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भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट, 2019

  • 02 Jan 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये:

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के बारे में

मेन्स के लिये:

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के निष्कर्ष

चर्चा में क्यों?

27 दिसंबर, 2019 को भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report-FSR) का 20वाँ अंक जारी किया।

प्रमुख बिंदु

  • वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) एक अर्द्धवार्षिक प्रकाशन है जो भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता का समग्र मूल्यांकन प्रस्तुत करती है।
  • FSR न केवल वित्तीय स्थिरता के लिये वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (Financial Stability and Development Council-FSDC) की उप-समिति के सामूहिक मूल्यांकन को दर्शाती है, बल्कि वित्तीय प्रणाली के लचीलेपन को भी प्रदर्शित करती है। रिपोर्ट में वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की गई है।

प्रणालीगत जोखिमों का समग्र मूल्यांकन

(Overall Assessment of Systemic Risks)

  • कमज़ोर घरेलू विकास के बावजूद भारत की वित्तीय प्रणाली स्थिर बनी हुई है; सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) के पुनर्पूंजीकरण (Recapitalisation) के बाद बैंकिंग क्षेत्र के लचीलेपन में सुधार हुआ है। हालाँकि वैश्विक/घरेलू आर्थिक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक घटनाक्रमों से उत्पन्न होने वाले जोखिम बने रहते हैं।

वैश्विक और घरेलू समष्टि-वित्तीय जोखिम

(Global and Domestic Macro-Financial Risks)

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था ने कई अनिश्चितताओं जैसे ब्रेक्ज़िट समझौते में देरी, व्यापार तनाव, एक आसन्न मंदी की भावना, तेल-बाज़ार में व्यवधान और भू-राजनीतिक जोखिमों के कारण विकास में महत्त्वपूर्ण मंदी देखी गई। इन अनिश्चितताओं ने उपभोक्ता विश्वास और व्यापार मनोभावों को प्रभावित किया, निवेश के इरादे को कमज़ोर कर दिया और जब तक कि इन अनिश्चितताओं का ठीक से निपटान नहीं किया जाता है, वैश्विक विकास पर इनका एक महत्त्वपूर्ण दबाव बने रहने की संभावना है।
  • घरेलू अर्थव्यवस्था के संबंध में वित्तीय वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में सकल मांग में कमी आई, जिससे संवृद्धि में मंदी को बढ़ावा मिला। जबकि पूंजी अंतर्वाह की संभावनाएँ सकारात्मक बनी हुई है, भारत के निर्यात को निरंतर वैश्विक मंदी की स्थिति में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन कमज़ोर ऊर्जा मूल्य संभावनाओं के कारण चालू खाता घाटे के नियंत्रण में रहने की संभावना है।
  • वैश्विक वित्तीय बाज़ारों से स्पिलओवर के बारे में सतर्कता बरतते हुए खपत और निवेश के दोहरे वाहकों को पुनर्जीवित करना भविष्य के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।

वित्तीय संस्थाएँ: कार्य निष्पादन और जोखिम

(Financial Institutions: Performance and Risks)

