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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गर्भपात कानून को प्रभावी बनाने की कवायद

  • 08 Jun 2017
  • 6 min read

संदर्भ
देश में गैर-कानूनी तरीके से  किये  जा रहे गर्भपात व महिला भ्रूण हत्या के मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार वर्तमान कानून में बदलाव करने की सोच रही है| सरकार का मूल लक्ष्य गर्भपात से संबंधित कानूनों को अधिक प्रभावी बनाने और  लोगों की जरूरतों के अनुरूप बनाने की है| अर्थात गैर कानूनी ढंग से गर्भ जांच करवाने वालों को कानून के दायरे में लाने हेतु तथा स्वास्थ्य कारणों से गर्भपात की स्वीकृति देने के लिये कानून को लचीला स्वरूप प्रदान करना सरकार का मूल लक्ष्य है|

मुख्य बिंदु

  • सरकार गर्भपात कानून यथा मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971(MTP-1971) में बदलाव कर गर्भपात की विधिक सीमा को 24 हफ्तों तक के लिये बढ़ा सकती है| अर्थात गर्भवती महिला को 24 हफ्तों तक गर्भपात करने का अधिकार मिल जायेगा|
  • इस संदर्भ में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव  किये गए  हैं| इसके अंतर्गत गर्भपात के लिये तय विधिक समय सीमा जो अभी 20 हफ्ते की है उसे आगे बढ़ाने का प्रस्ताव है तथा ये कानून वैकल्पिक विधियों जैसे आयुष (AYUSH) के अंतर्गत कार्यरत चिकित्सकों को भी नॉन-सर्जिकल विधि से  गर्भपात करवाने के अधिकार देने का प्रस्ताव करता है|
  • आँकड़ो से पता चलता है कि भारत में प्रत्येक दो घंटे में एक महिला की मृत्यु सिर्फ असुरक्षित गर्भपात के कारणों से हो जाती है| भारत में प्रत्येक वर्ष किये जाने वाले कुल गर्भपात में से केवल 10% ही कानूनी रूप से दर्ज़ किये जातें हैं| उदहारणस्वरूप 2015 में केवल 7 लाख गर्भपात ही सरकारी दस्तावेजों में दर्ज़ किये गए, जबकि शेष आंकलित गर्भपात गैर कानूनी ढंग से चल रहे क्लिनिक तथा झोला- छाप डॉक्टरों के द्वारा चोरी छुपे किये गए|
  • इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार के आंकलन के अनुसार देश में होने वाली मात्री म्रत्यु की कुल संख्या में   गर्भपात संबंधी होने वाली मौतों की संख्या लगभग 8%  है|
  • गर्भपात की विधिक सीमा को  20 हफ्ते से बढ़ाने का प्रश्न  सर्वप्रथम 2008 में बॉम्बे उच्च न्यायालय के एक मामले में आया, जब एक दम्पति ने अपने 26 हफ्ते के गर्भ की गर्भपात कराने की स्वीकृति के लिये याचिका दायर की| वस्तुतः डॉक्टरों को जब ये पता चला कि गर्भ में पल रहा  शिशु  ह्रदय रोग से ग्रसित है, तब उन्होंने दंपत्ति को गर्भपात करने की सलाह दी | हालाँकि न्यायालय ने उक्त मामले में  याचिका खारिज़ करते हुए स्वीकृति नहीं दी, परन्तु न्यायालय के समक्ष स्वास्थ्य कारणों से गर्भपात की स्वीकृति के लिये   याचिकाएं आज भी आ रहीं हैं|
  • चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि 18 हफ्तों से पूर्व गर्भ की समस्याओं का आंकलन नहीं किया जा सकता है| इसीलिये इस तय समय-सीमा के दो हफ्ते के भीतर ही गर्भपात का फैसला ले पाना अधिकतर मामलों में मुश्किल हो जाता है| मूलतः दंपत्तियों को स्वास्थ्य  कारणों व भावनात्मक कारणों से गर्भपात के लिये तैयार होने में समय लगता है| अतः इनका मानना है की देश में होने वाले अधिकतर गर्भपात  का कारण यह भी है|
  • इसके अतरिक्त  MTP-1971 कानून में एक और महत्त्वपूर्ण बदलाव किये जाने का प्रस्ताव में ये भी है कि ये कानून विवाहित एवं गैर-विवाहित दोनों  दशाओं में महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करेगा| स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस पर कहा है कि पूर्व के कानून में वर्णित “विवाहित” शब्द को हटा दिया जाए|
  • इसी दौरान सरकार पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी. एक्ट (PC & PNDT ACT) में संशोधन की  संभावना पर विचार कर रही है| लम्बे समय से चिकित्सा क्षेत्र से डॉक्टरों व चिकित्सा विशेषज्ञों की मांग है कि इस कानून में बदलाव  किये जाएं|

निष्कर्ष
इस प्रकार एक सक्षम व तार्किक कानून कि आवश्यकता है जो एक तरफ देश में चल रहे गैर कनूनी गर्भपात पर रोक लगाये तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य कारणों से माता एवं शिशु की सुरक्षा हेतु उपयुक्त डॉक्टरी सलाह की उपस्थिति में कानूनी रूप से गर्भपात की स्वीकृति भी दे|

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