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भारत के लिये नैतिक शासन का आयाम

  • 09 Nov 2022
  • 8 min read

मेन्स के लिये:

भारत के लिये नैतिक शासन का आयाम

नैतिक शासन:

  • नैतिक शासन से तात्पर्य शासन प्रक्रिया में नैतिक मूल्यों और व्यवहार के उच्च मानकों को शामिल करना है।
    • उदाहरण के लिये एक नौकरशाह अपने कार्यालय में आने वाले लोगों की सेवा करने के लिये बाध्य तो होता है लेकिन यदि वह बहुत लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के बाद आने वाले थके हुए बुजुर्ग के लिये एक गिलास पानी की भी सुविधा उपलब्ध नहीं कराता है, तो इसके लिये उसे दंडित नहीं किया जा सकता है। सार्वजनिक सेवा और परोपकारिता की भावना ही उसे ऐसा करने के लिये प्रेरित करेगी।
    • इसी तरह से आधार के साथ बायोमेट्रिक डेटा के बेमेल होने के वावजूद अधिकारी को लाभार्थियों को (विशेष रूप से महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिये) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत राशन के वितरण की अनुमति देनी चाहिये। यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऐसी सेवाओं से मना करने पर किसी व्यक्ति की जान भी जा सकती है। इसलिये करुणा और मानवीय गरिमा नैतिक शासन का आधार होते हैं।
  • नागरिकों और लोक सेवकों के बीच विश्वास एवं आपसी सहयोग स्थापित करने के लिये नैतिक शासन बहुत आवश्यक है।

नैतिक शासन के प्रमुख तत्त्व:

  • नैतिक शासन का आशय निश्चित मूल्यों के आधार पर शासन के संचालन से है। उदाहरण के लिये ईमानदारी, अखंडता, करुणा, सहानुभूति, ज़िम्मेदारी, सामाजिक न्याय आदि कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनके बिना नैतिक शासन को बनाए नहीं रखा जा सकता है।
    • ईमानदारी से यह सुनिश्चित होगा कि प्रशासन का एकमात्र उद्देश्य जनहित है और इसमें भ्रस्ट कार्यों का कोई स्थान नहीं है
    • उत्तरदायित्व केवल जवाबदेही नहीं है, यह किसी के विवेक पर आधारित निर्णय के रूप में चूक संबंधी प्रत्येक कार्य के लिये आंतरिक जवाबदेही सुनिश्चित करता है। अगर ऐसा हो जाता है तो भ्रष्टाचार का सवाल ही नहीं उठता।
  • राष्ट्र को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये भ्रष्टाचार को समाप्त करना न केवल एक नैतिक अनिवार्यता है, बल्कि आर्थिक आवश्यकता भी है।
  • भ्रष्टाचार को खत्म करने और नौकरशाही के कारण देरी को कम करने के लिये कानून का शासन, नैतिक शासन के सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वों में से एक होना चाहिये।
  • कानून का शासन, प्रशासन में मनमानी को रोकता है, जिससे विवेक के दुरुपयोग की संभावना कम हो जाती है।

भारतीय शासन में नैतिक मुद्दे:

  • प्राधिकरण या पद की स्थिति का उल्लंघन: अधिकारी ऐसे कार्य करते हैं जो उनकी स्थिति, ज़िम्मेदारियों और अधिकारों से बाहर होते हैं, जो अंततः राज्य या कुछ नागरिकों के हितों को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • उपेक्षा: सार्वजनिक अधिकारी या तो अपनी पेशेवर ज़िम्मेदारियों का पालन नहीं करते हैं या उनके साथ एक अपराधी के तरह व्यवहार करते हैं, जिससे राज्य या समुदाय को नुकसान होता है।
  • रिश्वतखोरी: भ्रष्टाचार और रिश्वत समाज के स्वीकार्य अंग बन गए हैं, भ्रष्टाचार और लेन-देन के कार्य को बढ़ावा दे रहे हैं।
  • शालीनता: अधिकारियों का असाधारण मेहनती, समर्पित और कर्तव्यनिष्ठ होना आवश्यक है, लेकिन वे आत्मसंतुष्ट होते हैं, जो स्थिति, पद और परिलब्धियों से ग्रस्त एवं विलासिता के आदी होते हैं।
  • संरक्षण: वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा नियामक निकायों और अन्य महत्त्वपूर्ण पदों से सेवानिवृत्ति के बाद बड़े पैमाने पर बिना किसी दिशा-निर्देश और संरक्षण के कार्य किया जाता है।
  • प्रशासनिक गोपनीयता: प्रशासनिक गोपनीयता का उद्देश्य निजी हितों को बनाए रखते हुए जनहित की सेवा करना है। इसलिये पारदर्शिता नैतिक शासन के सबसे महत्त्वपूर्ण गुणों में से एक है।

आगे की राह

  • प्रभावी कानून: इसके तहत सिविल सेवकों को अपने आधिकारिक निर्णयों को न्यायोचित साबित करना पड़ेगा।
  • प्रबंधन के प्रति नए दृष्टिकोण: भ्रष्टाचार और अनैतिक मामलों के संबंध में सभी सरकारी अधिकारियों एवं सिविल सेवकों को इससे सकारात्मक रूप से निपटने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • व्हिसलब्लोअर सुरक्षा व्यवस्था को मज़बूत करना: अधिकारियों द्वारा किये जाने वाले गलत कार्यों को लोकहित में उजागर करने वाले व्यक्ति की सुरक्षा हेतु व्हिसलब्लोअर सुरक्षा कानून को प्रभावी बनाना।
  • एथिक्स ऑडिट: महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं की अखंडता के लिये ज़ोखिमों की पहचान करना।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश: अपनी व्यापक सिफारिशों में इसने चुनावों में राज्य द्वारा वित्तपोषण, दलबदल विरोधी कानून को अधिक प्रभावी बनाने और मंत्रियों, विधायिका, न्यायपालिका तथा सिविल सेवकों के लिये नैतिक संहिता की सिफारिश की।
  • भ्रष्टाचार की जाँच करना: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के प्रावधान को अधिक प्रभावी बनाने का प्रस्ताव दिया, जिससे भ्रष्ट लोक सेवकों को हर्ज़ाना भरने, अवैध रूप से अर्जित संपत्ति की ज़ब्ती एवं त्वरित परीक्षण के लिये उत्तरदायी बनाया जा सके।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. उपयुक्त उदाहरणों सहित “सदाचार संहिता और आचार संहिता के बीच विभेदन कीजिये: (2018)

प्रश्न. लोक प्रशासन में नैतिक दुविधाओं का समाधान करने के प्रक्रम को स्पष्ट कीजिये: (2018)

प्रश्न.मान लीजिये कि भारत सरकार एक ऐसी पर्वतीय घाटी में एक बाँध का निर्माण करने की सोच रही है, जो जंगलों से घिरी है और यहाँ नृजातीय समुदाय रहते हैं। अप्रत्याशित आकस्मिकताओं से निपटने के लिये सरकार को कौन-सी तर्कसंगत नीति का सहारा लेना चाहिये? (2018)

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

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