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केरल सर्जिकल घटना में नैतिक और प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ

  • 21 May 2024
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चिकित्सीय नैतिकता के सिद्धांत, भारतीय दंड संहिता (IPC)

मेन्स के लिये:

चिकित्सीय लापरवाही के नैतिक निहितार्थ, मानव कार्रवाई में नैतिकता के निर्धारक और परिणाम

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केरल के एक चिकित्सक को एक बच्चे की अतिरिक्त अँगुली हटाने के बजाय त्रुटिवश जीभ की सर्जरी करने के लिये निलंबित कर दिया गया।

  • यह कोझिकोड के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुआ। जीवन को खतरे में डालने के लिये चिकित्सक के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 336 और 337 के तहत कानूनी कार्रवाई की गई। 
  • यह घटना चिकित्सा प्रोटोकॉल और नैतिकता के सख्ती से पालन करने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

नैतिकता चिकित्सा पद्धति को किस प्रकार निर्देशित करती है?

  • नैतिक सिद्धांत चिकित्सा पद्धति में मूलभूत होते हैं, जो अक्सर कानूनी आवश्यकताओं से अधिक कार्यों का मार्गदर्शन करते हैं। उन चार प्राथमिक सिद्धांतों में शामिल हैं:
    • स्वायत्तता: उचित सूचित सहमति प्राप्त करके अपने उपचार के बारे में सूचित निर्णय लेने के रोगी के अधिकार का सम्मान करना।
      • बच्चे के माता-पिता द्वारा प्रदान की गई सहमति अँगुली की सर्जरी के लिये थी, जीभ की सर्जरी के लिये नहीं, जिससे बच्चे की स्वायत्तता का उल्लंघन हुआ।
    • उपकार: संपूर्ण सर्जिकल प्रक्रिया के दौरान रोगी के स्वास्थ्य और कल्याण के सर्वोत्तम हित में कार्य करना।
      • गलत तरीके से सर्जरी करना रोगी की आवश्यकताओं या उसके सर्वोत्तम हितों के अनुरूप नहीं है।
    • गैर-दोषपूर्ण: रोगी को खतरों से सुरक्षित रखना, एक चिकित्सा पेशेवर जो अस्थायी या स्थायी रूप से पंजीकृत है, वह जानबूझकर लापरवाह व्यवहार में संलग्न नहीं हो सकता है जो रोगी को आवश्यक चिकित्सा उपचार तक पहुँच से वंचित कर सकता है।
      • इस घटना में बच्चे की जीभ पर एक अनावश्यक और हानिकारक प्रक्रिया की गई, जो इस सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन है।
    • न्याय: धर्म, राष्ट्रीयता, नस्ल या सामाजिक प्रतिष्ठा जैसे कारकों के आधार पर भेदभाव किये बिना, सभी रोगियों के साथ निष्पक्ष और न्यायसंगत व्यवहार करना।
      • यह स्थिति इस प्रश्न को जन्म देती है कि क्या बच्चे के साथ उचित व्यवहार किया गया, विशेषकर चिकित्सा क्षेत्र में अपेक्षित मानकों के आलोक में।
  • मिथ्यापूर्ण शपथ: यह नए चिकित्सा स्नातकों के लिये एक आधारशिला है और दीक्षांत समारोहों के दौरान इसका पाठ किया जाता है, जो उन्हें नैतिकता का पालन करने के लिये बाध्य करती है। भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 में उल्लिखित सिद्धांत मानवता की सेवा, चिकित्सा कानूनों का पालन, जीवन के प्रति सम्मान, रोगी कल्याण प्राथमिकता, गोपनीयता, शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता और सामूहिक सम्मान के प्रति प्रतिबद्धता का वचन देते हैं। 
    • यह शपथ एक नैतिक दिशासूचक के रूप में कार्य करती है, जो चिकित्सकों का चिकित्सा पेशे की सम्मानित परंपराओं और नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिये मार्गदर्शन करती है।

केरल सर्जिकल घटना में कौन-से नैतिक सिद्धांत शामिल हैं?

