भारतीय अर्थव्यवस्था
राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति
- 30 Jan 2020
- 8 min read
प्रीलिम्स के लिये:राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति, बजट, नॉमिनल GDP, GDP मेन्स के लिये:राजकोषीय नीति और सरकारी प्रयास, राजकोषीय घाटे को कम करने की दिशा में उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
वर्तमान में सरकार बजट तैयार करने में व्यस्त है तथा पिछले कुछ वर्षों में सरकार के बजट अनुमान और वास्तविक आँकड़ों में व्यापक अंतर रहने के कारण राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति (Fiscal Marksmanship) एक बार फिर चर्चा का विषय बना है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- सर्वप्रथम राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति शब्द का उल्लेख आर्थिक सर्वेक्षण 2012-13 में किया गया था।
- 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये बजट प्रस्तुत किया जाएगा। इस बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था को मौजूदा मंदी से उबारना और वर्ष 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य प्राप्त करना बजट निर्माताओं के समक्ष बड़ी चुनौती होगी।
राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति से आशय
- राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति अनिवार्य रूप से राजस्व, व्यय और घाटा आदि जैसे राजकोषीय मापदंडों के सरकार के पूर्वानुमान की सटीकता को संदर्भित करता है।
- दूसरे शब्दों में यदि सरकार के बजट में अनुमानित कर राजस्व और वास्तविक कर राजस्व में बड़ा अंतर आता है तो उसे खराब राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति कहा जाएगा।
- यह शब्द वर्ष 2012-13 के आर्थिक सर्वेक्षण में रघुराम राजन द्वारा उपयोग में लाया गया था। उन्होंने राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति को "सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में वास्तविक परिणामों और बजटीय अनुमानों के बीच अंतर" के रूप में परिभाषित किया था।
राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति का क्या महत्त्व है?
- चूँकि बजट की विश्वसनीयता उसके आँकड़ों में निहित होती है तथा सार्वजनिक रूप से बजट या वार्षिक वित्तीय विवरण का लोकतंत्र में खुलासा करने और विधायिका से अनुमोदन प्राप्त करने का केंद्रीय उद्देश्य नीति निर्धारण और शासन को पारदर्शी एवं भागीदारीपूर्ण बनाना है।
- गौरतलब है कि बजट आँकड़ों के अनुमान और आकलन पर आधारित होता है तथा एक वर्ष बाद वास्तविक आँकड़ों के साथ उसका मिलान किया जाता है जिसके बाद लक्ष्य प्राप्ति का आकलन किया जाता है।
- यदि राजकोषीय अनुमान बार-बार विफल होंगे अर्थात् बजट अनुमान अधिक व प्राप्ति कम होगी तो, इससे नागरिकों में बजट के प्रति विश्वसनीयता कम होगी। इसलिये राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति का राजकोषीय एवं मौद्रिक नीति निर्धारण में अत्यधिक महत्त्व है।
भारत की राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है?
- ध्यातव्य है कि वित्तीय वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति कम हो जाती है। उदाहरण के लिये वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने आने वाले वर्षों में बजट के पूर्वानुमानों को प्रभावित किया।
- पिछले दो बजट अनुमानों (वर्ष 2019-20 के लिये अंतरिम बजट और वर्ष 2019-20 के लिये पूर्ण बजट) में काफी विसंगति है।
- उदाहरण के लिए जुलाई 2019 के बजट में 2019-20 में नॉमिनल GDP (Nominal GDP) 12% की दर से बढ़ने की उम्मीद की गई थी किंतु जनवरी 2020 में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा फर्स्ट एडवांस एस्टीमेट (First Advance Estimates- FAE) में नॉमिनल GDP में 7.5% की दर से वृद्धि का अनुमान लगाया है।
- चूँकि बजट की गणना नॉमिनल GDP के आधार पर की जाती है, इसलिये नॉमिनल GDP में व्यापक परिवर्तन का असर संपूर्ण आगामी बजट पर प्रदर्शित होगा। उदाहरण के लिये वर्तमान में सरकार के अनुमान के अनुसार, प्राप्ति के कोई आसार नही दिख रहे हैं नतीज़तन या तो राजकोषीय घाटा बजट आँकड़ों से अधिक हो जाएगा या व्यय आँकड़ा बजट की तुलना में बहुत कम होगा।
राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति में अनियमितता के कारण
- गौरतलब है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में 1 वर्ष में कमी (या वृद्धि) से राजकोषीय पूर्वानुमान कम या अधिक हो सकता है।
- वर्ष 2017 में एक संरचनात्मक परिवर्तन किया गया जिसके अंतर्गत बजट प्रस्तुत करने की तिथि को फरवरी के अंतिम सप्ताह या 28 या 29 फरवरी के स्थान पर फरवरी के पहले सप्ताह या 1 फरवरी कर दिया गया है जो कि लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ा बाधक बना है।
- इस संदर्भ में सरकार का तर्क था कि एक महीने में पूरी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि अगले वित्त वर्ष की शुरुआत में सभी मंत्रालयों के पास धन हो (यानी 1 अप्रैल तक)।
- लेकिन बजट प्रस्तुत करने की तिथि 1 फरवरी करने से संपूर्ण बजट बनाने की प्रक्रिया को 1 माह पहले शुरू की गई इसका आशय है कि पहले अग्रिम अनुमान, जो जनवरी के अंत तक आते थे (वित्तीय वर्ष की पहली तीन तिमाहियों की आर्थिक गतिविधि को ध्यान में रखते हुए) अब जनवरी की शुरुआत में आने लगे। इस प्रकार आँकड़ों में अनियमितता राजकोषीय पूर्वानुमान और राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति को प्रभावित करता है।
आगे की राह
- राजकोषीय नीति, मौद्रिक नीति और सरकारी नीतियों में समन्वय की आवश्यकता है।
- बजट निर्माण की प्रक्रिया में व्याप्त संरचनात्मक समस्याओं को दूर किया जाना चाहिये।
- राजकोषीय समेकन एवं राजकोषीय घाटा कम करने की दिशा में बेहतर प्रयास किया जाना चाहिये।
- बजट की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति को बेहतर बनाए जाने की आवश्यकता है और ध्यान रखा जाना चाहिये कि बजट अनुमान एवं प्राप्तियों में ज़्यादा अंतर न हो।