  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (Scheduled Commercial Banks-SCBs) की ऋण वृद्धि सितंबर 2019 में वर्ष-दर-वर्ष [year-on-year (y-o-y)] आधार पर 8.7 प्रतिशत बनी रही, हालांकि निजी क्षेत्र के बैंकों (Private Sector Banks-PVBs) ने दोहरे अंक में अर्थात् 16.5 प्रतिशत की ऋण वृद्धि दर्ज की।
  • सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks-PSBs) के पुनर्पूंजीकरण के बाद SCBs के पूंजी पर्याप्तता अनुपात में काफी सुधार हुआ।
  • मार्च और सितंबर 2019 के बीच SCBs का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (gross non-performing assets (GNPA) अनुपात 9.3 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रहा।
  • सभी SCBs का प्रोविजन कवरेज अनुपात (Provision Coverage Ratio-PCR) मार्च 2019 के 60.5 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2019 में 61.5 प्रतिशत हो गया, जो बैंकिंग क्षेत्र के लचीलेपन में वृद्धि दर्शाता है।
  • ऋण जोखिम के लिये समष्टि-दबाव Macro-stress परीक्षण बताते हैं कि आधारभूत परिदृश्य के अनुसार SCBs का GNPA अनुपात मुख्य रूप से समष्टि आर्थिक परिदृश्य में बदलाव, स्लिपेज में मामूली वृद्धि और घटती हुई ऋण वृद्धि के बढ़ते प्रभाव के कारण सितंबर 2019 में 9.3 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2020 तक 9.9 प्रतिशत हो सकता है।
  • नेटवर्क विश्लेषण के अनुसार, वित्तीय प्रणाली में संस्थाओं के बीच कुल द्विपक्षीय जोखिम में सितंबर 2019 को समाप्त तिमाही में मामूली गिरावट दर्ज की गई। सभी मध्यवर्ती संस्थाओं के बीच निजी क्षेत्र के बैंकों (Private Sector Banks (PVBs)) ने वित्तीय प्रणाली में अपनी देयराशियों में वर्ष-दर-वर्ष सबसे अधिक वृद्धि देखी, जबकि बीमा कंपनियों ने वित्तीय प्रणाली से प्राप्त राशियों में वर्ष-दर-वर्ष सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की। वित्तीय बिचौलियों के बीच वाणिज्यिक पत्र (Commercial Paper-CP) वित्तपोषण में पिछली चार तिमाहियों में गिरावट जारी रही।
  • सितंबर 2019 के अंत में कुल बैंकिंग क्षेत्र की परिसंपत्ति के 4 प्रतिशत से कम अंतर-बैंक परिसंपत्तियों के साथ अंतर-बैंक बाज़ार का आकार संकुचित होता रहा। यह संकुचन PSBs के बेहतर पूंजीकरण के साथ-साथ बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (Non-Banking Finance Company- NBFC)/हाउसिंग फाइनेंस कंपनी (Housing Finance Company-HFC) की विशिष्ट विफलता और वृहद आर्थिक संकट से संबंधित विभिन्न परिदृश्यों के तहत मार्च 2019 की तुलना में बैंकिंग प्रणाली में हो रहे नुकसान में कमी लाने में सफल रहा।

वित्तीय क्षेत्र: विनियमन और विकास

(Financial sector: Regulation and Developments)

  • रिज़र्व बैंक ने दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान और भुगतान की आधारिक संरचना के विकास हेतु NBFCs के लिये चलनिधि प्रबंधन व्यवस्था (Liquidity Management Regime) शुरू करने, बैंकों की अभिशासन संस्कृति (Governance Culture) में सुधार लाने हेतु नीतिगत उपाय आरंभ किये हैं।
  • रिज़र्व बैंक ने ऑफशोर रुपया बाज़ार (Offshore Rupee Market) पर कार्य दल की कुछ प्रमुख सिफारिशों जैसे घरेलू बैंकों को गैर-निवासियों को स्वतंत्र रूप से विदेशी मुद्रा की कीमतों की अनुमति देना और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (International Financial Services Centres-IFSCs) में रुपए डेरिवेटिव (विदेशी मुद्रा में निपटान के साथ) कारोबार की अनुमति देना स्वीकार कर लिया है।
  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) ने वित्तीय बाज़ारों को बेहतर बनाने के लिये कई कदम उठाए हैं, जिसमें तरल निधियों का संशोधित जोखिम प्रबंध ढाँचा, निवेश के लिये संशोधित मानदंड और म्यूचुअल फंडों (Mutual Fund- MFs)) द्वारा मुद्रा बाज़ार और ऋण प्रतिभूतियों का मूल्यांकन, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (Credit Rating Agencies- CRAs) के लिये संशोधित मानदंड, नए पण्य डेरिवेटिव उत्पादों की सुविधा और स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने के लिये स्टॉक एक्सचेंजों पर संस्थागत ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (Institutional Trading Platforms- ITPs) स्थापित करना शामिल है।
  • भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (Insolvency and Bankruptcy Board of India- IBBI) दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान में लगातार प्रगति कर रहा है।
  • भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI) ने इन्श्युअरटेक (InsurTech) के विकास और बीमा कंपनियों की कॉर्पोरेट प्रशासन प्रक्रियाओं को मज़बूत करने के लिये पहल की है।
  • पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण (Pension Fund Regulatory and Development Authority-PFRDA) पेंशन नेट के तहत अधिक नागरिकों को लाने की प्रक्रिया में है।

स्रोत: द हिंदू

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