  • सत्यनिष्ठा और वस्तुनिष्ठताः चिकित्सक के कार्य में सत्यनिष्ठा और वस्तुनिष्ठता का अभाव था, जो किसी भी सेवा, विशेष रूप से स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित, अपेक्षित मूलभूत मूल्य हैं।
  • लोक सेवा के प्रति समर्पण: रोगी कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता आवश्यक है। सर्जिकल त्रुटि इस प्रतिबद्धता के खंडित होने का संकेत देती है। 
    • चिकित्सकों से चिकित्सा पद्धति और देखभाल के उच्च मानक बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है। सर्जिकल (चिकित्सा संबंधी) त्रुटि इन कर्त्तव्यों और ज़िम्मेदारियों को निभाने में विफलता का संकेत देती है।
  • रोगी की विश्वसनीयता और गोपनीयता: विश्वसनीयता चिकित्सक-रोगी संबंध का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
    • ऐसी घटनाएँ न केवल रोगी और चिकित्सक के बीच बल्कि व्यापक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में भी लोगों के विश्वास को कम कर सकती हैं।
  • जवाबदेही और नैतिक शासन: चिकित्सक द्वारा किया गया कार्य संबंधित अस्पताल के प्रशासन की जवाबदेही पर सवाल उठाता है।
    • यह घटना स्वास्थ्य देखभाल में आने वाली नैतिक दुविधाओं को उजागर करती है तथा नैतिक दिशानिर्देशों के सख्ती से पालन करने की आवश्यकता पर बल देती है।

आगे की राह

  • संरचनात्मक संचार प्रोटोकॉल: स्थिति-पृष्ठभूमि-आकलन-अनुशंसा (Situation Background Assessment Recommendation- SBAR) तकनीक जैसे संरचित संचार प्रोटोकॉल को लागू करने से स्पष्टता में सुधार हो सकता है और त्रुटियाँ कम हो सकती हैं। 
    • सूचित सहमति सुनिश्चित करने में समझ के सत्यापन के साथ-साथ प्रक्रिया, जोखिम, लाभ और विकल्पों की विस्तृत व्याख्या शामिल हैI
  • पूर्वकारी सत्यापन को मज़बूत करना: सर्जरी से तुरंत पहले एक अनिवार्य "टाइम-आउट" प्रक्रिया को अपनाना ताकि रोगी की पहचान, सर्जिकल साइट और पूरी सर्जिकल टीम की उपस्थिति में नियोजित प्रक्रिया की पुष्टि की जा सके।
  • पारदर्शी जाँच प्रक्रिया: यह सुनिश्चित करना कि घटनाओं की जाँच पारदर्शी तरीके से हो और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में विश्वास बहाल करने के लिये निष्कर्षों को जनता के साथ साझा किया जाए।
  • मुआवज़ा: पीड़ितों को हुई हानि के कारण उन्हें उचित मुआवज़ा प्राप्त करने का अधिकार है। यह मुआवज़ा चिकित्सा बिलों के तत्काल वित्तीय बोझ से अलग होना चाहिये। इसमें वास्तविक और अमूर्त दोनों प्रकार की हानियाँ शामिल होनी चाहिये।
  • नैतिक जागरूकता की संस्कृति को बढ़ावा देना: स्वास्थ्य पेशेवरों को नैतिक सिद्धांतों और चिकित्सा पद्धति में उनके अनुप्रयोग के संबंध में शिक्षित करने के लिये व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा कार्यशालाएँ आयोजित करना।
    • नैतिक दुविधाओं और सर्वोत्तम प्रथाओं पर चर्चा को प्रोत्साहित करने के लिये स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों के भीतर स्पष्ट बातचीत एवं पारदर्शिता की संस्कृति को बढ़ावा देना।
  • कानूनी और नैतिक आचार संहिता: कानूनी रूप से निहित आचार संहिता के कार्यान्वयन हेतु समर्थन करना, जो स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के लिये स्पष्ट नैतिक अपेक्षाओं को रेखांकित करता है।
    • चिकित्सा पद्धति में सत्यनिष्ठा, करुणा और व्यावसायिकता को बढ़ावा देने वाले सामाजिक रूप से लागू आचार संहिता के महत्त्व पर ज़ोर देना।
    • एक सहायक और सहयोगात्मक कार्य वातावरण को बढ़ावा देना जो नैतिक आचरण, व्यावसायिकता तथा रोगी-केंद्रित देखभाल को महत्त्व देता हो।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.  "विश्वास चिकित्सक और रोगी के संबंध की नींव होता है तथा चिकित्सीय लापरवाही की घटनाएँ इस विश्वास को समाप्त कर सकती हैं।" इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में जनता का विश्वास बहाल करने के उपाय सुझाइए।

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