आपदा प्रबंधन
फेस ऑफ़ डिजास्टर्स 2019
- 25 May 2019
- 6 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी (Sustainable Environment and Ecological Development Society-SEEDS) ने फेस ऑफ डिजास्टर्स 2019 (Face of Disasters 2019) नामक रिपोर्ट प्रकाशित की। SEEDS द्वारा अपनी 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर जारी की गई इस रिपोर्ट में आपदाओं के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी प्रदान करने के लिये व्यापक दृष्टिकोण के साथ अतीत के रुझानों का विश्लेषण किया गया है।
इस रिपोर्ट में आठ प्रमुख क्षेत्रों का जिक्र किया गया है जिन पर विचार करना आवश्यक है। ये क्षेत्र हैं-
- जल तथा आपदा जोखिम की बदलती प्रकृति: वर्षा में एक नई तथा सामान्य परिवर्तनशीलता के कारण किसी स्थान पर बहुत कम तो किसी स्थान पर बहुत अधिक वर्षा जैसी चुनौतियाँ सामने आ रही हैं।
- कोई भी आपदा ‘प्राकृतिक’ नहीं है: कुछ आपदाएँ ऐसी होती हैं जो स्पष्ट रूप से सामने नहीं होती लेकिन किसी भी समय आ सकती हैं क्योंकि ये 'प्राकृतिक आपदा की अवधारणा’ को पूरा नहीं करती हैं।
- मूक घटनाएँ: जो आपदाएँ अनदेखी होती हैं, वे लोगों के समक्ष और भी अधिक जोखिम लेकर आती हैं।
- स्थल का जल (और जल का स्थल) में परिवर्तन: समुद्र तट में परिवर्तन पहले से ही आजीविका के स्रोतों को प्रभावित कर रहा है तथा भविष्य में इसके कारण और अधिक सुभेद्यता/संवेदनशीलता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- आपदा प्रभाव की जटिलता: आधिकारिक 'नुकसान' से परे, इन दीर्घकालिक और अनपेक्षित आपदाओं के परिणाम प्रभावित समुदायों के जीवन को बदलने वाले होते हैं।
- शहरी अनिवार्यता: ये जोखिम तेज़ी से शहरों की तरफ बढ़ रहे हैं और सभी को प्रभावित करेंगे।
- तीसरे ध्रुव में रूपांतरण: हिमालयी ग्लेशियर के पिघलने से पूरे क्षेत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
- जिसे देख नहीं सकते उसके लिये योजना बनाना: भूकंप की संभावनाएँ अक्सर बनी रहती हैं जिनके बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, लेकिन क्या भूकंप जैसी आपदा का सामना करने के लिये हम तैयार हैं?
चिंताएँ
- ग्रीष्म लहर (Heat Waves) और सूखे की स्थिति जो पहले से ही विद्यमान है के साथ-साथ वर्ष 2019 में असामान्य रूप से बाढ़ आएगी।
- केवल एक ही वृहद् आपदा अभी तक हुए विकास को समाप्त कर सकती हैं और बार-बार आने वाली छोटे पैमाने की आपदाएँ कमज़ोर परिवारों को गरीबी के चक्र में बनाए रख सकती हैं।
- हालाँकि विभिन्न घटनाओं या प्राकृतिक आपदाओं का यह स्वरुप/पैटर्न हर साल दोहराया जाता है लेकिन इनमें से केवल कुछ ही घटनाएँ ऐसी होती हैं जो वास्तव में जनता का ध्यान आकर्षित करती हैं। कुछ अन्य प्रकार के जोखिम भी हैं जो लोगों का ध्यान तो आकर्षित नहीं करते लेकिन लोगों की नज़रों से परे ये सशक्त होते रहते हैं तथा अचानक सामने आते हैं।
भारत में प्राकृतिक आपदाएँ
- वर्ष 2018 में, भारत में एक बड़े भूकंप और इससे संबंधित घटनाओं को छोड़कर लगभग हर प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुईं।
- बाढ़, सूखा, ग्रीष्म और शीत लहरें, बिजली गिरने की घटनाएँ, चक्रवात और यहाँ तक कि ओलावृष्टि जैसी आपदाओं की एक विस्तृत श्रृंखला ने देश को सबसे अधिक प्रभावित किया।
- ये घटनाएँ कुछ महत्त्वपूर्ण सवालों और मुद्दों को प्रस्तुत करती है साथ ही भविष्य में आने वाली आपदाओं की ओर भी इशारा करती हैं।
- निष्कर्ष
- वर्तमान प्रवृत्ति आपदाओं के विभिन्न पहलुओं और इनकी जटिलताओं की पुष्टि करते हैं।
- भविष्य में इन आपदाओं या जोखिमों का सामना करने के लिये स्पष्ट रूप से जोखिमों की व्यापक समझ और अति-स्थानीयकृत योजनाएँ तथा उन्हें कम करने के लिये संसाधनों के आवंटन की आवश्यकता है।
सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी (SEEDS)
- यह एक गैर-लाभकारी स्वैच्छिक संगठन है, जो विकास से संबंधित क्षेत्रों आए युवा पेशेवरों का एक सामूहिक प्रयास है।
- इसके उत्पत्ति समान विचारों वाले व्यक्तियों के एक अनौपचारिक समूह के रूप में हुई जो शैक्षणिक हित के लिये रचनात्मक अनुसंधान परियोजनाओं के उद्देश्य से एक साथ आए।
- यह सामुदायिक विकास, आपदा प्रबंधन, पर्यावरण योजना, परिवहन योजना और शहरी तथा क्षेत्रीय योजनाओं से संबंधित अनुसंधान गतिविधियों में शामिल है। ये गतिविधियाँ सरकारी, अर्द्ध-सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसियों की ओर से की जाती हैं।