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शासन व्यवस्था

प्रत्यर्पण

  • 19 Apr 2021
  • 4 min read

हाल ही में, ब्रिटेन के गृह विभाग ने पंजाब नेशनल बैंक (PNB) में 13,758 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के आरोपी भारत के एक हीरा व्यापारी नीरव मोदी के प्रत्यर्पण को मंज़ूरी दे दी है।

  • भारत और ब्रिटेन के बीच प्रत्यर्पण संधि वर्ष 1992 में अस्तित्व में आई।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रत्यर्पण वह प्रक्रिया है जिसमें एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य से एक ऐसे व्यक्ति को वापस करने का अनुरोध किया जाता है, जिसे अनुरोध करने वाले राज्य की अदालतों में अभियुक्त या दोषी ठहराया गया हो। 
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई प्रत्यर्पण की परिभाषा के अनुसार, ‘प्रत्यर्पण, एक देश द्वारा दूसरे देश में किये गए किसी अपराध में अभियुक्त अथवा दोषी ठहराए गए व्यक्ति को संबंधित देश को सौंपना है, बशर्ते वह अपराध उस देश की अदालत द्वारा न्यायोचित हो।
  • प्रत्यर्पित व्यक्तियों में वे लोग शामिल होते हैं जो किसी अपराध के संबंध में आरोपित हैं या ऐसे लोग जो दोषी पाए गए हैं लेकिन हिरासत से बच गए हैं या अनुपस्थित होने पर दोषी पाए गए हैं।

भारत में प्रत्यर्पण कानून:

  • भारत में एक भगोड़े अपराधी के प्रत्यर्पण को भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 के तहत नियंत्रित किया जाता है।
    • यह भारत में लाने और भारत से विदेशी देशों में ले जाने दोनों प्रकार के व्यक्तियों को प्रत्यर्पित करने के लिये है।
    • भारत और किसी अन्य देश के बीच प्रत्यर्पण का आधार एक संधि हो सकती है।
      • वर्तमान में भारत की 40 से अधिक देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है और 11 देशों के साथ प्रत्यर्पण समझौता है।

प्रत्यर्पण संधि:

  • भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 की धारा 2 (D) एक विदेशी राज्य के साथ भारत द्वारा की गईं संधि, समझौते या व्यवस्था के रूप में एक 'प्रत्यर्पण संधि' को परिभाषित करती है, यह भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण से संबंधित है और भारत में बाध्यकारी है। प्रत्यर्पण संधियाँ पारंपरिक रूप से प्रकृति में द्विपक्षीय होती हैं।
  • पालन किये जाने वाले सिद्धांत:
    • प्रत्यर्पण केवल ऐसे अपराधों पर लागू होता है जो संधि में उल्लिखित हैं।
    • यह दोहरी आपराधिकता के सिद्धांत को लागू करता है जिसका अर्थ है कि अनुरोध करने वाले देश के साथ-साथ अनुरोधित देश के राष्ट्रीय कानूनों में भी अपराध होना।
    • प्रत्यर्पण केवल उस अपराध के लिये किया जाना चाहिये जिसके लिये प्रत्यर्पण का अनुरोध किया गया हो।
    • अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिये।

नोडल प्राधिकारी:

  • विदेश मंत्रालय का दूतावास, पासपोर्ट और वीज़ा डिवीजन, प्रत्यर्पण अधिनियम का संचालन करता है और यह आने वाले और बाहर जाने वाले प्रत्यर्पण अनुरोधों को विनियमित करता है।

कार्यान्वयन:

  • अंडर-इन्वेस्टिगेशन, अंडर-ट्रायल और दोषी अपराधियों के मामले में प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
  • जाँच के मामलों में कानून प्रवर्तन एजेंसी द्वारा अत्यधिक सावधानी बरती जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विदेशी राज्य में न्यायालय के समक्ष आरोप को बनाए रखने के लिये यह प्रथम दृष्टया सबूत के रूप में कार्य कर सके।

स्रोत- द हिंदू

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