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भारतीय इतिहास

तमिलनाडु में लोहे का उत्खनन

  • 14 May 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लौह युग, पुरापाषाण युग, मध्यपाषाण युग, नवपाषाण युग, महापाषाण संस्कृति, कार्बन डेटिंग

मेन्स के लिये:

प्राचीन भारतीय सभ्यताएंँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तमिलनाडु में हुए उत्खनन कार्य की कार्बन डेटिंग से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि भारत में लोहे का प्रयोग 4,200 साल पहले हुआ था।

  • इससे पहले देश में लोहे के प्रयोग का प्रमाण 1900-2000 ईसा पूर्व और तमिलनाडु के लिये 1500 ईसा पूर्व माना जाता था।
  • तमिलनाडु में लोहे के प्रयोग के नवीनतम साक्ष्य 2172 ईसा पूर्व के हैं।

निष्कर्ष:

  • यह उत्खनन तमिलनाडु में कृष्णागिरी के पास मयिलादुम्पराई में हुआ है।
  • मयिलादुम्पराई माइक्रोलिथिक (30,000 ईसा पूर्व) और प्रारंभिक ऐतिहासिक (600 ईसा पूर्व) युग के बीच की सांस्कृतिक सामग्री के साथ एक महत्त्वपूर्ण स्थल है।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण निष्कर्षों में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि तमिलनाडु में नवपाषाण चरण की शुरुआत 2200 ईसा पूर्व से पहले हुई। यह निष्कर्ष दिनांकित स्तर से नीचे पाए गए 25 सेमी ऊँचाई के सांस्कृतिक निक्षेपों के अध्ययन पर आधारित है।
    • पुरातत्त्वविदों ने यह भी पाया कि काले और लाल रंग के बर्तनों को नवपाषाण काल ​​के अंत में ही पेश किया गया था न कि लौह युग में जैसाकि व्यापक रूप से यह माना जाता है।

ऐतिहासिक महत्त्व:

  • कृषि उपकरणों का उत्पादन:
    • लौह प्रौद्योगिकी के आविष्कार से कृषि औज़ारों और हथियारों का उत्पादन हुआ, जिससे आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रगति से पहले एक सभ्यता हेतु आवश्यक उत्पादन संभव हुआ।
      • जहांँ तांबे का इस्तेमाल पहली बार भारतीयों (1500 ईसा पूर्व) द्वारा किया गया था वही सिंधु घाटी में लोहे के इस्तेमाल होने के कोई ज्ञात रिकॉर्ड या साक्ष्य नहीं हैं।
  • वनों की कटाई में उपयोगी:
    • वनों की कटाई तब हुई जब मानव ने घने जंगलों को साफ करने और कृषि कार्य हेतु भूमि को साफ करने के लिये लोहे के औज़ारों का उपयोग करना शुरू किया क्योंकि घने जंगलों को साफ करने और कृषि भूमि में तांबे के औज़ारों का उपयोग करना मुश्किल होता।
  • सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन:
    • 1500 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व तक के प्राप्त नवीनतम साक्ष्यों के आधार पर यह माना जा सकता है कि लौह युग का सांस्कृतिक उद्भव 2000 ईसा पूर्व में हुआ था।
    • लगभग 600 ईसा पूर्व लौह प्रौद्योगिकी ने बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों का आधार निर्मित किया जिससे तमिल ब्राह्मी लिपि का विकास हुआ।
      • माना जाता है कि तमिल ब्राह्मी लिपियों की उत्पत्ति लगभग 300 ईसा पूर्व हुई थी, लेकिन वर्ष 2019 में एक ऐतिहासिक खोज ने इस अवधि को 600 ईसा पूर्व निर्धारित कर दिया।
      • इस डेटिंग या अवधि ने सिंधु घाटी सभ्यता और तमिलगाम/दक्षिण भारत के संगम युग के बीच के अंतर को कम करने का कार्य किया।

पाषाण युग

  • पेलियोलिथिक ( पाषाण काल) युग:
    • मूल रूप से शिकार और भोजन एकत्र करने की संस्कृति।
    • पुरापाषाण काल के औज़ारों में नुकीले पत्थर, चॉपर, हाथ की कुल्हाड़ी, खुरचनी, भाला, धनुष और तीर आदि शामिल हैं तथा ये सामान्यतः हार्ड रॉक क्वार्टजाइट से बने होते हैं।
    • मध्य प्रदेश के भीमबेटका में पाए गए रॉक पेंटिंग एवं नक्काशी में शिकार को मुख्य जीवन निर्वाह गतिविधि के रूप में दर्शाते हैं।
    • भारत में पुरापाषाण काल को तीन चरणों में विभाजित किया गया है: प्रारंभिक या निम्न पुरापाषाण (50,0000-100,000 ईसा पूर्व), मध्य पुरापाषाण (100,000-40,000 ईसा पूर्व) और उत्तर पुरापाषाण (40,000-10,000 ईसा पूर्व)।
    • होमो सेपियन्स उत्तर पुरापाषाण युग में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
  • मेसोलिथिक (मध्य पाषाण) युग:
    • प्लीस्टोसिन काल से होलोसीन काल में संक्रमण और जलवायु में अनुकूल परिवर्तनों द्वारा युग को चिह्नित किया गया है।
    • मेसोलिथिक युग के प्रारंभिक काल में शिकार, मछली पकड़ने और भोजन एकत्र करने जैसी गतिविधि होती थी।
    • इस युग में पशुओं का पालन-पोषण शुरू हुआ।
    • माइक्रोलिथ नामक उपकरण छोटे थे जिनकी ज्यामिति में पुरापाषाण युग की तुलना में सुधार हुआ था।
  • निओलिथिक (नव पाषाण) युग:
    • पाषाण युग के अंतिम चरण के रूप में संदर्भित इस युग में खाद्य उत्पादन की शुरुआत हुई।
    • लंबे समय तक एक ही स्थान पर रहना,मिट्टी के बर्तनों का उपयोग और शिल्प का आविष्कार नवपाषाण युग की विशेषता है।
    • नवपाषाण काल के लोग पॉलिशदार पत्थर के औज़ारो एवं हथियारों का प्रयोग करते थे। इस काल के लोग विशेष रूप से पत्थर की बनी कुल्हाड़ियों का प्रयोग करते थे। नवपाषाण काल में हथौड़ा, छेनी एवं बसुली के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं।
  • मेगालिथिक (महापाषाण) संस्कृति:
    • महापाषाण संस्कृति में पत्थर की संरचनाओं के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, जिनका निर्माण दफन स्थलों के रूप में या स्मारक स्थलों के रूप में किया गया था।
    • भारत में पुरातत्त्वविदों को लौह युग (1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व) में अधिकांश महापाषाण संस्कृतियों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, हालाँकि कुछ साक्ष्यों से लौह युग पूर्व (2000 ईसा पूर्व ) भी इनकी उपस्थिति के प्रमाण मिलते हैं।
    • महापाषाण संस्कृति संपूर्ण प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हुई है। हालाँकि उनमें से अधिकांश स्थल प्रायद्वीपीय भारत में पाए जाते हैं, जो महाराष्ट्र (मुख्य रूप से विदर्भ), कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में केंद्रित हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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