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शासन व्यवस्था

‘वन रैंक, वन पेंशन’ योजना

  • 07 Nov 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये

‘वन रैंक, वन पेंशन’ योजना

मेन्स के लिये

‘वन रैंक, वन पेंशन’ योजना की आवश्यकता और इसकी आलोचना

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने ‘वन रैंक, वन पेंशन’ (OROP) योजना के तहत बीते पाँच वर्षों में 20.6 लाख से अधिक सेवानिवृत्त रक्षाकर्मियों को 42,700 करोड़ रुपए की राशि वितरित की है।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्र सरकार ने 7 नवंबर, 2015 को ‘वन रैंक, वन पेंशन’ (OROP) योजना की अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि यह योजना 1 जुलाई, 2014 से प्रभावी मानी जाएगी।
  • रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश (2.28 लाख) और पंजाब (2.12 लाख) में ‘वन रैंक, वन पेंशन’ (OROP) के लाभार्थियों की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई।
    • हालाँकि इन आँकड़ों में नेपाल के पेंशनधारकों का विवरण शामिल नहीं किया गया है।

क्या है ‘वन रैंक, वन पेंशन’?

  • ‘वन रैंक, वन पेंशन’ (OROP) का अर्थ है कि सेवानिवृत्त होने की तारीख से इतर समान सेवा अवधि और समान रैंक पर सेवानिवृत्त हो रहे सशस्त्र सैन्यकर्मियों को एक समान पेंशन दी जाएगी। इस तरह से ‘वन रैंक, वन पेंशन’ (OROP) का मतलब आवधिक अंतरालों पर वर्तमान और पिछले सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों की पेंशन की दर के बीच के अंतर को कम करना है।
  • जबकि इससे पूर्व की व्यवस्था में जो सैनिक जितनी देरी से सेवानिवृत्त होता था, उसे पहले सेवानिवृत्त होने वाले सैनिकों की तुलना में अधिक पेंशन प्राप्त होती थी, क्योंकि सरकार द्वारा दी जाने वाली पेंशन कर्मचारी के अंतिम वेतन पर निर्भर करता है और समय-समय पर वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि होती रहती है।
    • इस तरह वर्ष 1995 में सेवानिवृत्त होने वाले एक लेफ्टिनेंट जनरल को वर्ष 2006 के बाद सेवानिवृत्त होने वाले एक कर्नल की तुलना में कम पेंशन प्राप्त होती थी।

पृष्ठभूमि

  • असल में वर्ष 1973 से पूर्व ‘वन रैंक, वन पेंशन’ को लेकर किसी भी प्रकार का कोई विवाद नहीं था, पर वर्ष 1973 में तीसरे वेतन आयोग की रिपोर्ट के प्रकाशन के साथ ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘वन रैंक, वन पेंशन’ के तत्कालीन स्वरूप को समाप्त कर दिया।
  • वर्ष 1973 में तीसरे वेतन आयोग से पूर्व सशस्त्र बलों के सभी सेवानिवृत्त कर्मियों को उनके अंतिम वेतन का 75 प्रतिशत हिस्सा पेंशन के रूप में भुगतान किया जाता था। साथ ही उस समय तक ऐसे सेवानिवृत्त रक्षाकर्मियों को पेंशन का भुगतान नहीं किया जाता था, जिन्होंने पाँच  वर्ष से कम अवधि के लिये अपनी सेवाएँ दी हों।
  • तीसरा वेतन आयोग
    • अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह इसने रक्षाकर्मियों को भी तीसरे वेतन आयोग के दायरे में ला दिया, आयोग ने पेंशन के तौर पर सभी पूर्व कर्मचारियों (जिसमें रक्षाकर्मी भी शामिल हैं) के लिये केवल 50 प्रतिशत वेतन की सिफारिश की, जिसके कारण सिविल कर्मियों की पेंशन तो 33 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत हो गई, किंतु रक्षाकर्मियों की पेंशन 75 प्रतिशत से घटकर 50 प्रतिशत पर पहुँच गई।
  • इसके बाद वर्ष 1979 में तत्कालीन वित्त मंत्री एच.एन. बहुगुणा ने मूल वेतन के एक हिस्से को महंगाई भत्ते में विलय करके सेवारत सैनिकों के वेतन में वृद्धि कर दी, जिससे वर्ष 1979 के बाद सेवानिवृत्त होने वाले सैन्यकर्मियों की पेंशन में भी बढ़ोतरी हो गई और यहीं से सेवानिवृत्त सैनिकों की पेंशन के बीच अंतर आना शुरू हो गया। 

‘वन रैंक, वन पेंशन’ की आवश्यकता क्यों?

  • छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने तक ‘वन रैंक, वन पेंशन’ के मुद्दे को लगभग भुलाया जा चुका था, पर जब इस आयोग की सिफारिशें लागू की गईं तो पूर्व सैनिकों के बीच पेंशन का अंतर और भी ज़्यादा बढ़ गया।
    • इस आयोग की सिफारिशों के लागू होने से वर्ष 2006 में सेवानिवृत्त होने वाले एक मेजर जनरल को वर्ष 2014 में सेवानिवृत्त होने वाले अपने समकक्ष से 30,000 रुपए कम पेंशन मिलने लगी, जो कि एक काफी बड़ी राशि थी।
    • पेंशन में इतनी अधिक असमानता के कारण पूर्व-सैनिकों के बीच ‘वन रैंक, वन पेंशन’ को लेकर एक आंदोलन शुरू हो गया और सभी स्तरों पर एक समान पेंशन की मांग की जाने लगी।
  • ‘वन रैंक, वन पेंशन’ के अधिकांश समर्थकों का मानना है कि ‘सशस्त्र बल’ के रक्षाकर्मियों और सिविल कर्मचारियों को पेंशन के मामले में एक समान रूप से नहीं देखा जाना चाहिये, क्योंकि अधिकांश रक्षाकर्मी 33 से 35 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं, जबकि सिविल कर्मियों की सेवानिवृत्त आयु 60 वर्ष होती है। इसी वजह से सेवा की कम अवधि के कारण कम वेतन मिलने से रक्षाकर्मियों का मनोबल प्रभावित होता है।

रक्षा पेंशन और ‘वन रैंक, वन पेंशन’ की आलोचना

  • केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में रक्षा पेंशन के लिये 1,33,825 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, जबकि वित्तीय वर्ष 2005-06 में यह राशि केवल 12,715 करोड़ रुपए थी।
  • 1,33,826 करोड़ रुपए का आवंटन केंद्र सरकार के कुल व्यय का 4.4 प्रतिशत या देश की कुल GDP का 0.6 प्रतिशत है। इस प्रकार भारत सरकार द्वारा रक्षा मंत्रालय को कुल बजट आवंटन का 28.4 प्रतिशत हिस्सा केवल रक्षा पेंशन में ही जाता है।
  • इस लिहाज़ से भारत का रक्षा पेंशन बजट, रक्षा मंत्रालय के कुल पूंजीगत व्यय से काफी अधिक हो गया है, जिसका अर्थ है कि रक्षा मंत्रालय सेना के आधुनिकीकरण पर कम और पूर्व-सैनिकों की पेंशन पर अधिक खर्च कर रहा है।
  • कई बार ‘वन रैंक, वन पेंशन’ योजना की आलोचना सरकार पर इसके वित्तीय बोझ के कारण की जाती है। दरअसल भारत में हर साल औसतन 50-60 हज़ार सैनिक सेवानिवृत्त होते हैं, क्योंकि सेना के अधिकांश जवान 33 से 35 वर्ष की आयु तक सेवानिवृत्त हो जाते हैं। 
    • इसकी वजह से प्रत्येक वर्ष रक्षा पेंशन बजट में बढ़ोतरी होती रहती है। इसके अलावा चूँकि रक्षाकर्मी काफी कम उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं, जिसके कारण वे लंबे समय तक पेंशन प्राप्त करते हैं, जबकि सिविल कर्मचारी प्रायः 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं, जिसके कारण वे रक्षाकर्मियों की अपेक्षा कम समय तक पेंशन प्राप्त करते हैं।  

स्रोत: द हिंदू

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