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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

एक्सट्रीम हीलियम तारा

  • 25 Jun 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये: 

एक्सट्रीम हीलियम तारा, श्वेत वामन

मेन्स के लिये:

एक्सट्रीम हीलियम तारे तथा इनके वायुमंडल में एकल आयन फ्लोरीन की उपस्थित का महत्त्व

चर्चा में क्यों:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) के स्वायत्त संस्थान, भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics-IIA) द्वारा किये गए अध्ययन में गर्म एक्सट्रीम हीलियम स्टार्स (Extreme Helium Star- EHe) के वायुमंडल में पहली बार एकल आयन फ्लोरीन की उपस्थिति का पता चला है।

प्रमुख बिंदु

  • यह अध्ययन एस्ट्रोफिज़िकल जर्नल (Astrophysical Journal) में प्रकाशित हुआ है। 
  • इस शोध/अध्ययन के लिये हानले, लद्दाख में स्थित भारतीय खगोलीय वेधशाला (Indian Astronomical Observatory-IAO) में संचालित 2-मी. हिमालयी चंद्र टेलीस्कोप (Himalayan Chandra Telescope) पर लगे हुए हानले ऐशेल स्पेक्टोग्राफ (Hanle Echelle Spectrograph- HESP) से 10 गर्म EHes के उच्च-रिज़ॉल्यूशन ऐशेल स्पेक्ट्रा प्राप्त किये गए।
    • इस वेधशाला का संचालन दूरस्थ रूप से भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (IIA) द्वारा मैकडॉनल्ड्स वेधशाला (McDonald Observatory), अमेरिका और यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला (European Southern Observatory-ESO) के डेटा के साथ किया जाता है।

एक्सट्रीम हीलियम तारा क्या है?

Extreme Helium Star (EHe)

  • एक एक्सट्रीम हीलियम तारा या EHe कम द्रव्यमान वाला सुपरजायंट (बहुत बड़े व्यास और कम घनत्व का एक अत्यंत चमकीला तारा) है जिसमें हाइड्रोजन मौजूद नहीं होता है। जबकि हाइड्रोजन ब्रह्मांड का सबसे आम रासायनिक तत्त्व है। 
  • हमारी आकाशगंगा में अब तक ऐसे 21 तारों का पता लगाया गया है। इन हाइड्रोजन रहित पिंडों की उत्पत्ति और विकास एक रहस्य है। इनकी रासायनिक विशिष्टताएँ विकास के स्थापित सिद्धांत को चुनौती देती हैं,क्योंकि इनकी रासायनिक संरचना कम द्रव्यमान वाले विकसित तारों के समान नहीं होती है।

अध्ययन का महत्त्व

  • यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि EHe के निर्माण में मुख्य रूप से में कार्बन-ऑक्सीजन (CO) और एक हीलियम (He) श्वेत वामन तारों (White Dwarfs) का विलय शामिल होता है।

श्वेत वामन (White Dwarfs)

White-dwarfs

  • एक श्वेत वामन या सफेद बौने तारे का निर्माण तब होता है जब सूर्य जैसा कोई तारा अपने परमाणु ईंधन को समाप्त कर देता है।
  • अपने परमाणु ईंधन के जलने के अंतिम चरण तक, इस प्रकार का तारा अपने बाह्य पदार्थों का सर्वाधिक निष्कासन करता है, जिसके परिणामस्वरूप निहारिका (nebula) का निर्माण होता है।
  • तारे का केवल गर्म कोर शेष रहता है। यह कोर एक बहुत गर्म सफेद बौना तारा बन जाता है, जिसका तापमान 100,000 केल्विन से अधिक होता है।
  • यद्यपि इनका आकार सूर्य के आकार का लगभग आधा होता है फिर भी ये पृथ्वी से बड़े होते हैं।
  • Ehe तारों के विकास के बारे में जानने के लिये उनकी रासायनिक संरचना के सटीक निर्धारण की आवश्यकता होती है और यदि कोई विशिष्टता हो, तो बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
  • हाइड्रोजन रहित इन पिंडों के विकास को समझने में फ्लोरीन बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गर्म एक्सट्रीम हीलियम तारों में फ्लोरीन की खोज से उनके विकास के रहस्य के बारे में पता चल सकता है।
  • ठंडे EHe तथा ठंडे चिरसम्मत हाइड्रोजन रहित पिंडों (Classical Hydrogen Deficient Stars) में सामान्य तारों (800- 8000 के क्रम का) की तुलना में उच्च फ्लोरीन संवर्द्धन पाया गया। RCB परिवर्तक यानी उत्तरकीरीट तारामंडल (Coronae Borealis) में उपस्थित तारे इन दोनों के बीच निकट विकासवादी संबंध को इंगित करते हैं।

निष्कर्ष

  • यह अध्ययन गर्म EHe के विकास क्रम में ठंडे Ehe और अन्य हाइड्रोजन-रहित तारों के विकासवादी परिदृश्य- जिसमें दो श्वेत वामन तारों का विलय शामिल है, के बारे में जानकारी प्रदान करता है। गर्म EHe के वायुमंडल में अधिक फ्लोरीन प्रचुरता के बारे में जानकारी प्राप्त होने से उनके निर्माण के बारे में दशकों पुराना रहस्य हल हो सकता है।

भारतीय ताराभौतिकी संस्थान 

(Indian Institute of Astrophysics-IIA) 

  • यह देश का एक प्रमुख संस्थान है, जो खगोल ताराभौतिकी एवं संबंधित भौतिकी में शोधकार्य को समर्पित है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department Of Science & Technology- DST) के अवलंब से संचालित यह संस्थान आज देश में खगोल एवं भौतिकी में शोध एवं शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र है। 
  • संस्थान की प्रमुख प्रेक्षण सुविधाएँ कोडैकनाल (तमिलनाडु), कावलूर (कर्नाटक), गौरीबिदनूर (कर्नाटक) एवं हानले (लद्दाख) में स्थापित हैं।

पृष्ठभूमि

  • इसका उद्गम मद्रास (चेन्नई) में वर्ष 1786 में स्थापित की गई एक निजी वेधशाला से जुड़ा है, जो वर्ष 1792 में नुंगमबक्कम (Nungambakkam) में मद्रास वेधशाला के रूप में कार्यशील हुई। वर्ष 1899 में इस वेधशाला को कोडैकनाल में स्थानांतरित किया गया। वर्ष 1971 में कोडैकनाल वेधशाला ने एक स्वायत्त संस्था भारतीय ताराभौतिकी संस्थान का रूप ले लिया।
  • वर्ष 1975 में संस्थान का मुख्यालय कोरमंगला, बंगलूरू में स्थानांतरित हुआ। 

स्रोत: पी.आई.बी.

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