मध्याह्न भोजन योजना का विस्तार | 13 Mar 2021

चर्चा में क्यों?

शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति ने सिफारिश की है कि सभी सरकारी स्कूल राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा परिकल्पित मध्याह्न भोजन योजना के विस्तार के एक हिस्से के रूप में आगामी शैक्षणिक वर्ष में मुफ्त नाश्ता प्रदान करना शुरू करें।

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक मज़बूत शिक्षा प्रणाली की स्थापना हेतु ‘भोजन और पोषण’ संबंधी क्षेत्रों में वित्तपोषण की समस्या की पहचान की गई है।

प्रमुख बिंदु:

आवश्यकता:

  • शोध से पता चलता है कि सुबह का पौष्टिक नाश्ता संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ाकर विशिष्ट विषयों के अध्ययन के लिये लाभकारी सिद्ध हो सकता है, इसलिये इन घंटों में मध्याह्न भोजन के अलावा एक हल्का लेकिन स्फूर्तिदायक नाश्ता प्रदान करके इस योजना का लाभ उठाया जा सकता है।

चुनौतियाँ:

  •  फंडिंग की अत्यधिक कमी के कारण योजना में देरी होने की संभावना है।
  • मध्याह्न भोजन योजना पर केंद्र का मौजूदा खर्च लगभग 11000 करोड़ रुपए है। मुफ्त नाश्ते में 4000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बजट शामिल होगा लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग ने वर्ष 2020-21 के बजट में लगभग 5000 करोड़ रुपए की कटौती की।

मध्याह्न भोजन योजना

  • मध्याह्न भोजन योजना (शिक्षा मंत्रालय के तहत) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो वर्ष 1995 में शुरू की गई थी।
  • यह प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये दुनिया का सबसे बड़ा विद्यालय भोजन कार्यक्रम है।
  • इस कार्यक्रम के तहत विद्यालय में नामांकित I से VIII तक की कक्षाओं में अध्ययन करने वाले छह से चौदह वर्ष की आयु के हर बच्चे को पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है।

उद्देश्य:

  • इसके अन्य उद्देश्य भूख और कुपोषण समाप्त करना, स्कूल में नामांकन और उपस्थिति में वृद्धि, जातियों के बीच समाजीकरण में सुधार, विशेष रूप से महिलाओं को  ज़मीनी स्तर पर रोज़गार प्रदान करना।

गुणवत्ता की जाँच:

  • एगमार्क गुणवत्ता वाली वस्तुओं की खरीद के साथ ही स्कूल प्रबंधन समिति के दो या तीन वयस्क सदस्यों द्वारा भोजन का स्वाद चखा जाता है।

खाद्य सुरक्षा:

  • यदि खाद्यान्न की अनुपलब्धता या किसी अन्य कारण से किसी भी दिन स्कूल में मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो राज्य सरकार अगले महीने की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ता का भुगतान करेगी।

विनियमन:

  • राज्य संचालन-सह निगरानी समिति (SSMC) पोषण मानकों और भोजन की गुणवत्ता के रखरखाव के लिये एक तंत्र की स्थापना सहित योजना के कार्यान्वयन की देखरेख करती है।

राष्ट्रीय मानक:

  • प्राथमिक (I- V वर्ग) के लिये 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक (VI-VIII वर्ग) के लिये 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन के पोषण मानकों वाला पका हुआ भोजन। 

कवरेज:

  • सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल, मदरसा और मकतब सर्व शिक्षा अभियान (SSA) के तहत समर्थित हैं।

विभिन्न मुद्दे तथा चुनौतियाँ:

  • भ्रष्टाचार की घटनाएँ: नमक के साथ सादा चपाती परोसने, दूध में पानी मिलाने, फूड प्वाइज़निंग आदि के कई उदाहरण सामने आए हैं।
  • जातिगत पूर्वाग्रह और भेदभाव: जातिगत पूर्वाग्रह के चलते कई स्कूलों में बच्चों को उनकी जाति के अनुसार अलग-अलग बिठाने की घटनाएँ भी सामने आईं हैं।
  • कोविड-19: कोविड-19 ने बच्चों और उनके स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी अधिकारों के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न किया है।
  • कुपोषण के खतरे: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों में बाल कुपोषण के सबसे बुरे स्तर के आँकड़े सामने आए हैं। 
    • दुनिया में बौनेपन के शिकार कुल बच्चों के 30% बच्चे भारत में हैं और पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 50% बच्चे अल्पवज़न के हैं।
  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020: ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट- 2020 के अनुसार, भारत उन 88 देशों में शामिल है, जिनके वर्ष 2025 तक वैश्विक पोषण लक्ष्य से चूक जाने की संभावना है।
  • ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2020: ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2020 में 107 देशों में से भारत को 94वें स्थान पर रखा गया है। इस सूचकांक में भारत में भूख का स्तर "गंभीर" श्रेणी में रखा गया है।

आगे की राह:

  • जब बच्चे कुपोषित या अस्वस्थ होंगे तो वे आशानुरूप सीखने में असमर्थ होंगे। इसलिये बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य (मानसिक स्वास्थ्य सहित) के लिये मिड डे मील सहित पौष्टिक नाश्ता प्रदान किया जाएगा। योजना का विस्तार बच्चों को स्कूलों से जोड़ने और नामांकन में सुधार कर भूख को रोकने में मदद करेगा।

स्रोत- द हिंदू