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बेल्लांदूर झील में आग : प्रदूषण का प्रकोप

  • 27 Jan 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने बुधवार को कर्नाटक सरकार को गंभीर रूप से प्रदूषित बेल्लांदूर झील में बार-बार लगने वाली आग की घटनाओं पर रोकथाम के लिये समुचित कार्यवाही नहीं करने पर कड़ी फटकार लगाते हुए 29 जनवरी तक एक समयबद्ध कार्य योजना (Action Plan) पेश करने का निर्देश दिया है।
  • हाल ही में 19 जनवरी को इस झील में अचानक आग लग गई थी, जिस पर नियंत्रण पाने के लिये सेना के 5000 जवानों की सहायता लेनी पड़ी।

बेल्लांदूर झील 

  • भारत की 'सिलिकन वैली' कही जाने वाले बंगलुरू के दक्षिण-पूर्व में स्थित यह झील 906 एकड़ में फैली शहर की सबसे बड़ी झील है।
  • अस्सी के दशक तक बेल्लांदूर झील एक आकर्षक और समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में जानी जाती थी, जो पक्षियों, मछलियों और कीड़ों की विभिन्न प्रजातियों को आश्रय उपलब्ध कराती थी और एक पिकनिक, नौकायन तथा मत्स्यन स्थल के रूप में प्रसिद्ध थी।
  • लगभग 279 वर्ग किलोमीटर के जलग्रहण क्षेत्र (Catchment Area) वाली यह झील आज गंभीर रूप से प्रदूषित है। बेल्लांदूर झील अब इसकी सतह पर जमा होने वाले झाग की वृहद संहति के लिये कुख्यात है जो इसके किनारों के सहारे प्राय: समीपस्थ सड़कों पर फैल जाता है।
  • इसी कारण इस झील में मई 2015 , अगस्त 2016 और अभी हाल ही में 19 जनवरी को आग लग गई  थी।
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) के सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज के एक वेटलैंड रिसर्च ग्रुप द्वारा इस झील के 1970 से 2016 तक की अवधि के भू-उपयोग संबंधी रिमोट सेंसिंग डाटा का विश्लेषण किया गया था।
  • इसमें कहा गया है कि इस झील के जलग्रहण क्षेत्र में निर्माणाधीन कार्यों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में निरंतर वृद्धि हुई है, जबकि वनस्पति आच्छादन और जल निकायों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में गिरावट ज़ारी है। इसे देखते हुए संभावना जताई जा रही है कि 2020 तक इस झील का 95% जलग्रहण क्षेत्र कंक्रीट से आच्छादित हो जाएगा। 

झील में प्रदूषण और आग का कारण

  • पिछले दो दशकों में बंगलूरू के नाटकीय विकास के चलते झील में भारी मात्रा में घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट को विसर्जित किया गया है।
  • इस झील के जलग्रहण क्षेत्र के बड़े भाग में आवासीय निर्माण और इसके तट पर कचरे के डंपिंग ने इसमें जलप्रवाह को बाधित किया है। इससे झील की जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
  • अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक कचरे के प्रवाह के कारण इस झील का पानी सिंचाई के लिये भी अनुपयुक्त है।
  • घरेलू सीवेज के माध्यम से डिटर्जेंट और अन्य व्यक्तिगत सफाई उत्पादों से फॉस्फोरस के प्रवाह के कारण झील की सतह पर बड़े पैमाने पर झाग बन जाता है। जल्दी आग पकड़ने वाले इस झाग के कारण झील में आग की घटनाओं की बारंबारता बढ़ गई है।
  • पर्यावरणविदों के अनुसार, इस झील में फैले हुए घातक रसायन और मीथेन की वृहद मात्रा के कारण इसमें आग की आकस्मिक घटनाएँ घटती रहती हैं। 
  • कई बार सिगरेट या बीड़ी फेंकने जैसी घटना के कारण लगने वाली आकस्मिक आग झील में विसर्जित हाइड्रोकार्बन से समृद्ध अनुपचारित कूड़े-कचरे के साथ मिलकर और खतरनाक रूप ग्रहण कर लेती है। 

समाधान 

  • IISc द्वारा झील में आग की घटनाओं को रोकने के लिये अन्य सुझावों के अतिरिक्त डिटर्जेंट में फॉस्फोरस के प्रयोग को प्रतिबंधित करने अथवा फॉस्फोरस आधारित डिटर्जेंट के विनियमन का सुझाव दिया था।
  • इसके अलावा, सीवेज का विकेंद्रीकृत उपचार, झील में अपशिष्ट कचरे की डंपिंग करने वाले उद्योगों के लिये ‘प्रदूषण करने वाला भुगतान करे सिद्धांत’ (Polluter Pays Principle) को लागू करने जैसे सुझाव भी दिए गए थे।
  • भविष्य में रियल एस्टेट परियोजनाओं, कचरे की डंपिंग और अतिक्रमण से जलग्रहण क्षेत्र को बचाने के लिये स्थानीय निकायों की जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, ताकि अनियोजित विकास के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके । 
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