राजकोषीय संघवाद | 29 Oct 2019
प्रीलिम्स के लिये:
वस्तु एवं सेवा कर, सहकारी संघवाद, संघवाद से संबंधित प्रावधान।
मेन्स के लिये:
वस्तु एवं सेवा, सहकारी संघवाद, संघवाद से संबंधित प्रावधान और संबंधित मुद्दे।
संदर्भ
केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को प्रत्यक्ष कर एकत्र करने की शक्तियाँ प्रदान करने पर विचार-विमर्श चल रहा है।
- उल्लेखनीय है कि राज्यों के पास वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax) के बाद भी वित्तीय संसाधनों का अभाव दिख रहा है।
- वस्तु एवं सेवा कर के क्रियान्वयन के पश्चात् प्रत्यक्ष रूप से एकीकृत राजकोषीय संघवाद का विकास हो रहा है लेकिन वास्तविकता यह भी है कि राजस्व का बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष करों के संग्रहण से आता है जहाँ पर राज्यों को केवल केंद्र की इच्छा पर ही निर्भर रहना होता है।
- विदित है कि वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से प्राप्त कर का केवल एक छोटा हिस्सा ही राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है शेष प्रत्यक्ष कर के हिस्सों को परंपरागत तरीके से राज्यों के मध्य विभाजित किया जाता है।
- वर्तमान समय में भारत की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुज़र रही है ऐसे में राज्यों के पास वित्तीय संसाधनों का अभाव अर्थव्यवस्था के लिये हानिकारक हो सकता है।
भारतीय संघवाद:
- भारत राज्यों का एक संघ है। प्रत्येक राज्य के नागरिक स्वतंत्र रूप से अपनी सरकार का चुनाव करते हैं। निर्वाचित सरकार की प्राथमिक ज़िम्मेदारी उसके मतदाताओं के प्रति जवाबदेहिता है।
- संघात्मक व्यवस्था का तात्पर्य ऐसी शासन प्रणाली से है जहाँ पर संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन केंद्र और राज्य सरकार के मध्य किया जाता है एवं दोनों अपने अधिकार क्षेत्रों का प्रयोग स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं।
- संविधान की संघीय विशेषता के अंतर्गत- द्वैध शासन प्रणाली, लिखित संविधान, शक्तियों का विभाजन, संविधान की सर्वोच्चता, कठोर संविधान, स्वतंत्र न्यायपालिका और द्विसदनीयता जैसी सामान्य विशेषताएँ पाई जाती हैं।
- एक निर्वाचित सरकार को सामान्य तौर पर अपने नागरिकों के कराधान के माध्यम से राजस्व जुटाने में सक्षम होने और उनके लाभ के लिये उचित व्यय करने की शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं।
- के संथानम् द्वारा भी वित्तीय मामलों में केंद्र का प्रभुत्व और राज्यों की केंद्र पर निर्भरता जैसी स्थिति को भारतीय संघवाद का असंतुलनकारी पक्ष माना गया है।
राजकोषीय संघवाद
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान के भाग 12 में अनुच्छेद 268 से 293 तक केंद-राज्य वित्तीय संबंधों की चर्चा की गई है।
- संसद की संघ सूची के पास 15 और राज्य विधानमंडल के पास राज्य सूची के 20 विषयों पर कर निर्धारण का विशेष अधिकार है।
- कर निर्धारण की अवशेषीय शक्ति संसद में निहित है, इस उपबंध के तहत संसद ने उपहार कर, संवृद्धि कर और व्यय कर लगाएँ हैं।
- सामान्य विनियमों के अतिरिक्त राज्य विधानमंडल की कर निर्धारण शक्तियों पर निम्नलिखित पाबंदियाँ भी लगाई गई हैं-
- व्यापार, व्यवसाय और रोज़गार पर प्रति व्यक्ति अधिकतम 2500 रुपए प्रति वर्ष।
- खरीद-बिक्री पर कर लगा सकता है लेकिन ऐसी शक्तियों पर भी चार पाबंदियाँ हैं-
- राज्य के बाहर किसी वस्तु की खरीद-बिक्री पर कर नहीं लगाया जा सकता है।
- आयात-निर्यात के दौरान खरीद-बिक्री पर कर नहीं लगाया जा सकता है।
- अंतर्राज्यीय व्यापार वाणिज्य के दौरान किसी वस्तु की खरीद-बिक्री पर कर नहीं लगाया जा सकता है।
- संसद द्वारा अंतर्राज्यीय व्यापार और वाणिज्य के तहत महत्त्वपूर्ण घोषित मसलों पर क्रय-विक्रय के आधार पर प्रतिबंध।
- ऐतिहासिक मुद्दे:
- वर्ष 1982 में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम.जी. रामचंद्रन सरकारी स्कूलों के बच्चों को मध्याह्न भोजन कार्यक्रम के अंतर्गत लाना चाहते थे ताकि छात्र नामांकन में सुधार हो सके।
- इस कार्यक्रम के लिये 150 करोड़ रुपए के अतिरिक्त व्यय की आवश्यकता थी जो राज्य सरकार के पास उपलब्ध नहीं था। इस अतिरिक्त व्यय हेतु तमिलनाडु में बेचे जाने वाले सामानों पर अतिरिक्त बिक्री कर लगाया गया। इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के फलस्वरूप तमिलनाडु की साक्षरता दर में तेज़ी से वृद्धि दर्ज़ की गई और कुछ दशकों में तमिलनाडु को भारत के सर्वाधिक साक्षर राज्यों में गिना जाने लगा।
- वर्तमान मुद्दे:
- वस्तु और सेवा कर के क्रियान्वयन के पश्चात् राज्यों ने अप्रत्यक्ष करों को लगाने की अपनी शक्तियाँ खो दीं है। इसके अतिरिक्त भारत में राज्य सरकार के पास आयकर और बिक्री कर लगाने की कोई शक्ति नहीं है।
- वर्तमान में केंद्र सरकार कुल कर राजस्व पूल का 52% अपने रखता है और शेष 48% सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को वितरित करता है।
- सरकार के द्वारा राजकोषीय संघवाद के सुधार हेतु प्रयास:
- नीति आयोग के निर्माण से वित्तीय केंद्रीकरण की पूर्व स्थिति में बदलाव आया है तथा भारत राजकोषीय संघवाद की ओर तेज़ी से स्थानांतरित हुआ है। इस बदलाव के साथ ही वर्तमान सरकार ने केंद्र-राज्य के मध्य विभिन्न माध्यमों से संघवाद को बढ़ावा दिया है जिसमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं-
- योजना आयोग की समाप्ति तथा इसके स्थान पर नीति आयोग का गठन।
- केंद्र-राज्य संबंधों को ध्यान में रखकर GST परिषद का गठन।
- राजकोषीय विकेंद्रीकरण के उद्देश्य से राज्यों के खर्च पर केंद्र का नियंत्रण कम करना।
- 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करना।
- ध्यातव्य है कि भारत में उपर्युक्त प्रयास ऐसे समय में किये जा रहे हैं जब भारत में मज़बूती से राजनीतिक केंद्रीकरण हो रहा है तथा विभिन्न क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की स्थिति कमज़ोर हुई है।
वैश्विक परिदृश्य:
- भारत के विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में राज्य सरकारों के साथ-साथ स्थानीय सरकारों को भी आयकर लगाने का अधिकार है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के अतिरिक्त ब्राज़ील, जर्मनी जैसे देश भी राज्य और स्थानीय स्तर पर आयकर एकत्र करते हैं।