प्रथम अनुमानित ‘गौर’ जनसंख्या अभ्यास | 12 Jun 2020

प्रीलिम्स के लिये: 

भारतीय गौर के बारे में

मेन्स के लिये:

प्रथम अनुमानित ‘गौर’ जनसंख्या आकलन अभ्यास का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  नीलगिरि वन प्रभाग (Nilgiris Forest Division) द्वारा भारतीय गौर (Gaur) की जनसंख्या का प्रथम अनुमानित अभ्यास ( First Population Estimation Exercise ) किया गया जिसे इस वर्ष फरवरी में आयोजित किया गया था।

Gaur

प्रमुख बिंदु:

  • नीलगिरि वन प्रभाग के अनुमानित आकलन के अनुसार, पूरे मंडल में 2,000 से अधिक भारतीय गौर निवास करते हैं।
  • नीलगिरि वन प्रभाग के आँकड़ों के अनुसार, इस अभ्यास की एक सप्ताह की अवधि में विभाग के कर्मचारियों तथा स्वयंसेवकों द्वारा 794 गौरों को प्रत्यक्ष रूप से देखा गया।
  • नीलगिरि वन प्रभाग के आँकड़ों के अनुसार, प्रति वर्ग किलोमीटर में आठ व्यक्तियों के औसत के साथ मंडल में 2,000 से अधिक भारतीय गौरों की मौजूदगी देखी गई।

भारतीय गौर (Indian Gaur):

  • स्थानिक नाम- गौर (Gaurus))
  • वैज्ञानिक नाम- बोस गोरस (Bos Gaurus)
  • मूल रूप से यह दक्षिण एशिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया मे पाया जाने वाला एक बड़ा, काले लोम (बालों का आवरण) से ढका गोजातीय पशु है।
  • वर्तमान समय में इसकी सबसे अधिक आबादी भारत में पाई जाती है। 

गौर जनसंख्या अभ्यास की आवश्यकता क्यों?

  • पिछले कुछ वर्षों में नीलगिरि प्रभाग के आसपास के क्षेत्रों जैसे- कुन्नूर, उदगमंडलम, कोटागिरी तथा कुंडाह में अन्य प्रमुख जीवों के साथ-साथ  भारतीय गौर तथा मनुष्यों के बीच टकराव की घटनाएँ सामने आई हैं । 
  • इसके कारण मानवीय निवासों के पास गौर की बढ़ती आबादी के आकलन की आवश्यकता हुई। 
  • वर्ष 2019 में, भारतीय गौर द्वारा तीन लोगों को मारे जाने तथा कई को घायल करने की घटनाएँ देखी गईं थीं।

मानव बस्तियों के पास गौर?

  • आकलन के दौरान देखा गया कि भारतीय गौर की अधिकांश संख्या कुंडाह, कोटागिरी, कुन्नूर तथा कट्टाबेटू के आसपास अधिकांश ऐसे हिस्से में हैं  जहाँ खाने पीने की दुकानें जैसे- चाय, रेस्टोरेंट इत्यादि है। 
  • इसका कारण मानव बस्तियों तथा उनके आस पास भोजन की आसान उपलब्धता, जंगल में शिकारियों से सुरक्षा तथा आरक्षित जंगलों में आक्रामक वनस्पतियों का बढ़ता प्रसार हो सकता है।
  • कुछ ऐसे भी क्षेत्र देखे गए जहाँ भारतीय गौर की आबादी कम थी, जैसे-पकारा तथा नादुवट्टम क्षेत्र क्योंकि इन जगहों का वन क्षेत्र बड़े पैमाने पर आक्रामक वानस्पतिक  प्रजातियों से मुक्त था।

भारतीय गौर की मौत:

  • पिछले एक दशक में उनकी आबादी में लगातार वृद्धि होने के कारण शहरों के भीतर भारतीय गौर को अधिक देखा जा रहा है। 
  •  नीलगिरि वन प्रभाग में हर साल औसतन 60 गौर मर जाते हैं। 
  • इनमें से कई मानव आवास के करीब होने वाली दुर्घटनाओं की शिकार हो जाती हैं।

जनसंख्या अभ्यास का महत्त्व:

  • इस प्रकार के जनसंख्या आकलन से गौरों की वास्तविक संख्या एवं निवास क्षेत्र का पता किया जा सकता है जिसके चलते मानव-गौर के मध्य हिंसक संघर्ष को रोका जा सकता है।
  • गौरों की वास्तविक निवास स्थिति के आधार पर इनका संरक्षण क्षेत्र निर्धारित किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू