भारत में कृषि एक जोखिम भरा व्यवसाय | 12 Aug 2017
संदर्भ
शुक्रवार को पेश की गई आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट 2016-17 के दूसरे खंड में भारत में कृषि को एक जोखिम भरा व्यवसाय बताते हुए कहा गया है कि यहाँ किसानों को फसलों के रोपण से लेकर अपने उत्पादों के लिये बाज़ार खोजने तक जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है। अतः इन जोखिमों को कम करने से कृषि आय और मुनाफे में वृद्धि हो सकती है।
भारत में कृषि जोखिम क्यों ?
- भारत में कृषि में जोखिम कई कारणों से हैं। कृषि में जोखिम फसल उत्पादन, मौसम की अनिश्चितता, फसल की कीमतों, ऋण और नीतिगत फैसलों से जुड़े हुए हैं।
- कीमतों में जोखिम का मुख्य कारण पारिश्रमिक लागत से भी कम आय, बाज़ार की अनुपस्थिति और बिचौलियों द्वारा अत्यधिक मुनाफा कमाना है।
- बाज़ारों की अकुशलता और किसानों के उत्पादों की विनाशशील प्रकृति, उत्पादन को बनाए रखने में उनकी असमर्थता, अधिशेष या कमी के परिदृश्यों में बचाव या घाटे के खिलाफ बीमें में बहुत कम लचीलेपन के कारण कीमतों में जोखीम बहुत गंभीर हैं।
- नीतिगत फैसलों और विनियमों से संबंधित जोखिमों को दूर करने के लिये सर्वे में कहा गया है कि व्यापार नीति और व्यापारियों पर स्टॉक की सीमा की घोषणा फसल लगाने से पहले घोषित की जानी चाहिये तथा इसे किसानों द्वारा कटी हुई फसल के बेचे जाने तक रहने दिया जाना चाहिये।
जोखिम दूर करने के उपाय
- कृषि क्षेत्र के जोखिमों को प्रबंधित और कम करने के लिये उन्हें वर्गीकृत कर संबोधित करने की आवश्यकता है।
- घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार दोनों में मांग-आपूर्ति गतिशीलता के कारण उत्पन्न बाज़ार जोखिम को संबोधित करने के लिये अनुबंध कृषि और किसानों से उत्पाद की प्रत्यक्ष खरीद की अनुमति देने का सुझाव बेहतर है।
- हालाँकि सरकार कीमतों और उत्पादन जोखिमों को पूरा करने के लिये नई योजनाएँ लाई है, परंतु इनका कार्यान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा है।
- फसल बीमा योजना और इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाज़ार दोनों अच्छे विचार हैं, परंतु इनका कार्यान्वयन ठीक से नहीं होने के कारण ये जमीनी स्तर पर अच्छे परिणाम नहीं दिखा पा रहे हैं।
- किसानों को शिक्षित करने की आवश्यकता है कि पिछले साल की फसल की कीमतों के आधार पर रोपण का फैसला फायदेमंद नहीं भी हो सकता है। किसान को बुवाई के एक स्थिर पैटर्न को अपनाना चाहिये ताकि लंबे समय तक उसे उत्पाद का औसत मूल्य प्राप्त होता रहे।
उत्तर प्रदेश मॉडल
- आर्थिक सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश मॉडल को अपनाए जाने की वकालत की गई है। उत्तर प्रदेश में सभी छोटे एवं सीमांत किसानों के एक लाख रुपए तक के कृषि ऋण को माफ़ कर दिया गया है।