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भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID- 19 महामारी के कारण रुपए के मूल्य में गिरावट

  • 17 Apr 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

विदेशी विनिमय दर, यू. एस डॉलर इंडेक्स, मूल्य ह्रास तथा मूल्य वृद्धि, विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक 

मेन्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक का विनिमय दर में हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

COVID- 19 महामारी के चलते भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 43 पैसे की गिरावट के साथ 76.87 रुपए के मूल्य स्तर पर आ गया।

मुख्य बिंदु:

  • रुपए के मूल्य स्तर में यह गिरावट इसलिये आई है क्योंकि निवेशक जोखिमपूर्ण बाज़ारों से अपना निवेश निकालकर सुरक्षित देशों में ले जा रहे हैं।
  • घरेलू और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID- 19 महामारी के प्रभावों के कारण निवेशकों की चिंता लगातार बढ़ रही हैं।
  • हालाँकि ‘यू. एस. डॉलर सूचकांक’ (U.S. Dollar Index- USDX) का मूल्य 0.3% बढ़कर 99.19 स्तर पर पहुँच गया।

यू. एस. डॉलर सूचकांक (U.S. Dollar Index- USDX):

  • USDX सूचकांक में विदेशी मुद्राओं के एक समूह या बास्केट के आधार पर अमेरिकी डॉलर का मूल्य निर्धारित किया जाता है।
  • इस सूचकांक की गणना वर्तमान में विश्व की छह प्रमुख मुद्राओं की विनिमय दरों के आधार पर की जाती है, जिसमें यूरो, जापानी येन, कनाडाई डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोन तथा स्विस फ्रैंक शामिल है।

USDX

विदेशी विनिमय दर:

  • विदेशी विनिमय दर, एक मुद्रा की दूसरी मुद्रा में कीमत है। यह विभिन्न देशों की मुद्राओं के बीच कड़ी है और अंतर्राष्ट्रीय लागतों और कीमतों की तुलना करने में सहायक है। उदाहरण के लिये, यदि हमें एक डाॅलर के लिये 55 रुपए देने पड़ते हैं तो विनिमय की दर 55 रुपए प्रति डाॅलर होगी।

विनिमय दर का निर्धारण:

  • अलग-अलग देशों की, मुद्रा विनिमय दर का निर्धारण करने की अलग-अलग प्रणालियाँ हैं। इसको ‘लचीली विनिमय दर’ (Floating Exchange Rate), ‘स्थिर विनिमय दर’ अथवा ‘प्रतिबंधित लचीली विनिमय’ दर के द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।

मूल्य ह्रास तथा मूल्य वृद्धि:

  • विनिमय दर में वृद्धि का तात्पर्य है कि विदेशी मुद्रा डाॅलर की कीमत, घरेलू मुद्रा (रुपए) के रूप में बढ़ गई है। इसे घरेलू मुद्रा (रुपए) का विदेशी मुद्रा (डॉलर) के रूप में 'मूल्य ह्रास' कहते हैं। लचीली विनिमय दर व्यवस्था के अंर्तगत, जब घरेलू मुद्रा की कीमत, विदेशी मुद्रा के रूप में बढ़ जाती है तो इसे घरेलू मुद्रा की, विदेशी मुद्रा के सापेक्ष ‘मूल्य वृद्धि' कहते हैं।

विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक: 

