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सुरक्षा

भारतीय सेना में पहली बार महिला सैनिकों की भर्ती

  • 26 Apr 2019
  • 5 min read

संदर्भ

पहली बार भारतीय सेना ने सामान्य ड्यूटी (महिला सैन्य पुलिस) के लिये महिला सैनिकों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू की है तथा ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के ज़रिये आवेदन मांगे हैं।

  • सेना का लक्ष्य 20% सैन्य पुलिस कैडर का गठन करना है।
  • सशस्त्र बलों ने अब तक महिलाओं को केवल अधिकारियों के रूप में शामिल किया है और उन्हें पैदल सेना, बख्तरबंद कोर, तोपखाने तथा "फाइटिंग आर्म" में शामिल होने और युद्धपोतों के परिचालन जैसे सेवाओं की अनुमति नहीं दी है।

डिफेंस फोर्सेज़ में महिलाएँ

  • सरकार ने घोषणा की थी कि 2019 से महिलाओं को सैन्य बल में सैनिक या कार्मिक से नीचे के अधिकारी रैंक (Personnel Below Officer Rank) के रूप में शामिल किया जाएगा।
  • वर्तमान में केवल भारतीय वायुसेना ही लड़ाकू पायलट के रूप में महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में शामिल करती है।
  • वायुसेना में 13.09% महिला अधिकारी हैं, जो तीनों सेनाओं में सबसे अधिक हैं।
  • आर्मी में 3.80% महिला अधिकारी हैं, जबकि नौसेना में 6% महिला अधिकारी हैं।

महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने में कठिनाइयाँ

  • शारीरिक क्षमता: यद्यपि सशस्त्र बलों में अधिकांश नौकरियाँ पुरुषों और महिलाओं के लिये समान रूप से खुली हैं, लेकिन कुछ ऐसी सेवाएँ भी हैं जिनके लिये महिलाएँ शारीरिक रूप से अनुकूल नहीं हैं।
  • शारीरिक फिटनेस के मानकों को पुरुषों के अनुरूप बनाया गया है और इन मानकों को पूरा करने में महिलाओं को काफी परिश्रम करना पड़ेगा।
  • मनोबल और सामंजस्य: प्रत्यक्ष युद्ध स्थितियों में सेवारत महिलाओं को कॉम्बैट की भूमिका में मनोबल बनाए रखने तथा तथा सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई आएगी।
  • सैन्य तत्परता: महिला-पुरुष के बीच कद, ताकत और शारीरिक संरचना में प्राकृतिक विभिन्नता के कारण महिलाएँ चोटों और चिकित्सीय समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। यह समस्या विशेष रूप से गहन प्रशिक्षण के दौरान होती है।
  • मासिक धर्म और गर्भावस्था की प्राकृतिक प्रक्रियाएँ महिलाओं को विशेष रूप से युद्ध स्थितियों में कमज़ोर बनाती हैं।
  • परंपरा: समाज में सांस्कृतिक बाधाएँ, विशेष रूप से भारत जैसे देश में युद्ध में महिलाओं को शामिल करने में यह सबसे बड़ी बाधा हो सकती है।
  • कुछ महिलाओं को पुरुष बाहुल्य वाले तंग आवासों, दुसह्य इलाकों तथा दुर्गम स्थानों पर तैनात करने के परिणाम का सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
  • मनोवैज्ञानिक: मिलिट्री सेक्सुअल ट्रामा (MST) का मुद्दा और महिला लड़ाकों के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव दिखाई देता है। कई देश अब इस समस्या को वास्तविक और ज़रूरी मान रहे हैं तथा इसे रोकने के लिये मज़बूत उपाय कर रहे हैं।
  • MST गंभीर तथा दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), अवसाद (Depression) और वस्तुओं का दुरुपयोग शामिल है।

कॉम्बैट रोल में महिलाओं की भूमिका के पक्ष में तर्क

  • लैंगिकता बाधक नहीं है: जब तक आवेदक किसी पद के लिये योग्य है, तब तक लैंगिकता मायने नहीं रखती है। उन महिलाओं को भर्ती और तैनात करना आसान है जो युद्ध में भेजे गए कई पुरुषों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करने में सक्षम हैं।
  • सैन्य तत्परता: महिला और पुरुष दोनों ही लिंगों की अनुमति देने से सेना मजबूत होती है। सशस्त्र बल भर्ती दर गिरने से गंभीर रूप से परेशान हैं। इसका मुकाबला महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में नियुक्त करने से किया जा सकता है।
  • परंपरा: कॉम्बैट इकाइयों में महिलाओं के एकीकरण की सुविधा के लिये प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। समय के साथ संस्कृति बदलती है और पुलिंग उपसंस्कृति भी विकसित हो सकती है।
  • सांस्कृतिक अंतर और जनसांख्यिकी: कुछ परिस्थितियों में पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक प्रभावी होती हैं।
  • महिलाओं को सेना में सेवा करने की अनुमति देने से नाजुक और संवेदनशील नौकरियों के लिये प्रतिभा पूल को दोगुना किया जा सकता है।
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