निम्न संतुलन जाल से बचने के लिये वित्तीय संघवाद एवं जवाबदेही पर जोर | 06 Feb 2018

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में यह कहा गया है कि अगर वित्तीय संघवाद अर्जित नहीं किया जाता है तो भारत में निम्न संतुलन जाल (Low Equilibrium Trap) की स्थिति पैदा हो सकती है।
  • इसका प्रमुख कारण स्थानीय निकायों में राजस्व संग्रहण का कम रहना और उनका अंतरित निधियों पर अधिक निर्भर रहना है। 

क्या है निम्न संतुलन जाल?

  • निम्न संतुलन जाल अर्थशास्त्री आर.आर. नेल्सन द्वारा अपर्याप्त रूप से विकसित (Underdeveloped) देशों के लिये दी गई एक आर्थिक अवधारणा है।
  • इसके अनुसार प्रति व्यक्ति आय के निम्न स्तर पर लोगों के पास बहुत अधिक बचत और निवेश करने के लिये संसाधनों की कमी होती है और निवेश के इस निम्न स्तर के कारण राष्ट्रीय आय में वृद्धि भी कम होती है।
  • प्रति व्यक्ति आय के एक निश्चित न्यूनतम स्तर जिस पर बचत दर शून्य हो, से अधिक बढ़ने पर आय का एक निश्चित बढ़ता अनुपात बचत दर को बढ़ाएगा जिसका निवेश करने पर राष्ट्रीय आय की उच्च संवृद्धि दरें प्राप्त की जा सकती है।

वितीय संघवाद 

  • वित्तीय संघवाद संघीय ढाँचे के भीतर व्यय की ज़िम्मेदारियों के विभाजन,राजकोषीय कार्यों, अंतर-सरकारी हस्तांतरण की व्यवस्था और राजकोषीय संबंधों से निपटता है।
  • किसी भी अच्छी राजकोषीय संघीय व्यवस्था का लक्ष्य प्रभावशाली,कुशल तथा संसाधनों का न्यायपूर्ण आवंटन करना एवं सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच ज़िम्मेदारियाँ तथा एक स्थिर संघीय प्रणाली की दिशा में कार्य करना है।
  • 73वें/74वें संविधान संशोधनों के तहत शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना के साथ ही भारत में सरकार की त्रिस्तरीय प्रणाली बनाते हुए संविधान में भाग IX तथा भाग IXA को जोड़ दिया गया।
  • इसने वस्तुत: राजनीतिक विकेंद्रीकरण के साथ ही वित्तीय विकेन्द्रीकरण का मार्ग प्रशस्त किया। सर्वेक्षण में रेखांकित किया गया कि वित्तीय विकेन्‍द्रीकरण को न केवल एक वांछनीय आर्थिक बल्कि एक राजनीतिक और दार्शनिक सिद्धांत के रूप में भी स्वीकार किया जाना चाहिये।
  • वित्तीय विकेंद्रीकरण की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि खर्चों और करों के मामलें में स्थानीय प्राथमिकताओं को किस सीमा तक प्रतिबिंबित किया जाता है। 

आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 से प्रमुख टिप्पणियाँ

  • सर्वेक्षण में यह कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय सरकारों द्वारा कर संग्रह के निम्न स्तर से वित्तीय संघवाद एवं जवाबदेही के मामले में चुनौती सामने आ रही है।
  • पंचायतों ने अपने राजस्व का 95% केंद्र या राज्यों से प्राप्त निधियों के द्वारा प्राप्त किया जबकि अपने खुद के संसाधनों से केवल 5% राजस्व का ही सृजन किया।
  • केरल, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक जैसे राज्यों में पंचायतें कुछ प्रत्यक्ष करों का संग्रह करती हैं जबकि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में गाँव लगभग पूरी तरह से अंतरित निधियों पर निर्भर रहते हैं।
  • आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि आर्थिक और राजनीतिक विकास का संबंध कुल करों में प्रत्‍यक्ष करों के बढ़ते हिस्‍से के साथ जुड़ा हुआ है। प्रत्‍यक्ष करों का हिस्‍सा यूरोप में कुल करों का लगभग 70% है जबकि भारत में यह आँकडा लगभग 35% ही है।
  • दूसरे देशों के विपरीत भारत में प्रत्‍यक्ष करों पर निर्भरता घटती जा रही है और यदि वस्तु एवं सेवा कर राजस्व का एक उदार स्रोत (Buoyant Source) सिद्ध होता है तो यह प्रवृत्ति और मज़बूत हो सकती है।  
  • भारत में राज्‍य प्रत्‍यक्ष करों से अपने राजस्‍व का बहुत निम्‍न हिस्‍सा लगभग 6% प्राप्‍त करते हैं जबकि ब्राजील में यह संख्‍या 19% और जर्मनी में 44% है।
  • भारत में तीसरे स्तर की ग्रामीण स्‍थानीय सरकारें अपने खुद के संसाधनों से केवल 6% राजस्‍व का सृजन करती हैं जबकि ब्राज़ील एवं जर्मनी में यह 40% से भी अधिक है।
  • भारत में शहरी स्‍थानीय सरकारें अंतर्राष्‍ट्रीय मानदंडों के अधिक करीब हैं और वे ब्राज़ील के 19% एवं जर्मनी के 26% की तुलना में प्रत्‍यक्ष करों से कुल राजस्‍व का 18% संग्रह करती हैं।
  • इसके अतिरिक्‍त, भारत में शहरी स्‍थानीय सरकारें अपने खुद के संसाधनों से अपने कुल राजस्‍व का 44% सृजन करती हैं।
  • यह स्‍पष्‍ट है कि शहरी स्‍थानीय सरकारें भारत में ग्रामीण स्‍थानीय सरकारों की तुलना में वित्तीय रूप से अधिक सशक्‍त बनकर उभरी हैं।

स्थानीय निकायों द्वारा कम राजस्व संग्रहण के कारण 

  • इसका प्रमुख कारण यह है कि कुछ राज्य सरकारें पंचायतों को पर्याप्त कराधान शक्तियाँ हस्तांतरित नहीं कर रही हैं, जैसे-संपत्ति और मनोरंजन कर पंचायतों के लिये अनुज्ञेय (Permissible) करों में शामिल हैं।
  • कुछ अन्य उदाहरणों में भले ही ग्रामीण स्थानीय सरकारों को कर लगाने का अधिकार दिया गया है फिर भी संपत्तियों पर लागू निम्न आधार मूल्यों एवं लगाए गए करों की निम्न दरों के कारण भूमि राजस्व संग्रह 7 से 19% के निम्न स्तर पर बना हुआ है।
  • केरल और कर्नाटक, जो पंचायतों को अधिकार देने में दूसरे राज्यों से आगे हैं, के ग्रामीण क्षेत्रों में गृह कर (House Tax) संग्रहण राजस्व संग्रह क्षमता का केवल एक-तिहाई है।
  • यहाँ तक की कुछ संघ राज्य क्षेत्रों में जहाँ केंद्र द्वारा करों को एकत्र किया जाता है, वहाँ भी संभावित राजस्व का केवल 30% ही जमा किया जा रहा है।
  • भारत की संघीय संरचना,इसके शासन और जवाबदेही पर 73वें एवं 74वें संवैधानिक संशोधन के प्रभाव का मूल्‍यांकन करने के लिये बेहतर डाटा और साक्ष्‍य की मांग करते हुए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत में राज्य और तीसरे स्तर की स्‍थानीय सरकारें अंतरित संसाधनों पर अधिक निर्भर करती हैं।
  • वे निम्‍न कर संसाधन सृजित करती हैं और कम प्रत्‍यक्ष कर संग्रह करती हैं। इसका कारण उनके पास पर्याप्‍त कराधान अधिकार न होकर वर्तमान कराधान अधिकारों का पूरा उपयोग नहीं कर पाना है।

निष्कर्ष

  • सर्वेक्षण में कम राजस्व संग्रहण के कारणों की पड़ताल के द्वारा अंतरण और विकेंद्रीकरण की भावी समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिये क्योंकि जब तक इन अंतर्निहित समस्याओं की पहचान नहीं की जाती है, तब तक राज्य और तीसरे स्तर की सरकारें कमज़ोर जवाबदेही तंत्र और कमज़ोर स्व-संसाधन सृजन क्षमता के साथ निम्न संतुलन जाल में फँसी रहेगी।