  • आयात और निर्यात:
    • विदेशी वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि तथा कमी, विनिमय की दर में बदलाव लाती है। यदि मांग में वृद्धि हो तो घरेलू मुद्रा में मूल्य ह्रास तथा मांग  में कमी हो तो मूल्य वृद्धि देखी जाती है। 
  • मांग  तथा आपूर्ति:
    • यह विनिमय दर, बाजार मांग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। 
  • सट्टेबाजी (Speculation):
    • विनिमय दर केवल निर्यात और आयात की मांग  एवं पूर्ति तथा परिसंपत्तियों में निवेश पर ही निर्भर नहीं करती है बल्कि विदेशी विनिमय के सट्टेबाजी पर भी निर्भर करती है, जहाँ विदेशी विनिमय की मांग  मुद्रा की मूल्य वृद्धि से प्राप्त संभावित लाभ के लिये की जाती है।
    •  किसी भी देश की मुद्रा एक प्रकार की परिसंपत्ति है। यदि भारतीयों को यह विश्वास हो कि ब्रिटिश पौंड के मूल्य में रुपए की अपेक्षा वृद्धि होने की संभावना है, तो वे पौंड को अपने पास रखना चाहेंगे तथा इससे पौंड की मांग  बढ़ेगी।
  • ब्याज की दरें और विनिमय दरः
    • अल्पकाल में विनिमय दर के निर्धारण में एक दूसरा कारक भी महत्त्वपूर्ण होता है, जिसे ब्याज दर विभेदक कहते हैं। अर्थात देशों के बीच ब्याज की दरों में अंतर होता है। 
    • बैंक, बहुराष्ट्रीय निगम और धनी व्यक्ति, विशाल निधि के स्वामी होते हैं। जो अधिक आय प्राप्त करने के लिये ऊँची ब्याज दर की खोज में रहते हैं। निवेशकर्त्ता उच्च ब्याज दर की ओर आकर्षित होते हैं और अपने देश की मुद्रा को बेचकर अन्य देश की मुद्रा का क्रय करते हैं। 
    • इस स्थिति में देश की मुद्रा की कम मांग होगी तथा इससे घरेलू देश की मुद्रा के मूल्य में ह्रास होगा। अतः किसी देश की आंतरिक ब्याज दर में वृद्धि होने पर घरेलू मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होगी।
  • आय और विनिमय दरः
    • जब आय में वृद्धि होती है, तो उपभोक्ता के व्यय में भी वृद्धि होती है तथा इससे आयातित वस्तुओं पर व्यय में भी वृद्धि की संभावना होती है। 
    • जब आयात बढ़ता है तो इससे घरेलू मुद्रा के मूल्य में ह्रास होता है। यदि विदेशी आय में वृद्धि होती है तो घरेलू निर्यात में वृद्धि होगी।

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) का हस्तक्षेप:

  • RBI मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करता है ताकि कमजोर होते रुपए तथा देश के आयात बिल को संतुलित कर सके। 
  • ऐसे कई तरीके हैं जिनके द्वारा RBI हस्तक्षेप करता है: 
    •  यह डॉलर की खरीद तथा बिक्री के माध्यम से सीधे मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है। अगर RBI रुपए के मूल्य को बढ़ाना चाहता है, तो वह डॉलर बिक्री कर सकता है और जब रुपए के मूल्य को नीचे लाने की आवश्यकता होती है, तो वह डॉलर खरीद सकता है। 
    • केंद्रीय बैंक 'मौद्रिक नीति' (Monetary Policy) के माध्यम से रुपए के मूल्य को भी प्रभावित कर सकता है। RBI रेपो दर (जिस दर पर RBI बैंकों को उधार देता है) तथा 'तरलता अनुपात' उपायों का उपयोग कर मूल्य स्तर को समायोजित करता है।

निष्कर्ष: 

  • वस्तुतः देखा जाए तो केवल रुपए का कमज़ोर होना चिंता की बात नहीं है। रुपए में कमज़ोरी आना तक आर्थिक विकास को प्रभावित करता है जब रुपए के कमज़ोर होने के साथ-साथ चालू खाता घाटा, मुद्रास्फीति, राजकोषीय घाटा आदि नियंत्रण में न रहें।
  • क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ के अनुसार, भारत की ऋणों के लिये विदेशी मुद्रा उधार पर कम निर्भरता अवमूल्यन के जोखिम को कम कर देती है। भारत का व्यापक घरेलू बाज़ार और स्थिर वित्तपोषण इसे बाहरी अस्थिरताओं से बचाने का कार्य करता है।

स्रोत: द हिंदू

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