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भारतीय अर्थव्यवस्था

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में गिरावट

  • 12 Aug 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक

मेन्स के लिये

भारत के विकास के बारे में गणना करने हेतु IIP कितना उपयोगी है।

चर्चा में क्यों?

नवीनतम आँकड़े बताते हैं कि इस वर्ष जून माह में भारत के औद्योगिक उत्पादन में लगातार गिरावट दर्ज की गई है, हालाँकि मई माह की तुलना में इस गिरावट की दर अपेक्षाकृत कम रही है, जो कि विनिर्माण गतिविधियों के सामान्यीकरण का संकेत दे रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा जारी आँकड़े बताते हैं कि अप्रैल-जून तिमाही में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में संचयी रूप से बीते वर्ष इसी अवधि की तुलना में 35.9 प्रतिशत का संकुचन हुआ, जबकि वर्ष 2019 की अप्रैल-जून तिमाही में इसमें 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। 
    • आँकड़े बताते हैं कि इस वर्ष अप्रैल-जून तिमाही में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (67.6 प्रतिशत), पूंजीगत वस्तुओं (64.3 प्रतिशत) और विनिर्माण (40.7 प्रतिशत) में सबसे अधिक संकुचन देखने को मिला।
  • उपभोक्ता गैर-टिकाऊ (Consumer Non-Durables) वस्तुओं को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों पर कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी और उसके कारण लागू किये गए लॉकडाउन का प्रभाव देखने को मिला है।
  • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के अनुसार, जून माह में विनिर्माण क्षेत्र में 17.1 प्रतिशत की कमी देखने को मिली, जबकि इसी वर्ष मई माह में यह 38.4 प्रतिशत था।
  • जून 2020 में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन में 35.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि मई माह में यह गिरावट 69.4 प्रतिशत के आस-पास थी।
  • वहीं पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में जून माह में बीते वर्ष जून 2019 की अपेक्षा 36.9 प्रतिशत की कमी देखने को मिली, जबकि मई माह में यह कमी 65.2 प्रतिशत थी।

कारण: 

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के अनुसार, कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के मद्देनज़र मार्च 2020 के अंत से ही औद्योगिक क्षेत्र के कई संस्थान अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य नहीं कर पा रहे हैं।
  • इसका स्पष्ट प्रभाव लॉकडाउन की अवधि के दौरान औद्योगिक संस्थाओं द्वारा किये जाने वाले उत्पादन पर पड़ा है।

निहितार्थ:

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अपने आधिकारिक दस्तावेज़ में कहा है कि कोरोना वायरस (COVID-19) और उसके बाद के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) संबंधी आँकड़ों की तुलना कोरोना वायरस (COVID-19) से पूर्व के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) संबंधी आँकड़ों से करना न्यायसंगत नहीं होगा, क्योंकि वर्तमान परिस्थितियाँ पूरी तरह से अलग हैं।
  • कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि हालाँकि देश में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से आर्थिक गतिविधियों में कुछ बढ़ोतरी देखने को मिली है, किंतु अगस्त माह में इसमें फिर से कमी होने की उम्मीद है, क्योंकि वायरस के बढ़ते प्रसार के कारण देश भर के राज्यों ने अपने-अपने स्तर पर पर स्थानीय लॉकडाउन लागू कर दिया है।
  • विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में जैसे-जैसे स्थितियाँ सामान्य होती जाएंगी, वैसे-वैसे ही औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) और अन्य आर्थिक सूचकांकों में सुधार होता रहेगा।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP)

  • यह सूचकांक अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के विकास का विवरण प्रस्तुत करता है, जैसे कि खनिज खनन, बिजली, विनिर्माण आदि।
    • इसे अर्थव्यवस्था के विनिर्माण क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक संकेतक माना जाता है।
  • वर्तमान में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) की गणना वित्तीय वर्ष 2011-2012 को आधार वर्ष मान कर की जाती है।
  • इसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
  • IIP एक समग्र संकेतक है जो कि प्रमुख क्षेत्र (Core Sectors) एवं उपयोग आधारित क्षेत्र के आधार पर आँकड़े उपलब्ध कराता है।

सूचकांक का महत्त्व और प्रयोग

  • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) का उपयोग वित्त मंत्रालय और भारतीय रिज़र्व बैंक  (RBI) जैसी सरकारी एजेंसियों और निजी फर्मों तथा विश्लेषकों द्वारा विश्लेषणात्मक उद्देश्यों के लिये किया जाता है।
  • चूँकि 1 वर्ष के प्रोजेक्ट के लिये केवल 1 माह के आँकड़ों को आधार नहीं बनाया जा सकता, इसलिये यह पूरे वर्ष का होना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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