न्यायेतर हत्याएँ | 17 Apr 2023
प्रिलिम्स के लिये:न्यायेतर हत्याएँ, सर्वोच्च न्यायालय, मौलिक अधिकार, IPC, NHRC, CID मेन्स के लिये:न्यायेतर हत्याएँ |
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश में पुलिस मुठभेड़ (Encounter) के मामलों को देखते हुए हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में न्यायेतर हत्याओं (Extra-Judicial Killings- EJK) पर अपने विचार व्यक्त किये हैं और कहा है कि जीवन का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है और न्यायेतर हत्याएँ इस अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि हाल के वर्षों में भारत में पुलिस मुठभेड़ों और न्यायेतर हत्याओं के कई मामले सामने आए हैं जिससे पुलिस द्वारा शक्ति के दुरुपयोग किये जाने को लेकर चिंता जताई जाती रही है।
न्यायेतर हत्याएँ:
- परिचय:
- न्यायेतर हत्या से तात्पर्य राज्य या उसके एजेंटों द्वारा बिना किसी न्यायिक अथवा कानूनी कार्यवाही के किसी व्यक्ति की हत्या करने से है।
- इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे, उचित प्रक्रिया या किसी कानूनी औचित्य के मार दिया जाता है।
- इसके विभिन्न रूप हो सकते हैं, जैसे कि न्यायेतर मृत्युदंड (Extrajudicial Executions), अविलंबित मृत्युदंड (Summary Executions) और बलपूर्वक गायब किया जाना आदि। ये सभी कार्य अवैध हैं और मानवाधिकारों तथा कानून के शासन का उल्लंघन करते हैं।
- अक्सर कानून व्यवस्था बनाए रखने अथवा आतंकवाद का मुकाबला करने के नाम पर ऐसे कार्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों अथवा सुरक्षा बलों द्वारा किये जाते हैं।
- न्यायेतर हत्या से तात्पर्य राज्य या उसके एजेंटों द्वारा बिना किसी न्यायिक अथवा कानूनी कार्यवाही के किसी व्यक्ति की हत्या करने से है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान के अनुसार, भारत में कानून का शासन होना चाहिये, संविधान ही सर्वोच्च शक्ति है और विधायी एवं कार्यपालिका इसी से अधिकृत होते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गैर-परक्राम्य अधिकार है। निर्दोषता या अपराध के बावजूद यह पुलिस का कर्त्तव्य है कि वह संविधान को बनाए रखे एवं सभी के जीवन के अधिकार की रक्षा करे।
- पुलिस के अधिकार:
- पुलिस आत्मरक्षा में या शांति और व्यवस्था बनाए रखने हेतु घातक बल सहित बल का प्रयोग कर सकती है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा-96 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को आत्मरक्षा का अधिकार है।
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-46 पुलिस को किसी गंभीर अपराध के आरोपी को गिरफ्तार करने हेतु घातक बल सहित बल प्रयोग करने की अनुमति देती है।
- भारत में EJK की स्थिति:
- भारत में वर्ष 2016-17 और 2021-22 के बीच छह वर्षों में दर्ज पुलिस मुठभेड़ में हत्या के मामलों में 15% की गिरावट आई है, जबकि वर्ष 2021-22 से मार्च 2022 तक पिछले दो वर्षों में मामलों में 69.5% की वृद्धि हुई।
- भारत में पिछले छह वर्षों में पुलिस मुठभेड़ में हत्याओं के 813 मामले दर्ज किये गए हैं।
- अप्रैल 2016 से छह वर्षों में छत्तीसगढ़ में न्यायेतर हत्या के सबसे अधिक 259 मामले दर्ज किये गए, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 110 एवं असम में 79 मामले दर्ज किये गए।
- भारत में वर्ष 2016-17 और 2021-22 के बीच छह वर्षों में दर्ज पुलिस मुठभेड़ में हत्या के मामलों में 15% की गिरावट आई है, जबकि वर्ष 2021-22 से मार्च 2022 तक पिछले दो वर्षों में मामलों में 69.5% की वृद्धि हुई।
EJK का कारण:
- सार्वजनिक जन समर्थन:
- कभी-कभी लोग ऐसी हत्याओं का समर्थन इसलिये करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि न्यायालयी व्यवस्था समय पर न्याय नहीं देगी। यह जन समर्थन पुलिस को और अधिक साहसी बनाता है, जिससे ऐसी हत्याओं में वृद्धि होती है।
- राजनीतिक समर्थन:
- कई राजनेताओं का मानना है कि पुलिस मुठभेड़ की अधिक घटनाएँ राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के संदर्भ में उनकी उपलब्धि के रूप में काम करेगी।
- दंडात्मक हिंसा:
