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भारतीय अर्थव्यवस्था

नकारात्मक दर नीति

  • 16 Aug 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

विश्व के कुछ प्रमुख केंद्रीय बैंक आर्थिक विकास को बढ़ाने के उद्देश्य से नकारात्मक दर नीति (Negative Rate Policy) सहित कई अन्य गैर-परंपरागत नीतिगत उपायों का सहारा ले रहे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2008 में लेहमेन ब्रदर्स (Lehman Brothers) के बंद हो जाने के पश्चात् विश्व की आर्थिक मंदी से लड़ने के लिये कई केंद्रीय बैंकों ने अपनी दरों को घटाकर 0 के आसपास कर दिया था।
  • एक दशक के बाद भी सुस्त आर्थिक विकास दर के कारण कई देशों में ब्याज दर अभी भी कम बनी हुई है।
  • यूरोपीय क्षेत्र सहित स्विट्ज़रलैंड, डेनमार्क, स्वीडन और जापान ने दरों को शून्य से थोड़ा नीचे गिरने दिया है।

नकारात्मक दर नीति कैसे कार्य करती है?

  • नकारात्मक दर नीति के तहत सभी वित्तीय संस्थाओं को केंद्रीय बैंक के पास मुद्रा का अतिरिक्त भंडार रखने के लिये ब्याज का भुगतान करने की आवश्यकता होती है।
  • इस प्रकार केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों को अधिक-से-अधिक ऋण बाँटने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से नकदी रखने पर दंडित करता है।
  • यूरोपीय सेंट्रल बैंक (European Central Bank-ECB) ने जून 2014 में अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के उद्देश्य से नकारात्मक दरों की शुरुआत की थी, जिसमें ब्याज दर को -0.1% तक कम कर दिया गया था।

नकारात्मक नीति के फायदे और नुकसान?

  • इस प्रकार की नीति के समर्थकों का मानना है कि देश में ऋण की लागत को कम करने का यह सबसे अच्छा उपाय है।
  • इसके अलावा यह देश में निवेश को कम आकर्षक बनाकर वहाँ की मुद्रा दर को कमज़ोर करने में मदद करता है जिसके कारण उस देश को वैश्विक स्तर पर निर्यात लाभ प्राप्त होता है।
  • इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि इसके कारण ऋण देने से होने वाली वित्तीय संस्थाओं कमाई में कमी आती है।
  • यदि लंबे समय तक इसकी दरें बनी रहती हैं तो वित्तीय संस्थाओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और वे ऋण देने पर रोक लगा सकती हैं जिसके कारण अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुँच सकता है।
  • इसके अतिरिक्त जमाकर्त्ता बैंक में पैसे रखने के बजाय नकदी का विकल्प भी चुन सकते हैं।

इसके दुष्प्रभाव को कम करने के लिये क्या कर रहे हैं केंद्रीय बैंक?

  • बैंक ऑफ जापान (The Bank of Japan-BOJ) ने इस संदर्भ में स्तर आधारित व्यवस्था को अपनाया है, जिसके तहत वितीय संस्थाओं द्वारा जमा की गई राशि के कुछ हिस्से पर -0.1% की दर तय की गई है और बाकी बचे हिस्से पर 0-0.1% की दर तय की गई है।

स्रोत: द हिंदू

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