प्रणाली को अधिक टिकाऊ बनाने और जानवरों एवं मनुष्यों के समग्र स्वास्थ्य में आवश्यक सुधार करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन भारत में माइक्रोबियल रोगजनकों में बहु-दवा प्रतिरोध की घटना के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ लोगों की आनुवंशिक प्रवृत्ति
  2. बीमारियों को ठीक करने के लिये एंटीबायोटिक दवाओं की गलत खुराक लेना
  3. पशुपालन में एंटीबायोटिक का प्रयोग
  4. कुछ लोगों में कई पुरानी बीमारियाँ

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न: क्या डॉक्टर के निर्देश के बिना एंटीबायोटिक दवाओं का अति प्रयोग और मुफ्त उपलब्धता भारत में दवा प्रतिरोधी रोगों के उद्भव में योगदान कर सकते हैं? निगरानी एवं नियंत्रण के लिये उपलब्ध तंत्र क्या हैं? इसमें शामिल विभिन्न मुद्दों पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014, मुख्य परीक्षा)

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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