जैव विविधता और पर्यावरण
अत्यधिक वर्षा के कारण जलाशयों का संचालन करना गंभीर चुनौती
- 24 Aug 2018
- 3 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर किये गए अध्ययन में बताया गया है कि औसत वार्षिक वर्षा में हुई वृद्धि के कारण निकट भविष्य (2020-2030) में तथा सदी के मध्य और अंत (2070-2099) में भारत के जलविद्युत उत्पादन करने वाले शीर्ष सात बड़े जलाशयों की जलग्रहण क्षमता में कमी की के चलते भविष्य में भारत को गंभीर आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि यह अध्ययन आईआईटी गांधीनगर के शोधकर्र्ताओं की एक टीम द्वारा किया गया था।
- इस अध्ययन के मुताबिक, यदि कार्बन उत्सर्जन कम हो तो सदी के अंत तक औसत वार्षिक वर्षा में 6-11% की वृद्धि और औसत वार्षिक तापमान 2.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने का अनुमान लगाया गया है।
- वहीं उच्च कार्बन उत्सर्जन के मामले में सदी के अंत तक औसत वार्षिक वर्षा में 13-18% तक वृद्धि हो सकती है, जबकि वार्षिक तापमान 6.25 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की उम्मीद है।
प्रमुख सात जलाशय
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिये भारत में जलविद्युत उत्पादन करने वाले सात बड़े जलाशयों का अध्ययन किया गया था।
- इन सात जलाशयों में नाथपा झाकरी, भाखड़ा-नांगल, श्रीशैलम, नागार्जुन सागर, हीराकुंड, सरदार सरोवर और इंदिरा सागर शामिल हैं।
- उल्लेखनीय है कि नाथपा झाकरी, भाखड़ा-नांगल सतलुज नदी पर स्थित जलाशय/बांध हैं और बर्फ का पिघला पानी इनका प्रमुख स्रोत है, जो भविष्य में जलवायु के कारण बदल सकता है।
- जबकि अन्य पाँच जलाशय मुख्य रूप से भारत के मध्य-दक्षिण मानसून-वर्चस्व वाले जलवायु क्षेत्र में स्थित हैं।
- अध्ययन में बताया गया है कि यदि इसी प्रकार से औसत वार्षिक वर्षा में वृद्धि दर्ज की गई तो इन जलाशयों का कार्यान्वयन एक गंभीर चुनौती का कारण बन सकती है।
- दरअसल,जलाशय में अतिरिक्त जल प्रवाह की दशा में इनके जल को छोड़ा जाता है और यह अतिरिक्त्त जल आस-पास के इलाकों में पहुँचकर बाढ़ का कारण बनता है।
- ऐसी दशा में जलविद्युत उत्पादन से ध्यान हटाकर बाढ़ या आपदा शमन पर केंद्रित किया जाएगा।
- हाल ही में केरल में आई भयावह बाढ़ को भी उपर्युक्त कारणों का ही परिणाम माना जा रहा है।