यूरोपीय संघ की वरीयता सामान्यीकृत योजना | 16 Jun 2021
प्रिलिम्स के लियेयूरोपीय संघ, विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन, सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली मेन्स के लियेसामान्यीकृत वरीयता प्रणाली का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूरोपीय संसद द्वारा एक प्रस्ताव अपनाया गया था, जिसमें यूरोपीय संघ आयोग से सामान्यीकृत योजना के तहत श्रीलंका को दी गई वरीयता प्लस (जीएसपी+) की अस्थायी वापसी पर विचार करने का आग्रह किया गया।
- श्रीलंका ने वर्ष 2017 में जीएसपी+, या यूरोपीय संघ की सामान्यीकृत वरीयता योजना को पुनः प्राप्त किया था।
- यूरोपीय संघ चीन के बाद श्रीलंका का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और इसका दूसरा मुख्य निर्यात गंतव्य है।
प्रमुख बिंदु:
- वरीयता की सामान्यीकृत योजना (GSP) यूरोपीय संघ के नियमों का एक समूह है जो विकासशील देशों के निर्यातकों को यूरोपीय संघ को अपने निर्यात पर कम या कोई शुल्क नहीं देने की अनुमति देता है।
- यह विकासशील देशों को गरीबी कम करने और श्रम तथा मानव अधिकारों सहित अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों एवं सिद्धांतों के आधार पर रोज़गार सृजन करने में मदद करता है।
- यूरोपीय संघ के GSP को व्यापक रूप से कवरेज और लाभों के मामले में सबसे प्रगतिशील माना जाता है।
प्रकार:
- मानक GSP:
- निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिये इसका मतलब है कि दो-तिहाई टैरिफ लाइनों पर सीमा शुल्क को आंशिक या पूर्ण रूप से हटाना।
- विकासशील देशों को स्वचालित रूप से GSP प्रदान किया जाता है यदि उन्हें विश्व बैंक द्वारा "ऊपरी मध्यम आय" से नीचे आय स्तर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है या उन्हें यूरोपीय संघ के बाज़ार में तरजीही पहुँच प्रदान करने वाली किसी अन्य व्यवस्था (जैसे मुक्त व्यापार समझौते) से लाभ नहीं होता है।
- लाभार्थी: बांग्लादेश, कंबोडिया और म्याँमार।
- GSP+:
- सतत् विकास और सुशासन के लिये विशेष प्रोत्साहन व्यवस्था।
- यह कमज़ोर निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिये समान टैरिफ (मानक जीएसपी के तहत) को घटाकर 0% कर देता है जो मानव अधिकारों, श्रम अधिकारों, पर्यावरण की सुरक्षा और सुशासन से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों को लागू करते हैं।
- लाभार्थी: आर्मेनिया, बोलीविया, काबो वर्डे, किर्गिज़स्तान, मंगोलिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और श्रीलंका।
- EBA:
- अत्यधिक कम विकसित देशों के लिये विशेष व्यवस्था, उन्हें हथियारों और गोला-बारूद को छोड़कर सभी उत्पादों हेतु शुल्क मुक्त, कोटा मुक्त पहुँच प्रदान करना।
लाभार्थियों की निगरानी
- यूरोपीय संघ लगातार ‘GSP+’ लाभार्थी देशों के मानवाधिकारों, श्रम अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण और सुशासन पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशनों के प्रभावी कार्यान्वयन की निगरानी और समीक्षा करता है।
- इस निगरानी में सूचनाओं का आदान-प्रदान और वार्ता आदि शामिल हैं, साथ ही इसमें नागरिक समाज सहित विभिन्न हितधारकों को भी शामिल किया जाता है।
सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP)
परिचय
- सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) एक अम्ब्रेला अवधारणा है, जिसमें औद्योगिक देशों द्वारा विकासशील देशों को दी जाने वाली अधिमान्य योजनाओं का बड़ा हिस्सा शामिल है।
- इसमें मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) के रूप में कम टैरिफ या लाभार्थी देशों द्वारा दाता देशों के बाज़ारों में निर्यात योग्य उत्पादों की शुल्क-मुक्त प्रविष्टि आदि शामिल है।
