विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सबसे तेज़ ‘स्पिनिंग व्हाइट ड्वार्फ’: J0240+1952
- 24 Nov 2021
- 4 min read
प्रिलिम्स के लिये:स्पिनिंग व्हाइट ड्वार्फ, ब्लैक ड्वार्फ, चंद्रशेखर सीमा मेन्स के लिये:सबसे तेज़ ‘स्पिनिंग व्हाइट ड्वार्फ’ के बारे में प्रमुख तथ्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खगोलविदों की एक टीम ने सबसे तेज़ ‘स्पिनिंग व्हाइट ड्वार्फ’ (J0240+1952) की पुष्टि की है जो हर 25 सेकंड में एक घूर्णन पूरा करता है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह ‘बाइनरी स्टार सिस्टम’ का एक हिस्सा है; चुंबकीय प्रोपेलर प्रणाली के प्रभाव में इसका अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण प्लाज़्मा के रूप में अपने बड़े तारे से सामग्री खींच रहा है।
- चुंबकीय प्रोपेलर प्रणाली के तहत व्हाइट ड्वार्फ बाइनरी स्टार सिस्टम से प्लाज़्मा को आकर्षित करता है। हालाँकि व्हाइट ड्वार्फ का चुंबकीय क्षेत्र एक सुरक्षात्मक बाधा के रूप में कार्य करता है, जिससे अधिकांश प्लाज़्मा इससे दूर हो जाता है।
- व्हाइट ड्वार्फ:
- व्हाइट ड्वार्फ वे तारे हैं जिन्होंने उस हाइड्रोजन को जला दिया जिसे वे परमाणु ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते थे।
- ऐसे तारों का घनत्व बहुत अधिक होता है।
- एक सामान्य व्हाइट ड्वार्फ हमारे सूर्य के आधे आकार का होता है और इसकी सतह का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 100,000 गुना अधिक होता है।
- हमारे सूर्य जैसे तारे नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओं के माध्यम से अपने कोर में हाइड्रोजन को हीलियम में संलयित करते हैं।
- एक तारे के कोर में संलयन ऊष्मा और बाहरी दबाव पैदा करता है लेकिन यह दबाव एक तारे के द्रव्यमान से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण द्वारा संतुलन में रखा जाता है।
- जब हाइड्रोजन का ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है तो यह विलुप्त हो जाता है और संलयन धीमा हो जाता है एवं गुरुत्वाकर्षण के कारण तारे अपने आप व्हाइट ड्वार्फ के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
- ब्लैक ड्वार्फ: अंततः सैकड़ों अरबों वर्षों में एक व्हाइट ड्वार्फ तब तक ठंडा रहता है जब तक कि वह ब्लैक ड्वार्फ नहीं बन जाता।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि सभी व्हाइट ड्वार्फ शांत नहीं होते हैं और ब्लैक ड्वार्फ में बदल जाते हैं।
- इस बिंदु पर इसके केंद्र पर दबाव इतना अधिक हो जाता है कि तारा थर्मोन्यूक्लियर सुपरनोवा में विस्फोट कर देगा।
- व्हाइट ड्वार्फ वे तारे हैं जिन्होंने उस हाइड्रोजन को जला दिया जिसे वे परमाणु ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते थे।
चंद्रशेखर सीमा
- चंद्रशेखर सीमा एक स्थिर सफेद बौने तारे के लिये सैद्धांतिक रूप से संभव अधिकतम द्रव्यमान है।
- सफेद बौने तारों के द्रव्यमान की ऊपरी सीमा सौर द्रव्यमान के 1.44 गुना से अधिक विशाल नहीं हो सकती है।
- किसी भी अपक्षयी वस्तु को अनिवार्य रूप से न्यूट्रॉन स्टार या ब्लैक होल में गिरना चाहिये।
- इस सीमा का नाम नोबेल पुरस्कार विजेता सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पहली बार 1931 में इस विचार का प्रस्ताव रखा था।
- सितारों की संरचना और विकास में शामिल भौतिक प्रक्रियाओं पर उनके काम के लिये वर्ष 1983 में उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।