सामाजिक न्याय
मस्जिदों में महिलाओं का प्रवेश
- 06 Dec 2022
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प्रिलिम्स के लिये:समानता का अधिकार, महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध पर इस्लामी कानून मेन्स के लिये:महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध संबंधी कानूनी मुद्दा, समानता का अधिकार |
चर्च में क्यों?
हाल ही में दिल्ली स्थित जामा मस्जिद ने मस्जिद परिसर के अंदर एकल अथवा समूह में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया, परंतु लेफ्टिनेंट-गवर्नर के हस्तक्षेप के बाद इस फैसले को वापस ले लिया है।
- इसके लिये मस्जिद से संबद्ध अधिकारियों का तर्क था कि कुछ महिलाएँ पूजा स्थल की पवित्रता का सम्मान नहीं कर पाती हैं, जैसे कि मस्जिद परिसर में वीडियो बनाना आदि।
महिलाओं के मस्जिद प्रवेश पर इस्लामी कानून
- इस्लामी कानून:
- कुरान कहीं भी महिलाओं को नमाज़ के लिये मस्जिदों में जाने से मना नहीं करता है।
- कुरान नमाज़ के लिये लिंग तटस्थता की बात करता है।
- पाँच दैनिक प्रार्थनाओं से पहले अज़ान का उच्चारण किया जाता है।
- अज़ान प्रार्थना के लिये पुरुषों और महिलाओं दोनों हेतु एक सामान्य निमंत्रण है, जो उपासकों को याद दिलाता है, 'नमाज़ और सफलता के लिये आओ'।
- कुरान कहीं भी महिलाओं को नमाज़ के लिये मस्जिदों में जाने से मना नहीं करता है।
- वैश्विक परिदृश्य:
- पूरे पश्चिम एशिया में महिलाओं के नमाज़ के लिये मस्जिद में आने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
- अमेरिका और कनाडा में भी महिलाएँ नमाज़ के लिये मस्जिदों में जाती हैं और रमज़ान में विशेष तरावीह की नमाज़ और धार्मिक पाठ के लिये भी वहाँ इकट्ठा होती हैं।
- राष्ट्रीय परिदृश्य:
- भारत में जमात-ए-इस्लामी और अहल-ए-हदीस संप्रदाय द्वारा संचालित या स्वामित्व वाली कुछ ही मस्जिदों में महिला उपासकों के लिये प्रावधान हैं।
- अधिकांश मस्जिदों में महिलाओं के मस्जिदों में प्रवेश पर स्पष्ट रूप से रोक नहीं है, लेकिन महिलाओं के लिये नमाज़ हेतु तैयार या उनके लिये अलग प्रार्थना क्षेत्र का कोई प्रावधान नहीं है।
- वे केवल पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं।
- इन संदर्भों में वे 'केवल पुरुष' तटस्थता में सीमित हो जाते हैं।
- विद्वानों की राय:
- अधिकांश इस्लामी विद्वान इस बात से सहमत हैं कि नमाज़ घर पर पढ़ी जा सकती है लेकिन यह केवल समूह में ही अदा की जा सकती है, इसलिये मस्जिद जाने का महत्त्व है।
- अधिकांश इस बात से भी सहमत हैं कि बच्चों के पालन-पोषण और अन्य घरेलू ज़िम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं को मस्जिद न आने छूट दी गई है, औपचारिक रूप से उनके मस्जिद प्रवेश की मनाही नहीं है।
प्रतिबंध के पीछे कानूनी मुद्दा
- भारत के संविधान के अनुसार पुरुषों और महिलाओं के बीच पूर्ण समानता है।
- हाजी अली दरगाह मामले में भी उच्च न्यायालय ने महिलाओं को दरगाह तक वांछित पहुँच प्रदान करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 16 और अनुच्छेद 25 का हवाला दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाएँ दायर की गई हैं जिसमें देश भर की सभी मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की माँग की गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इन्हें सबरीमाला मामले से जोड़ दिया है।
क्या पहले भी ऐसी घटनाएँ हुई हैं?
- वर्ष 2011 में, मुंबई में 15वीं सदी की बेहद लोकप्रिय दरगाह, हाजी अली दरगाह के परिसर में एक ग्रिल लगा दी गई थी, जिसमें महिलाओं को उससे आगे जाने पर रोक लगा दी गई थी।
- इसके बाद कुछ महिलाओं ने इसके समाधान के लिये दरगाह प्रबंधन से गुहार लगाई।
- हालाँकि, उनके अनुरोधों को अस्वीकार किये जाने के बाद उन्होंने इस प्रक्रिया में और अधिक महिलाओं को शामिल किया और 'हाजी अली फॉर ऑल' नामक एक अभियान की शुरुआत की।
- भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन के नेतृत्त्व में महिलाओं ने बॉम्बे उच्च न्यायालय की ओर रुख किया और न्यायालय ने वर्ष 2016 में उनके पक्ष में फैसला सुनाया।