- कुछ पुलिस अधिकारियों का मानना है कि हिंसा और यातना का प्रयोग अपराध को नियंत्रित करने और संभावित अपराधियों के बीच भय की भावना पैदा करने का एकमात्र तरीका है।
- नायक के रूप में चित्रित करना:
- ऐसी हत्याओं को अकसर जनता और मीडिया द्वारा महिमामंडित किया जाता है, इसमें शामिल पुलिस अधिकारियों को नायकों के रूप में चित्रित किया जाता है जो समाज को भय मुक्त करने का कार्य कर रहे हैं।
- इस गैरकानूनी हिंसा का जश्न मना रही जनता और मीडिया यह भूल जाती है कि पुलिस के पास इस तरह का कृत्य करने का कोई अधिकार नहीं है और यह आरोपी के मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
- पुलिस की अक्षमता:
- जाँच करने के लिये पुलिस के पास पर्याप्त संसाधन नहीं होने से सज़ा देने की दर को कम हो सकती है। मुठभेड़ों को पुलिस के लिये क्षेत्र में कानून व्यवस्था बनाए रखने की सकारात्मक छवि बनाने के एक आसान तरीके के रूप में देखा जाता है।
भारत में पुलिस मुठभेड़ से संबंधित दिशा-निर्देश:
- सर्वोच्च न्यायालय:
- सितंबर 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने "पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र" के मामले में मौत के प्रकरणों में पुलिस मुठभेड़ों की जाँच के लिये दिशा-निर्देश जारी किये। दिशा-निर्देशों में निम्नलिखित शामिल थे:
- मजिस्ट्रियल जाँच के प्रावधानों के साथ अनिवार्य रूप से प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) का पंजीकरण।
- पूछताछ में मृतक के परिजनों को शामिल करना।
- गोपनीय सूचनाओं का लिखित रिकॉर्ड रखना।
- स्पष्ट और निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित करने के लिये CID जैसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जाँच।
- घटना के बारे में जानकारी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) या राज्य मानवाधिकार आयोग को भेजी जानी चाहिये, हालाँकि NHRC की भागीदारी आवश्यक नहीं है, जब तक कि स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच के बारे में गंभीर संदेह न हो।
- न्यायालय ने निर्देश दिया कि इन आवश्यकताओं/मानदंडों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत घोषित एक कानून मानते हुए पुलिस मुठभेड़ों में होने वाली मौत और गंभीर चोट के सभी मामलों में सख्त रवैया अपनाया जाना चाहिये।
- सितंबर 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने "पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र" के मामले में मौत के प्रकरणों में पुलिस मुठभेड़ों की जाँच के लिये दिशा-निर्देश जारी किये। दिशा-निर्देशों में निम्नलिखित शामिल थे:
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC):
- वर्ष 1997 में NHRC ने पुलिस मुठभेड़ में हुई मौतों के बारे में जानकारी दर्ज करने, राज्य CID (केंद्रीय जाँच विभाग) द्वारा स्वतंत्र जाँच की अनुमति देने और पुलिस अधिकारियों के दोषी होने की स्थिति में मृतक के आश्रितों को मुआवज़ा देने के लिये दिशा-निर्देश प्रदान किये।
- वर्ष 2010 में इन दिशा-निर्देशों में संशोधन किया गया था ताकि प्राथमिकी दर्ज करना, मजिस्ट्रेटी जाँच करना और सभी मौतों के मामलों की रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक या पुलिस अधीक्षक द्वारा NHRC को दी जाए। तीन महीने के बाद पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, जाँच रिपोर्ट और पूछताछ के निष्कर्षों के साथ दूसरी रिपोर्ट भेजी जानी चाहिये।
आगे की राह
- पुलिस मुठभेड़ में होने वाली मौतों की स्वतंत्र जाँच की जानी चाहिये क्योंकि इनसे विधि के शासन का नियम प्रभावित होता है। यह सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है कि समाज में एक कानून व्यवस्था विद्यमान हो जिसका प्रत्येक राज्य प्राधिकरण और जनता द्वारा पालन किया जाना चाहिये।
- पुलिस कर्मियों को बेहतर ढंग से प्रशिक्षित करने और उन्हें सभी प्रासंगिक कौशल से युक्त करने के लिये मानक दिशा-निर्देशों को निर्धारित करने की आवश्यकता है ताकि वे किसी भी गंभीर स्थिति से प्रभावी ढंग से निपट सकें।
- मुठभेड़ों में हुई हत्याओं की बढ़ती संख्या मानवाधिकारों के उल्लंघन का कारण बन रही है, इसलिये पुलिस अधिकारियों को मानवाधिकारों के महत्त्व के बारे में शिक्षित करना और इन गैरकानूनी हत्याओं को रोकना आवश्यक है।