सामाजिक न्याय
ज़बरन या अनैच्छिक विलुप्ति
- 17 May 2021
- 8 min read
चर्चा में क्यों?
म्याँमार में सैन्य तख्तापलट के बाद से ज़बरन या अनैच्छिक विलुप्ति होने पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह (WGEID) को पीड़ितों के परिवार के सदस्यों से अपहरण होने की सूचना मिली है।
- कई एशियाई देश लोगों को विद्रोह से हटाने के लिये ज़बरन अपहरण का उपयोग एक उपकरण के रूप में कर रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
परिचय :
- ज़बरन विलुप्ति या अपहरण का आशय से जब किसी व्यक्ति को किसी राज्य या राजनीतिक संगठन द्वारा या किसी राज्य या राजनीतिक संगठन के प्राधिकरण के समर्थन से किसी तीसरे पक्ष द्वारा गुप्त रूप से अपहरण या कैद किया जाता है, जिसके बाद पीड़ित को कानून के संरक्षण से बाहर रखने के इरादे से उस व्यक्ति से संबंधित सूचना और ठिकाने के बारे में जानकारी से इनकार कर दिया जाता है।
- 1970 के दशक और 1980 के दशक की शुरुआत में अर्जेंटीना में 'डर्टी वॉर' (Dirty War) के दौरान लोगों की ज़बरन विलुप्ति या अपहरण की घटनाओं के बारे में दुनिया को व्यापक रूप से जानकारी मिली।
- डर्टी वॉर, जिसे प्रोसेस ऑफ नेशनल रिऑर्गनाइज़ेशन भी कहा जाता है, यह संदिग्ध वामपंथी राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ अर्जेंटीना के सैन्य तानाशाह द्वारा चलाया गया एक कुख्यात अभियान था।
ज़बरन विलुप्ति के घटक:
- व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध उसे स्वतंत्रता से वंचित करना।
- सरकारी अधिकारियों की सहमतिपूर्ण भागीदारी।
- स्वतंत्रता से वंचित या सूचना या ठिकाने की जानकारी के अभाव को स्वीकार करने से इनकार करना।
हालिया घटनाएँ:
- म्याँमार:
- सेना जन आंदोलन को रोकने के लिये प्रतिबद्ध है और पुलिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र की बहाली की मांग करने वालों के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न के अकल्पनीय कृत्यों को अंजाम दे रही है।
- चीन:
- आतंकवाद को रोकने के लिये पुन: शिक्षा को बढ़ावा देना जैसे- उइगर अल्पसंख्यक जातीय समूह के सदस्यों को ज़बरन भेजा जाता है जिसे चीनी अधिकारी 'व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण केंद्र' कहते हैं, उनके ठिकाने की कोई जानकारी नहीं होती है।
- श्रीलंका:
- श्रीलंका ने तीन दशकों से अधिक समय से विभिन्न प्रकार के ज़बरन गायब होने की समस्याओं के कारण घरेलू संघर्ष का सामना किया है।
- पाकिस्तान एवं बांग्लादेश:
- आतंकवाद-विरोधी उपायों के नाम पर लोगों को ज़बरन गायब किया जा रहा है।
वैश्विक उपाय:
- जबरन या अनैच्छिक विलुप्ति होने पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह (WGEID):
- परिचय:
- 1980 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (जिसे अब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के नाम से जाना जाता है ) ने "एक वर्ष की अवधि के लिये इसके पाँच सदस्यों के साथ एक कार्य समूह की स्थापना करने का निर्णय लिया, जो व्यक्तियों के जबरन या अनैच्छिक गायब होने संबंधी उनकी व्यक्तिगत क्षमताओं के संबंध में विशेषज्ञों के रूप में सेवा तथा प्रश्नों की जाँच करेगा।
- कार्यप्रणाली:
- परिवारों की सहायता:
- यह परिवारों को उनके परिवार के सदस्यों के भविष्य या पुनर्वास का निर्धारण करने में सहायता करता है जो कथित तौर पर गायब हो गए हैं।
- उपकृत राज्य:
- इसे घोषणा से प्राप्त अपने दायित्वों को पूरा करने में राज्यों की प्रगति की निगरानी करने और इसके कार्यान्वयन में सरकारों को सहायता प्रदान करने के लिये सौंपा गया है।
- एनजीओ की उपस्थिति :
- यह घोषणा के विभिन्न पहलुओं पर सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) का ध्यान आकर्षित करता है तथा इसके प्रावधानों की प्राप्ति में आने वाली बाधाओं को दूर करने के उपायों की सिफारिश करता है।
- परिवारों की सहायता:
- परिचय:
- 2006 में विलुप्ति से सभी व्यक्तियों के संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन:
- ज़बरन विलुप्ति से मुक्त होने के अधिकार की रक्षा के लिये वर्ष 2006 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने सभी व्यक्तियों के विलुप्त होने से सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन को अपनाया।
- यह 2010 में प्रभावी हुआ और ज़बरन विलुप्ति की घटनाओं पर एक समिति (CED) की स्थापना की गई।
- CED और WGEID साथ-साथ रहते हुए विलुप्तियों को रोकने और हटाने के संयुक्त प्रयासों को मज़बूत करने के उद्देश्य से अपनी गतिविधियों में सहयोग और समन्वय करना चाहते हैं।
- इसमें अन्य संधियों की तुलना में भाग लेने वाले राज्यों की संख्या अभी भी बहुत कम है।
- संधि के 63 सदस्य देशों में से एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के केवल आठ राज्यों ने संधि की पुष्टि की है या स्वीकार किया है।
- केवल चार पूर्वी एशियाई राज्यों ने (कंबोडिया, जापान, मंगोलिया और श्रीलंका) इसकी पुष्टि की है।
- भारत ने हस्ताक्षर किये हैं लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की है।
- ज़बरन विलुप्ति से मुक्त होने के अधिकार की रक्षा के लिये वर्ष 2006 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने सभी व्यक्तियों के विलुप्त होने से सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन को अपनाया।
संबंधित भारतीय कानून:
- भारत में जबरन गायब होने के लिये कोई विशिष्ट कानून नहीं है, लेकिन अत्याचार, अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं और ज़बरन गायब करने पर अंतरराष्ट्रीय, संवैधानिक कानूनी सुरक्षा उपलब्ध है जैसे- सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम, 1958, अत्याचार निवारण विधेयक, 2017, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 आदि
आगे की राह
- अपहरण करना एक गंभीर अपराध है जिसे मानवता के खिलाफ माना जाता है। परिवार के सदस्यों का दर्द और पीड़ा तब तक खत्म नहीं होती जब तक वे अपने प्रियजनों के कुशल होने या आवासित स्थान का पता नहीं लगा लेते।
- एशियाई देशों को अपने दायित्वों और ज़िम्मेदारियों पर अधिक गंभीरता से विचार करना चाहिये और ज़बरन विलुप्तियों की समाप्ति के लिये दंड से मुक्ति करने की प्रवृति को अस्वीकार करना चाहिये।
- घरेलू आपराधिक कानून प्रणाली अपहरण के अपराध से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं है। ये निरंतर घटित होने वाले अपराध हैं जिनके खिलाफ लड़ने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को जल्द-से-जल्द ज़बरन विलुप्तियो को समाप्त करने के लिये अपने प्रयासों को मज़बूत करना चाहिये।