लुप्तप्राय ‘ढोल’ प्रजाति के लिये पूर्वी घाट में प्रजनन संरक्षण केंद्र का निर्माण | 04 May 2017

संदर्भ
लुप्तप्राय  तथा दुर्लभ ‘ढोल’ अथवा ‘भारतीय जंगली कुत्ते’ शीघ्र ही पूर्वी घाट में पाए जाएंगे। विदित हो कि इंदिरा गाँधी प्राणी उद्यान(IGZP) इन प्रजातियों के लिये एक प्रजनन संरक्षण केंद्र का निर्माण कर रहा है जिसका उद्देश्य जंगलों में इनके 16 समूह को पुनः बहाल करना है।

प्रमुख बिंदु

  • इस संरक्षण केंद्र के लिये स्थल का चुनाव किया जा रहा है। विशाखापत्तनम के निकट स्थित क्षेत्रों नर्सिपट्नम (Narsipatnam) और चिंतापल्ले (Chintapalle) के चारों ओर की 10 से 15 एकड़ भूमि का अवलोकन किया जा रहा है।
  • इन जगहों पर छोड़े गए जानवरों की निगरानी तथा उनकी प्रगति का निरीक्षण एक टीम करेगी। जानवरों को जंगल में छोड़ने से पूर्व टीम को सूचित कर दिया जाएगा।
  • जंगल में जाने से पूर्व हैदराबाद स्थित ‘कोशिकीय और आणविक जीव विज्ञान केंद्र’ (Centre for Cellular and Molecular Biology) समूह में शामिल कुत्तों की   आनुवंशिक परिवर्तनशीलता की जाँच करेगा।
  • ये जीव आनुवंशिक रूप से मज़बूत होने चाहियें तथा उनमें शिकार की प्रवृत्ति होनी चाहिये। अगले चरण में 16 जंगली कुत्तों के समूह को शामिल किया जाएगा जिनमें चार नर, आठ मादा तथा चार अर्द्ध वयस्क शामिल होंगे।
  • इस प्रोजेक्ट की लागत 1.5 करोड़ रुपये है। यदि यह प्रोजेक्ट सफल होता है तो यह किसी लुप्तप्राय प्रजाति की स्थिति में सुधार तथा उनके दीर्घकालिक जीवन हेतु किया गया तीसरा प्रयास होगा।
  • इससे पूर्व दार्जिलिंग के पद्मजा नायडू हिमालयन प्राणी उद्यान ने लाल पांडा के लिये ऐसा ही कार्यक्रम चलाया था। इसी प्रकार असम में भी एक पिग्मी हॉग संरक्षण कार्यक्रम चलाया गया था।
  • ढोल को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 2 के तहत संरक्षण प्राप्त है तथा इसे प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ(International Union for Conservation of Nature -IUCN) द्वारा भी संकटग्रस्त प्रजाति की सूची में शामिल किया गया है।
  • वर्ष 2014 में केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के अधिदेश के तहत इसे इंदिरा गाँधी प्राणी उद्यान द्वारा प्राप्त कर लिया गया था। तब से विशाखापत्तनम के चिड़ियाघर ने सफलतापूर्वक जंगली कुत्तों का प्रजनन कराया तथा इनकी संख्या दो से 40 हो गई।
  • संरक्षक के अनुसार 4 समूहों में से दो का सफलतापूर्वक प्रजनन कराया गया है। ऐसे ही प्रयास चेन्नई और मैसूर के चिड़ियाघर में भी किये गए थे परंतु उसमे सफलता प्राप्त नहीं हुई।

ढोल के संबंध में महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • ढोल को भारतीय जंगली कुत्ता भी कहा जाता है। इस पर बालू के रंग का आवरण होता है। इसकी पूँछ काली और घनी होती है।
  • यह एक सामाजिक जीव है। इसकी प्रजाति को प्रायः एशियाई जंगली कुत्ता,भारतीय जंगली कुत्ता, लाल भेड़िया, और पर्वतीय भेड़िये के नाम से जाना जाता है।
  • ये आक्रामक शिकारी होते हैं तथा शिकार के लिये लंबी दूरी तय करते हैं। ये समूहों में शिकार करते हैं।
  • ढोल के लुप्तिकरण के प्रमुख कारण निम्न हैं:

1. आवास का विनाश
2. शिकार का अभाव,
3. अन्य प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा
4. पालतू कुत्तों से इन्हें स्थानांतरित होने वाले रोग