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भारतीय अर्थव्यवस्था

SEZ एवं EOU से जैव ईंधन का निर्यात

  • 28 Mar 2023
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष आर्थिक क्षेत्र, इथेनॉल, प्रधानमंत्री ‘जी-वन’ योजना 2019, GOBAR (गैल्वनाइज़िग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज़) धन योजना 2018, जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति 2018

मेन्स के लिये:

जैव ईंधन का महत्त्व, जैव ईंधन से संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने कहा है कि विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) एवं निर्यातोन्मुखी इकाइयों (EOU) से जैव ईंधन के निर्यात को बिना किसी प्रतिबंध के अनुमति दी जाएगी, यदि आयातित फीड स्टॉक का उपयोग करके जैव ईंधन का उत्पादन किया जाता है।

  • वर्ष 2018 में भारत सरकार ने जैव ईंधन के आयात पर समान शर्तें लगाने के तुरंत बाद इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।

जैव ईंधन:

  • परिचय:
    • कोई भी हाइड्रोकार्बन ईंधन जो कम समय में कार्बनिक पदार्थ से उत्पन्न होता है, उसे जैव ईंधन माना जाता है।
    • जैव ईंधन प्रकृति में ठोस, तरल या गैसीय अवस्था में हो सकते हैं।
      • ठोस: लकड़ी, सूखे पौधों की सामग्री एवं खाद
      • तरल: बायोइथेनॉल एवं बायो-डीज़ल
      • गैसीय: बायोगैस
  • जैव ईंधन की श्रेणियाँ:
    • पहली पीढ़ी के जैव ईंधन:
      • ये पारंपरिक तकनीक का उपयोग करके चीनी, स्टार्च, वनस्पति तेल या पशु वसा जैसे खाद्य स्रोतों का उपयोग कर बनाए जाते हैं।
      • उदाहरणों में बायोअल्कोहल, वनस्पति तेल, बायोईथर, बायोगैस शामिल हैं।
    • दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन:
      • ये गैर-खाद्य फसलों या खाद्य फसलों के कुछ हिस्सों से उत्पन्न होते हैं जो खाने योग्य नहीं होते हैं और इन्हें अपशिष्ट के रूप में माना जाता है, जैसे- तने, भूसी, लकड़ी के छिलके और फलों के छिलके।
      • उदाहरणों में सेल्युलोज़ इथेनॉल, बायोडीज़ल शामिल हैं।
    • तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन:
      • ये शैवाल जैसे सूक्ष्म जीवों से उत्पन्न होते हैं।
      • उदाहरण- बुटेनॉल
    • चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन:
      • चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन उन्नत जैव ईंधन हैं जो आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified- GM) शैवाल बायोमास और उन्नत रूपांतरण तकनीकों (पायरोलिसिस, गैसीकरण आदि का उपयोग) का उपयोग करके उत्पादित किये जाते हैं।

  • महत्त्व:
    • ऊर्जा सुरक्षा: जैव ईंधन जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर सकते हैं, जो प्रायः दूसरे देशों से आयात किये जाते हैं।
      • स्थानीय स्तर पर जैव ईंधन का उत्पादन करके देश अपनी ऊर्जा सुरक्षा बढ़ा सकते हैं और आपूर्ति में व्यवधानों की अपनी भेद्यता को कम कर सकते हैं।
    • पर्यावरणीय लाभ: जीवाश्म ईंधन की तुलना में जैव ईंधन को अधिक पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है क्योंकि जलने पर वे कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करते हैं।
      • साथ ही जैव ईंधन का उत्पादन अपशिष्ट और प्रदूषण दोनों को कम करने में योगदान दे सकता है।
    • कृषि क्षेत्र का विकास: जैव ईंधन उत्पादन के लिये पर्याप्त मात्रा में फीडस्टॉक की आवश्यकता होती है, जो किसानों को आय का एक नया स्रोत प्रदान कर सकता है।
      • इससे ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने और कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने में भी मदद मिल सकती है।
  • चुनौतियाँ:
    • दक्षता: जीवाश्म ईंधन कुछ जैव ईंधनों की तुलना में अधिक ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। उदाहरण के लिये एक गैलन गैसोलीन (एक प्रकार का जीवाश्म ईंधन) की तुलना में एक गैलन इथेनॉल कम ऊर्जा उत्पन्न करता है।
    • खाद्यान की कमी: बहुमूल्य फसल भूमि का उपयोग ईंधन फसलों को उगाने के लिये करने से खाद्यान की लागत पर प्रभाव पड़ना और संभवतः खाद्यान की कमी होना चिंता का विषय बना रहता है।
    • जल का उपयोग: जैव ईंधन फसलों की उचित सिंचाई के साथ-साथ ईंधन के विनिर्माण के लिये भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है, जो स्थानीय और क्षेत्रीय जल संसाधनों पर दबाव डाल सकता है।

जैव ईंधन के संबंध में हाल की पहलें:

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. जैव ईंधन पर भारत की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किसका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020)

  1. कसावा
  2. क्षतिग्रस्त गेहूंँ के दाने
  3. मूंँगफली के बीज
  4. चने की दाल
  5. सड़े हुए आलू
  6. मीठे चुक़ंदर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (a)

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

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