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भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्तीय समाधान और जमा बीमा विधेयक

  • 04 Jan 2022
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

FRDI बिल, दिवाला और दिवालियापन, त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई।

मेन्स के लिये:

FRDI बिल का महत्त्व और इससे जुड़े मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने वित्तीय क्षेत्र में फर्मों के दिवालियेपन से निपटने के लिये वित्तीय समाधान और जमा बीमा (FRDI) विधेयक के एक संशोधित संस्करण का मसौदा तैयार करने पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से सुझाव मांगे हैं।

  • वर्ष 2018 में सरकार ने बैंक जमाओं की सुरक्षा को लेकर चिंताओं के बीच FRDI विधेयक 2017 को वापस ले लिया था।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • FRDI विधेयक, 2017 वित्तीय क्षेत्र में फर्मों के दिवालियेपन के मुद्दे को संबोधित करने के लिये था।
    • यदि कोई बैंक, एनबीएफसी, बीमा कंपनी, पेंशन फंड या परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी द्वारा संचालित म्यूचुअल फंड विफल हो जाता है, तो उस फर्म को बेचने, किसी अन्य फर्म के साथ विलय करने या इसे बंद करने के लिये यह एक त्वरित समाधान प्रदान करता है। 
    • इसका उद्देश्य बैंकों, बीमा कंपनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, पेंशन फंड और स्टॉक एक्सचेंज जैसे संस्थानों की विफलता के नतीजों को सीमित करना है।
    • केंद्र सरकार के आश्वासन के बावजूद जमा की सुरक्षा को लेकर जनता के बीच चिंताओं के कारण विधेयक को वापस ले लिया गया था।
    • आलोचना का एक प्रमुख बिंदु विधेयक में तथाकथित ‘बेल-इन क्लॉज़’ था जिसमें कहा गया था कि बैंक के दिवालिया होने की स्थिति में जमाकर्त्ताओं को अपने दावों में कमी करके समाधान की लागत का एक हिस्सा वहन करना होगा।
  • नए विधेयक के बारे में:
    • यह विधेयक एक समाधान प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान करेगा, जिसके पास बैंकों, बीमा कंपनियों और व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण वित्तीय फर्मों के लिये त्वरित समाधान करने की शक्ति होगी।
    • कानून बैंक जमाकर्त्ताओं के लिये 5 लाख रुपए तक का बीमा भी प्रदान करेगा, जिनके पास पहले से ही कानूनी समर्थन है।
  • विधायी समर्थन की आवश्यकता:
    • यहाँ तक ​​​​कि जब आरबीआई NBFC (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों) के लिये एक त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) ढाँचा लेकर आया है, इसके विपरीत पूरे वित्तीय क्षेत्र के लिये एक विधायी समर्थन की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
    • इनमें से कई भारत में व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण स्थिति प्राप्त करने के आलोक में वर्तमान समाधान व्यवस्था विशेष रूप से निजी क्षेत्र की वित्तीय फर्मों के लिये अनुपयुक्त है।
    • वित्तीय फर्मों के समाधान के लिये एकल एजेंसी का प्रावधान वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (FSLRC), 2011 द्वारा न्यायमूर्ति बी एन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में की गई सिफारिशों के अनुरूप है।
    • FSLRC बिल के साथ दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2021 ने रुग्ण वित्तीय क्षेत्र की फर्मों के समापन या पुनरुद्धार की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया।

दिवाला और दिवालियापन संहिता:

  • यह 2016 में अधिनियमित एक सुधार है। यह व्यावसायिक फर्मों के दिवाला समाधान से संबंधित विभिन्न कानूनों को समाहित करता है।
  • यह बैंकों जैसे लेनदारों की मदद करने, बकाया वसूलने और खराब ऋणों को रोकने के लिये स्पष्ट तथा तीव्र दिवालियेपन की कार्यवाही करता है, जो अर्थव्यवस्था पर एक प्रमुख दबाव है।

प्रमुख शब्द

  • दिवाला: यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ व्यक्ति या कंपनियाँ अपना बकाया कर्ज चुकाने में असमर्थ होती हैं।
  • दिवालियापन: यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें सक्षम क्षेत्राधिकार के तहत न्यायालय ने किसी व्यक्ति या अन्य संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया है, इसे हल करने और लेनदारों के अधिकारों की रक्षा के लिये उचित आदेश पारित कर दिया है। यह कर्ज चुकाने में असमर्थता की कानूनी घोषणा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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