- विकासशील देशों को औद्योगिक देशों के बाज़ारों में वरीयता टैरिफ दरें प्रदान करने का विचार मूलतः वर्ष 1964 में ‘संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन’ (UNCTAD) की कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किया गया था।
- सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) को वर्ष 1968 में नई दिल्ली में अपनाया गया था और वर्ष 1971 में इसे पूर्णतः स्थापित किया गया।
- वर्तमान में अंकटाड सचिवालय को अधिसूचित कुल 13 राष्ट्रीय GSP योजनाएँ हैं।
वे देश जो सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) प्रदान करते हैं
- ऑस्ट्रेलिया, बेलारूस, कनाडा, यूरोपीय संघ, आइसलैंड, जापान, कज़ाखस्तान, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, रूस, स्विट्ज़रलैंड, तुर्की और संयुक्त राज्य अमेरिका।
- वर्ष 2019 में अमेरिका ने अपने GSP व्यापार कार्यक्रम के तहत एक लाभार्थी विकासशील राष्ट्र के रूप में भारत के दर्जे को समाप्त कर दिया था। अमेरिका के मुताबिक, भारत ने अमेरिका को यह आश्वासन नहीं दिया कि वह अपने बाज़ारों में अमेरिका को ‘न्यायसंगत और उचित पहुँच’ प्रदान करेगा।
लाभ
- आर्थिक विकास
- इसके परिणामस्वरूप लाभार्थी देशों को विकसित देशों के साथ अपने व्यापार को बढ़ाने और अपने व्यापार में विविधता लाने में मदद मिलती है, जिससे विकासशील देश के आर्थिक विकास में बढ़ोतरी होती है।
- रोज़गार के अवसर
- बंदरगाहों से GSP के तहत आयात किये गए सामान को उपभोक्ताओं, किसानों और निर्माताओं तक ले जाने से विकसित राष्ट्र में भी रोज़गार का सृजन होता है।
- प्रतिस्पर्द्धा में बढ़ोतरी
- इस व्यवस्था के माध्यम से कंपनियों द्वारा सामानों के निर्माण के लिये उपयोग किये जाने वाले आयातित इनपुट की लागत में कमी आती है, जिससे कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा में बढ़ोतरी होती है।
- वैश्विक मूल्यों को बढ़ावा
- यह लाभार्थी देशों को अपने नागरिकों को श्रमिक अधिकार प्रदान करने, बौद्धिक संपदा अधिकारों को लागू करने और कानून के शासन का समर्थन करने संबंधी वैश्विक मूल्यों को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहित करता है।
संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD)
- यह 1964 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित एक स्थायी अंतर-सरकारी निकाय है। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है।
- यह विकासशील देशों को एक वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था के लाभों को अधिक निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से प्राप्त करने में सहायता करता है।
- इसके 194 सदस्य देश हैं। भारत भी इसका सदस्य है।
- इसके द्वारा प्रकाशित कुछ रिपोर्ट हैं:
- व्यापार और विकास रिपोर्ट (Trade and Development Report)
- इन्वेस्टमेंट ट्रेंड मॉनीटर रिपोर्ट (Investment Trends Monitor Report)
- विश्व निवेश रिपोर्ट (World Investment Report)
- न्यूनतम विकसित देश रिपोर्ट (The Least Developed Countries Report)
- सूचना एवं अर्थव्यवस्था रिपोर्ट (Information and Economy Report)
- प्रौद्योगिकी एवं नवाचार रिपोर्ट (Technology and Innovation Report)
- वस्तु तथा विकास रिपोर्ट (Commodities and Development Report)
मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN)
- विश्व व्यापार संगठन के टैरिफ एंड ट्रेड पर जनरल समझौते के ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ सिद्धांत के मुताबिक, विश्व व्यापार संगठन के प्रत्येक सदस्य देश को अन्य सभी सदस्यों के साथ समान रूप से मोस्ट फेवर्ड’ व्यापारिक भागीदारों के रूप में व्यवहार करना चाहिये।
- विश्व व्यापार संगठन के अनुसार, यद्यपि 'मोस्ट फेवर्ड नेशन’ शब्द किसी ‘विशेष उपचार’ की ओर संकेत करता है, लेकिन वास्तव में इसका अर्थ है गैर-भेदभाव की नीति से।