बांधों का पर्यावरण पर प्रभाव | 07 May 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हरिद्वार में एक 27 वर्षीय युवा स्वामी आत्मबोधानंद ने गंगा की प्रमुख सहायक नदियों पर रेत खनन और बांधों को बनाने के विरोध में किये जाने वाले अपने अनशन को 194 दिन बाद तोड़ दिया।
बांधों का पर्यावरण पर प्रभाव कैसे पड़ता है?
पर्यावास का विखंडन
बांध बनाकर नदी के जल को अवरुद्ध कर दिया जाता है। जिससे यह मछलियों के लिये एक अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं। मछलियों में नदी के किनारों तथा जल के बहाव के साथ विचरण करने/तैरने की प्रवृत्ति होती है, ऐसे में बांध के अवरोधक के रूप में कार्य करने से उनके प्रजनन एवं विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसका असर उस जल निकाय के समस्त जल-चक्र में परिलक्षित होता है।
बाढ़ और आसपास के निवास स्थान का विनाश
Flooding and the Destruction of Surrounding Habitat
अवरुद्ध नदियाँ बांध के बहाव के प्रतिकूल एक जलाशय बनाती हैं, जिनका जल आसपास के क्षेत्र में फैल जाता है। परिणामस्वरूप बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और वहाँ मौजूद पारिस्थितिक तंत्र तथा आवास नष्ट हो जाते हैं। इस तरह की बाढ़ पौधों, वन्यजीवों और मनुष्यों सहित कई अन्य जीवों को या तो नष्ट कर देती है या विस्थापित कर सकती है।
ग्रीनहाउस गैसें
(Greenhouse Gases)
बांधों के आसपास के निवास स्थान में बाढ़ आने से पेड़-पौधे और अन्य जीवन नष्ट हो जाते हैं जो अपघटित होकर वायुमंडल में बड़ी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन करते हैं। क्योंकि नदी का बहाव अवरुद्ध रहता है, इसलिये पानी स्थिर हो जाता है और जलाशय के निचले हिस्से (तल) में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऑक्सीजन की कमी एक ऐसी स्थिति का निर्माण करती है जो जलाशय के तल पर संयंत्र सामग्रियों के अपघटन से मीथेन (एक बहुत शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस) उत्पन्न करती है, अंततः वैश्विक जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हुए वायुमंडल में उत्सर्जित होती रहती है।
बांध के पीछे अवसाद/तलछट का निर्माण
(Sediment Builds up Behind the Dam)
जैसे कि एक अवरुद्ध (Damed) नदी का बहाव स्वतंत्र रूप से नहीं होता है, इसलिये जो अन्य प्रकार के प्राकृतिक तलछट या अवसाद जमा होकर बांध के पीछे इकठ्ठा होते जाते हैं, जिससे नदी के नए किनारे, नदी के डेल्टा, जलोढ़ पंख, नदियों के विभिन्न स्वरूप, कई प्रकार की झीलें और तटीय किनारों का निर्माण होता है।
अवसादन की स्थिति में होने वाले इन परिवर्तनों से पौधों एवं पशुओं के जीवन तथा उनके वितरण में नाटकीय परिवर्तन हो सकता है।
बहाव तलछट अपरदन
(Downstream Sediment Erosion)
बांध में अवसादों के प्रवाह में रुकावट के कारण, तलछट की कमी हो जाती है जो निरंतर बनी रहती है। अवसादों के अभाव में पानी का बहाव तीव्र होता है। फलस्वरूप समय के साथ नदी गहरी और संकीर्ण हो जाती है। इसका सीधा प्रभाव नदी में रहने वाले जीव-जंतुओं के जीवन पर पड़ता है क्योंकि नदी के तीव्र प्रवाह के कारण जीवों की जीवन-समर्थन क्षमता कमज़ोर हो जाती है। साथ ही डेल्टाओं तक पहुँचने वाले अवसादों में भी कमी आती है।
स्थानीय मछलियों की जनसंख्या पर नकारात्मक प्रभाव
Negative Impacts on Local Fish Populations
आमतौर पर बांधों को स्थानीय मछलियों की प्रजातियों हेतु पर्यावरण के अनुकूल नहीं बनाया जाता, अतः बांध बनने से ये जीवित नहीं रह पाती हैं। परिणामस्वरूप मछलियों की स्थानीय आबादी लुप्त हो रही है।स्थानीय मछलियों की प्रजातियों के अस्तित्व को कई कारक प्रभावित करते हैं, जिनमें प्रवासन मार्गों का अवरोध, बाढ़, नदी के प्रवाह में परिवर्तन, तापमान में परिवर्तन, मैलापन, घुलित ऑक्सीजन और स्थानीय पादप जीवन में परिवर्तन शामिल हैं।
- नदियों के आंतरिक और वाह्य क्षेत्रों से कार्बनिक पदार्थ जो कि आमतौर पर नीचे की ओर प्रवाहित होते हैं, बांधों के पीछे एकत्र होते जाते हैं जो ऑक्सीजन का उपभोग करना शुरू कर देते हैं। कभी कभी ऐसे शैवाल उगने लगते है जो बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का उपभोग कर ‘मृत क्षेत्र’ (Dead Zones) का निर्माण करते हैं।
- इसके अलावा, बांध के जलाशय में सतह और गहराई के बीच पानी का तापमान बहुत भिन्न हो सकता है। प्राकृतिक रूप से नदी में जीवों के जीवन-चक्र के लिये एक जटिल प्रक्रिया विकसित होती है। जब बांध संचालक द्वारा नदी में विषम तापमान एवं ऑक्सीजन रहित से पानी छोड़ा जाता है, तो इससे नदी के वातावरण को भी नुकसान पहुँचाता है।
मिथाइल-मर्करी का उत्पादन
Production of Methyl-Mercury
जलाशयों के स्थिर जल में पौधों के सड़ने से कार्बनिक पदार्थ का अपघटन अकार्बनिक पदार्थ के रूप में होता है। ऐसी स्थिति में मर्करी परिवर्तित होकर मिथाइल मर्करी बन सकती है, दुर्भाग्य से यह मिथाइल मर्करी नदी के जीवों में संचित हो जाती है जो जलाशयों से मछली खाने वाले मनुष्यों और वन्यजीवों में विषाक्त प्रभाव पैदा करता है।