चाबहार के ज़रिये अफगानिस्तान के निर्यात की पहली खेप | 25 Feb 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अफगानिस्तान ने ईरानी पोर्ट चाबहार के ज़रिये भारत को निर्यात की शुरुआत कर दी है। अफगानिस्तान अब चाबहार के ज़रिये औपचारिक रूप से भारत से जुड़ चुका है।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी ने चाबहार बंदरगाह के ज़रिये भारत पहुँचने वाले निर्यात की पहली खेप को हरी झंडी दिखाकर चाबहार पोर्ट के लिये रवाना किया। इस खेप में 570 टन ड्राई फ्रूट्स, टैक्सटाइल्स, कार्पेट और मिनरल उत्पाद शामिल हैं जो जहाज के ज़रिये मुंबई पहुँचेगी।
- ध्यातव्य है कि भारत ने भी चाबहार पोर्ट के ज़रिये अफगानिस्तान को 1.1 मिलियन टन गेहूँ और 2000 टन मसूर की दाल निर्यात किया है।
- चारों तरफ ज़मीन से घिरा (Landlocked) और युद्धग्रस्त अफगानिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने हेतु विदेशी बाज़ारों तक पहुँच बनाने का प्रयास कर रहा है।
- अफगानिस्तान द्वारा चाबहार के ज़रिये निर्यात की शुरुआत कई अन्य कारणों के अलावा इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके साथ ही भारत, ईरान तथा अफगानिस्तान के बीच अंतर्राष्ट्रीय परिवहन एवं पारगमन समझौता पूरी तरह से क्रियान्वित हो गया है। इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने तेहरान में मई 2016 में हस्ताक्षर किये थे।
- दक्षिण एशिया में चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ के समानांतर एक व्यवस्था कायम रखने हेतु भारत के लिये अफगानिस्तान का व्यापक महत्त्व है और इस कदम से भारत ने अफगानिस्तान की समृद्धि एवं विकास हेतु सहयोग जारी रखने की प्रतिबद्धता दोहराई है।
भारत के लिये चाबहार का महत्त्व
- मध्ययुगीन यात्री अल-बरूनी द्वारा चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार (मध्य एशिया से) कहा गया था। ज्ञात हो कि यहाँ से पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह भी महज़ 72 किलोमीटर की दूरी पर है, जिसके विकास के लिये चीन द्वारा बड़े स्तर पर निवेश किया जा रहा है।
- चाबहार भारत के लिये अफगानिस्तान और मध्य एशिया के द्वार खोल सकता है और यह बंदरगाह एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप को जोड़ने के लिहाज़ से सर्वश्रेष्ठ है।
- भारत वर्ष 2003 से ही इस बंदरगाह के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के प्रति अपनी रुचि दिखा रहा है हालाँकि ईरान पर पश्चिमी प्रतिबंधों और कुछ हद तक ईरानी नेतृत्व की दुविधा की वज़ह से इस बंदरगाह के विकास की गति धीमी रही लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान इसमें काफी प्रगति हुई है।
- चाबहार कई मायनों में ग्वादर से बेहतर है, क्योंकि:
♦ चाबहार गहरे पानी में स्थित बंदरगाह है और यह ज़मीन के साथ मुख्य भू-भाग से भी जुड़ा हुआ है, जहाँ सामान उतारने-चढ़ाने का कोई शुल्क नहीं लगता।
♦ यहाँ मौसम सामान्य रहता है और हिंद महासागर से गुज़रने वाले समुद्री रास्तों तक भी यहाँ से पहुँच बहुत आसान है।
- चाबहार बंदरगाह पर परिचालन आरंभ होने के साथ ही अफगानिस्तान को भारत से व्यापार करने के लिये एक और रास्ता मिल चुका है।
- विदित हो कि अभी तक भारत-अफगानिस्तान के बीच व्यापार पाकिस्तान के रास्ते होता है, लेकिन पाकिस्तान इसमें रोड़े अटकाता रहता है।
- पाकिस्तान के इस रुख से अफगानिस्तान तो असहज महसूस करता ही है साथ में भारत, अफगानिस्तान के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने की अपनी नीति में भी कठिनाइयाँ महसूस करता है। अतः चाबहार परियोजना भारत के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
- व्यापारिक और कूटनीतिक दोनों ही दृष्टि से चाबहार का अपना महत्त्व है। गौरतलब है कि ईरान-इराक युद्ध के समय ईरानी सरकार ने इस बंदरगाह को अपने समुद्री संसाधनों को सुरक्षित रखने के लिये इस्तेमाल किया था।
- हालाँकि इन बातों के बावजूद भारत में ऐसे तबके भी हैं जो यह मानते हैं कि तालिबान या किसी अन्य चरमपंथी समूह ने अगर काबुल पर कब्ज़ा कर लिया तो चाबहार में भारत का पूरा निवेश डूब जाएगा। हालाँकि तालिबान और अफगानिस्तान सरकार तथा अन्य विभिन्न समूहों के प्रयासों से होने वाली हालिया शांति वार्ताओं ने इन आशंकाओं को दूर किया है।
- यह अफगानिस्तान तक सामान पहुँचाने के लिये यह सबसे बढ़िया रास्ता है, यहाँ वे तमाम सुविधाएँ हैं, जिनके ज़रिये अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि ईरान में भी आसानी से व्यावसायिक पहुँच बनाई जा सकती है।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस